सरकार के गले की हड्डी बनी जीन संशोधित सरसों

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सरकार के गले की हड्डी बनी जीन संशोधित सरसोंgaonconnection, genetically modified mustard, gesc

नई दिल्ली। जेनेटिकली मॉडिफाइड यानि जीन संशोधित सरसों को सरकार द्वारा अनुमति दिए जाने की चर्चाओं के चलते किसान संगठन इसके विरोध में लामबंद हो गए, जिसके चलते सरकार को अपने इस फैसले को टालना पड़ा है। विरोधी संगठनों में जैविक खेती के पक्षधरों के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध भारतीय किसान संघ भी शामिल है। 

''हमारे विरोध का सबसे पहला कारण तो है पारदर्शिता की कमी। पांच फरवरी को जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमति समिति (जीइएसी) इसे मान्यता देने वाली थी," हरियाणा से संचालित कुदरती खेती अभियान के सलाहकार रजिंदर चौधरी ने बताया। 'सरसों सत्याग्रह' के तहत कुदरती खेती अभियान व इस जैसे अन्य संगठनों ने पांच फरवरी को इंदिरा पर्यावरण भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।

जीन संशोधित फसलें वे होती हैं जिनमें फसलों की कमियों को दूर करके उत्पादन बढ़ाने के लिए उनकी अनुवांशिकी में परिवर्तन किए जाते हैं। विश्वभर में इन फसलों पर बवाल इसलिए चल रहा है क्योंकि ऐसा मानना है कि इन फसलों का मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 

देश में इन फसलों के परीक्षण में लिए पर्यावरण मंत्रालय के तहत जीईएसी संस्था गठित है जिसे देश में जीन संशोधित फसलों को मंजूरी देने के लिए अधिकृत किया गया है। फरवरी पांच को हुई जीईएसी की बैठक में विरोध प्रदर्शनों के चलते कोई निर्णय नहीं लिया गया।

'सरसों सत्याग्रह' बैनर के तहत जुटे प्रदर्शनकारियों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को एक ज्ञापन सौंपा जिसमें जीएम सरसों के वाणिज्यिकरण की योजना को आगे नहीं बढऩे की अपील की गई है। पर्यावरण मंत्रालय ने उन्‍हें आश्वस्त किया है कि इस मसले पर कोई आगे फैसला करने से पहले परामर्श बैठक की जाएगी। समूह को यह भरोसा भी दिया गया है कि जीईएसी में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक प्रतिनिधि को भी शामिल किया जायेगा क्योंकि यह मसला सीधे तौर पर जन स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। 

दरअसल संशोधित जीन वाली फसलों का मुद्दा वर्तमान एनडीए सरकार की गले की हड्डी बना हुआ है। सरकार इन फसलों पर शोध को तो प्रोत्साहित कर रही है लेकिन किसानों और विभिन्न संगठनों के लगातार विरोध के चलते वो खुलकर इन फसलों की खेती को अनुमति नहीं दे पा रही।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने पांच फरवरी को ही अपने तीसवें स्थापना दिवस के मौके पर 'ग्लोबल बायोटेक्नोलॉजी समिट' का आयोजन करवाया। समिट में शिरकत विरोध को देखते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, ''अभी सरकार केवल संशोधित जीन वाली सरसों के प्रस्ताव पर विचार कर रही है, लेकिन समूह इसका विरोध कर रहे हैं। जीन संशोधित फसलों की रिसर्च में के लिए सभी नियम-कायदों का पालन करना होगा। यदि नियमों के तहत इस दिशा में अनुसंधान किया जाता है, तो कृषि विभाग इसका समर्थन करेगा।"

इस समिट का उद्देश्य बायोटेक क्षेत्र को वर्ष 2020 तक 6,50,000 करोड़ का बनाने के लिए एक्शन प्लान तैयार करना है। 

''इस सरकार के आने के बाद से पिछले तीन सालों से जीइएसी की बैठकों की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही है। इस विषय पर दायर की गई आरटीआई का जवाब भी यह कहकर नहीं दे रहे कि अभी व्यक्तिगत प्रवृत्ति की है, जबकि मुख्य सूचना अधिकारी ने भी आदेश दे दिया कि लोगों से जुड़ा मामला है तो जानकारी दो," चौधरी ने कहा। सर्वोच्च न्यायालय भी इस बारे में जानकारी सार्वजनिक करने के स्पष्ट निर्देश दे चुका है और सरकार से जवाब भी मांग चुका है। सरकार का जवाब अभी लंबित है।

'सरसों सत्याग्रह' के ज़रिए यह भी सवाल उठाया गया कि इसके परीक्षण की जि़म्मेदारी वैज्ञानिकों की किसी स्वतंत्र संस्था को दी जानी चाहिए। अभी इसे विकसित करने और परीक्षण करने की जिम्मेदारी दोनों समान वैज्ञानिकों के पास है।

जीन संशोधित फसलों को मान्यता देने के पीछे सरकार अपना पक्ष लगातार बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उत्पादन तेजी से बढ़ाने की अपनी मजबूरी बता रही है। ''खाद्य फसलों की भविष्य में मांग बढ़ेगी और इस बढ़ी मांग को केवल तकनीक के ज़रिए पूरा किया जा सकता है। नई तकनीक किसानों के लिए फायदेमंद होगी," केंद्रीय मंत्री सिंह ने कहा।

देश में आज तक केवल जीन संशोधित कॉटन को ही अनुमति मिली हुई है। इससे पहले देश में जीन संशोधित बैंगन को लाने के प्रयास हुए थे लेकिन राष्ट्र-व्यापी विरोध के बाद उस पर रोक लगा दी गई थी।

 

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