नई दिल्ली (आईएएनएस)। विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर आजाद भारत के पहले पहलवान उदय चंद यादें ताजा करते हुए बताते हैं कि तंबाकू की लत के कारण ही वह विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतने से चूक गए थे, और उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था।
उन्होंने देश की युवा पीढ़ी को तंबाकू, सिगरेट जैसे तंबाकू उत्पादों से दूर रहने की सलाह दी है।कुश्ती के लिए प्रथम अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित होने वाले उदय चंद हुक्का, बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू को अपनी सबसे बड़ी कमजोरी मानते हैं।
उदय चंद (81 वर्ष) ने विशेष बातचीत में कहा, “मुझे इस बात का दुख है कि मैं हुक्का पीता था और बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू का सेवन करता था। मुझे आज तक इस बात का मलाल है कि अगर मैं ऐसा नहीं करता तो मैं स्वर्ण पदक जीत सकता था।”
जापान के योकोहामा में 1961 में हुए विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में उदय चंद ने कांस्य पदक जीता था। उसके बाद जकार्ता में 1962 में हुए एशियाई खेलों के ग्रीको रोमन व फ्री स्टाइल दोनों स्पर्धाओं में उन्होंने रजत पदक जीता और भारतीय टीम का नेतृत्व किया। इसके बाद बैंकॉक में 1966 में हुए एशियाई खेलों की फ्रीस्टाइल कुश्ती में उन्होंने कांस्य पदक जीता।
स्पोर्ट्स से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप
उदय चंद का स्वर्ण का सपना 1970 में तब पूरा हुआ, जब एडिनबर्ग में हुए राष्ट्रमंडल खेलों की लाइटवेट कुश्ती स्पर्धा में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता और देश का नाम रौशन किया। उदय चंद की उपलब्धियों के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1961 में कुश्ती में देश का पहला अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया। अर्जुन पुरस्कार की स्थापना 1961 में ही हुई थी।
हुक्का ने सारा खेल बिगाड़ दिया, वर्ना आज मेरे पास कम से कम 15 पदक होते। इसलिए आज की पीढ़ी से आग्रह करता हूं कि अंतर्राष्ट्रीय तंबाकू निषेध दिवस पर वे तंबाकू से दूर रहने का संकल्प लें।
उदय चंद पहलवान
1953 से 1970 तक सेना में सूबेदार के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके उदय चंद वर्ष 1958 से 1970 तक लगातार 12 वर्षो तक राष्ट्रीय चैंपियन रहे, जो आज भी एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है।
हरियाणा के हिसार जिले के जांडली गांव में 25 जून, 1935 को जन्मे उदय चंद ने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के अपने अनुभव के बारे में कहा, “उस समय बहुत खुशी हुई थी। भारत मां के दो सपूत पहली बार विश्व चैंपियनशिप में गए थे। बड़े भाई का नाम था हरिराम, मेरा नाम उदय चंद। हम दोनों भाई गए थे और यह मेरे लिए बेहद खास था।”
उन्होंने आगे कहा, “उसके बाद देश में आज तक एक मां के दो बेटे विश्व चैंपियनशिप में एक साथ नहीं गए हैं। हिसार में हम दो भाई ऐसे थे, जो इस मुकाम पर पहुंचे।”
सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने 1970 से 1995 तक हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में बतौर प्रशिक्षक अपनी सेवाएं दीं, और अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर के कई पहलवान देश के लिए तैयार किए। उदय चंद ने कहा, “मैं अपने शिष्यों को यही कहता हूं कि तंबाकू को हाथ न लगाओ, बाकी सब मैं संभाल लूंगा। मेरे शिष्य एक से बढ़कर एक हैं।”
उल्लेखनीय है कि तंबाकू और तंबाकू उत्पादों से होने वाली घातक बीमारियों के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ ) ने 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस घोषित कर रखा है। इस वर्ष का थीम ‘विकास में बाधक तंबाकू उत्पाद’ है।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, एक सिगरेट जिंदगी के 11 मिनट व पूरा पैकेट तीन घंटे चालीस मिनट तक छीन लेता है। तंबाकू व धूम्रपान उत्पादों के सेवन से देशभर में प्रतिघंटा 137 लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। वहीं दुनिया में प्रति छह सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत हो रही है।