अपने आखिरी दौर से गुज़र रही है काशी की काष्ठ-कला

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   27 Jan 2017 1:12 PM GMT

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अपने आखिरी दौर से गुज़र रही है काशी की काष्ठ-कलाबनारस की काष्ठ-कला (लकड़ी से बनी कलाकृतियां)।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

वाराणसी। राम राज्य से भी पहले से प्रचलित बनारस की काष्ठ-कला (लकड़ी से बनी कलाकृतियां) आज अपने अंत के नज़दीक है। एक समय में बनारस की पहचान मानी जाने वाली यह कला आज खुद काशी की गलियों में अपना वजूद तलाश रही है।

वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन पर पिछले 17 वर्षों से काष्ठ-कला से बनी मूर्तियों को बेच रहे राकेश निषाद (45 वर्ष) बताते हैं, "पिछले पांच सालों में काष्ठ-कला से बनी वस्तुओं के व्यापार में ज़बरदस्त गिरावट आई है। इसका असर स्थानीय काष्ठ बाज़ारों से लेकर विदेशी व्यापार में साफ दिखाई पड़ता है।"

स्थानीय काष्ठ कारीगरों की माने तो वाराणसी की काष्ठ-कला से बने एक्यूप्रेशर यंत्र व डिज़ाइनर वस्तुओं का बाज़ार भारत के अलावा चीन, जापान, थाईलैंड व सिंगापुर जैसे देशों में भी है। लेकिन मौजूदा समय में काष्ठ-कला की चीज़ों की तुलना में लोग डिजिटल सामानों के पीछे ज़्यादा भाग रहे हैं। इसलिए काष्ठ-कला के व्यापार में मंदी आई है।

“काष्ठ-कला आज की नहीं है बल्कि यह हज़ारों साल पुरानी है। कहा जाता है कि राजा दशरथ के चारो पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुध्न भी इसी काष्ठ के बने खिलौनों को खेलते थे।”
वाराणसी के पांडेयपुर चौराहे पर काष्ठ-कला से निर्मित सामानों के थोक विक्रेता बाबूलाल शर्मा (56 वर्ष)

काष्ठ-कला के कम होने का सबसे बड़ा यह कारण है कि काष्ठ-कला में इस्तेमाल की जाने वाली खास किस्म की लकड़ी (गोरिया लकड़ी) अब वाराणसी में नहीं मिल पाती। इसलिए इस उद्योग से जुड़े लोगों को दूसरे राज्यों (बिहार व मध्यप्रदेश) से यह लकड़ी मंगवानी पड़ती है।

काष्ठ-कला के बारे में बताते हुए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व सांस्कृतिक सलाहकार अशोक श्रीवास्तव बताते हैं, "80 के दशक तक काशी में काष्ठ-कलाकारों की संख्या लाखों में थी, जो अब घट कर हज़ार भी नहीं बची है। पहले घरों में साजो सामान के लिए लोग काष्ठ-कलाकृतियों का प्रयोग करते थे। अब इनकी जगह प्लास्टर ऑफ़ पेरिस और चीनी मिट्टी की कलाकृतियों ने ले ली है।"

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).


  

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