सरकार आई थी शराफ़त के कारण, जाएगी लठैतों के कारण

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सरकार आई थी शराफ़त के कारण, जाएगी लठैतों के कारणgaonconnection

हमारे देश के नेताओं को भ्रम है कि अच्छे दिनों का मतलब है पेट भरा हो और तन ढका हो। जानवर तो जुगाली करते हुए अच्छे दिनों का अहसास कर सकते हैं लेकिन भारत तो महाराणा प्रताप का देश है जहां घास की रोटी भी छिन जाए लेकिन तब भी अकबर की गुलामी कुबूल नहीं, सिर झुकाना स्वीकार नहीं। चाहे कोई सरकार हो यदि जान, माल और आबरू की रक्षा नहीं कर सकती तो किस काम की। आश्चर्य तो तब होता है कि इतनी खराब कानून व्यवस्था के बावजूद यहां कोई गृहमंत्री नहीं है।  

पिछली बार जब मुलायम सिंह की सरकार गई तो मायावती ने एक नारा दिया था, “गुंडे बदमाशों को वहां भेजेंगे जहां उनकी जगह है।” नारा बिल्कुल निशाने पर बैठा था और अपने बल पर सरकार बना ली थी। चुने जाने के बाद क्या किया यह इतिहास है। अखिलेश यादव की शराफत ने जनता का दिल जीत लिया और उनकी सरकार बन गई। चुने जाने के बाद पता नहीं किसने बता दिया कि थाने के दरोगा, दफ्तरों के अधिकारी अपनी जात के बनाने से पकड़ अच्छी रहेगी। नतीजा हमारे सामने है, पहरेदार मीडिया पर दोष है कि सरकार को बदनाम कर रहा है। 

बदायूं में दो सगी बहनों को बलात्कार करके पेड़ से लटका दिया गया था, हाईवे पर यात्री सुरक्षित नहीं हैं, घरों में बुजुर्ग दहशत में हैं, महिलाएं सोचती हें वह कौन सी सरकार थी जिसमें आबरू बची हुई थी। जब पुलिस रात में सोती रहेगी और बदमाश बेखौफ़ घूमते रहेंगे तो जान-माल बचेगा कैसे। बुलन्दशहर एक नमूना मात्र है। गाँव की एक कहावत है “सैंया भए कोतवाल हमें डर काहे का।” लगभग सभी थानों में दरोगा अपनी जात बिरादरी का है भला वह अपनी ही जात के लोगों पर अंकुश क्यों और कैसे लगाएगा।

सबसे बड़ी बात है अपराधियों के प्रति सरकार का नजरिया। यदि कोई सरकार फूलनदेवी, डीपी यादव, मुन्ना बजरंगी की बात पुरानी हो चली है लेकिन सेक्स क्राइम में बहुत वृद्धि हुई है। दुखद है कि अनेक स्थानों पर पुलिस पिट रही है और बदमाश भाग रहे हैं बच कर। मथुरा में रामवृक्ष के लोगों ने दो बड़े पुलिस अधिकारियों को मार डाला लेकिन कहने को कानून अपना काम कर रहा है। 

दूसरे प्रदेशों से लाए गए यादव अधिकारी और पुलिस के लोग यदि चाहते तो अखिलेश यादव की छवि सुधार सकते थे लेकिन चाहे खनन माफिया हों या फिर यादव सिंह जैसे अधिकारी, सभी के अपने संरक्षक हैं। यदुवंश की हुकूमत है जिसमें कृष्ण और बलदाऊ तो नहीं दिखते लेकिन कंस लोगों की संख्या बहुत है। यदि मुख्यमंत्री ने समय रहते कठोर कदम न उठाए तो सरकार बचाना सरल नहीं होगा। सांत्वना का एक ही विषय है कि कोई तगड़ा विकल्प नहीं है।  

 

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