दुबई (भाषा)। पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर (59 वर्ष) ने हैरानी भरा कदम उठाते हुए आज निजी कारणों का हवाला देकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया। मनोहर सिर्फ आठ महीने के लिए इस पद पर रहे।
मनोहर ने आईसीसी सीईओ डेव रिचर्डसन को ईमेल के जरिए इस्तीफा भेजा, जिसमें अचानक उनके यह कदम उठाने के कारण को स्पष्ट नहीं किया गया है। मनोहर का कार्यकाल दो साल का था। हालांकि शीर्ष सूत्रों के अनुसार मनोहर ने पद छोड़ने का फैसला किया क्योंकि ऐसा लगता है कि बीसीसीआई ने संवैधानिक और वित्तीय सुधारों को रोकने के लिए पर्याप्त समर्थन जुटा लिया है जिसे आईसीसी की अगली बोर्ड बैठक में पारित किया जाना था।
किसी भी सुधारवादी कदम को पारित करवाने के लिए दो-तिहाई बहुमत की जरुरत पड़ती है लेकिन संभावना है कि बीसीसीआई बांग्लादेश, श्रीलंका और जिंबाब्वे को अपनी तरफ करने में सफल रहा है। पता चला है कि इसी कारण से मनोहर ने तुरंत प्रभाव से इस्तीफा देने का फैसला किया है।
मुझे पिछले साल निर्विरोध आईसीसी का पहला स्वतंत्र चेयरमैन चुना गया था। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश की और सभी निदेशकों के सहयोग से बोर्ड के संचालन और सदस्य बोर्ड से जुड़े मामलों का फैसला करते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष रहने का प्रयास किया।
शशांक मनोहर (इस्तीफा देेते हुए पत्र में लिखा)
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मनोहर ने कहा, ‘‘हालांकि निजी कारण से मेरे लिए यह संभव नहीं है कि मैं आईसीसी चेयरमैन के गरिमामयी पद पर बना रह पाउं और इसलिए तुरंत प्रभाव से चेयरमैन के रुप में इस्तीफा दे रहा हूं।” उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस मौके पर सभी निदेशकों, प्रबंधन और आईसीसी के स्टाफ का मेरा समर्थन करने के लिए तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूं। मैं आईसीसी को शुभकामना देता हूं और उम्मीद करता हूं कि यह नई उंचाइयां हासिल करे।”
मनोहर ने पिछले साल बीसीसीआई अध्यक्ष पद छोड़ दिया था और इसका कारण यह बताया था कि वह लोढा समिति की सिफारिशों को जस का तस लागू कराने में अक्षम हैं, उस समय बीसीसीआई में उनके आलोचकों ने कहा था कि आईसीसी में सुरक्षित स्थान के लिए वह डूबते जहाज तो छोड़कर चले गए हैं।
वह आईसीसी के पहले स्वतंत्र चेयरमैन बने लेकिन इस दौरान राजस्व साझा करने के फार्मूले को लेकर बीसीसीआई के साथ कई बार उनका टकराव हुआ। बीसीसीआई अधिकारियों का मानना था कि आईसीसी की अगुआई करने की निजी महत्वकांक्षा के कारण मनोहर ने बीसीसीआई के हितों पर ध्यान नहीं दिया। उनके संवैधानिक सुधार के कदमों का बीसीसीआई और श्रीलंका ने कडा विरोध किया था।