न्यायालय के आदेश का अभी तक नहीं हुआ पालन, शिक्षा का स्तर भला सुधरे तो कैसे?
गाँव कनेक्शन 25 March 2017 3:00 PM GMT

मीनल टिंगल ,स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 अगस्त, 2015 को एक आदेश जारी किया था। इसमें सभी सरकारी तनख्वाह पाने वाले लोगों और जनप्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला कराने के आदेश दिए गए थे। मगर डेढ़ वर्ष से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी यह आदेश अब तक लागू नहीं करवाया जा सका है, जबकि एक बार फिर नये शैक्षिक वर्ष की शुरुआत होने को है।
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उच्च न्यायालय के इस आदेश के तहत छह माह की अवधि में ऐसी व्यवस्था बनानी थी कि सभी सरकारी तनख्वाह पाने वाले लोगों व जन प्रतिनिधियों के बच्चों को सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेना था। इस आदेश का उद्देश्य सरकारी स्कूलों की स्थिति और पढ़ाई के स्तर में सुधार लाना था। ताकि जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों, उच्च स्तर के अधिकारियों और जजों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने से स्कूलों की हालात में सुधर सके।
यह भी कहा गया था कि उपर्युक्त व्यवस्था शैक्षणिक सत्र 2016-17 से लागू हो जानी चाहिए। उच्च न्यायालय के द्वारा यह भी कहा गया था कि यदि सरकारी कर्मचारियों ने अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ाया तो उन्हें फीस के बराबर की रकम हर महीने सरकारी खजाने में जमा करानी होगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह सख्त कदम, उत्तर प्रदेश के जूनियर व सीनियर स्कूलों में पढ़ाई की बुरी हालत के मद्देनजर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा उठाया गया था। कहा गया था कि जब तक जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों, टॉप लेवल के अधिकारियों और जजों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी।
इस सम्बन्ध में छह महीने का समय देते हुए हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन को आदेश दिया था कि वह अन्य अधिकारियों से राय-मशविरा करके यह सुनिश्चित करें कि सरकारी, अर्द्धसरकारी विभागों के बाबू, जन प्रतिनिधियों, ज्युडिशियरी के लोग, सरकारी खजाने से सैलरी पाने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से यूपी बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा हासिल करें। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश को डेढ़ वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बावजूद उत्तर प्रदेश के सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और मंत्री विधायक इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखा रहे हैं।
क्या कहते हैं प्रधानाध्यापक
जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दूर सपूर्व माध्यमिक विद्यालय कठिंगरा, काकोरी के प्रधानाध्यापक शाहिद अली कहते हैं, “यदि सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों और उच्च स्तर के अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करने लगे तो इससे स्कूलों के साथ शिक्षा का स्तर सुधर जायेगा। यह उन बच्चों के भविष्य के लिए बहुत बेहतर होगा जो अभी बदहाली के दौर से गुजर रहे सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। शिक्षक भी स्कूलों में तत्पर होकर पढ़ाई करायेंगे।”
प्राथमिक शिक्षा व्यक्ति की रीढ़
शिक्षाविद व समाजशास्त्री, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. मनोज दीक्षित कहते हैं, “प्राथमिक शिक्षा व्यक्ति की रीढ़ है, जिस पर देश का भविष्य भी निर्भर करता है। शिक्षा की बात करें तो शिक्षा की शुरुआत प्राथमिक शिक्षा से ही होती है जो उसको आत्मविश्वासी बनाती है। यदि पढ़ाई बेहतर नहीं होगी तो बच्चे की आगे की शिक्षा भी मजबूत नहीं हो सकेगी और उसमें आत्मविश्वास की कमी आयेगी।”
क्या कहते हैं जिम्मेदार
इस बारे में मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक महेन्द्र सिंह राणा ने कहा, “सरकारी स्कूलों में सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों और मंत्रियों के बच्चों के पढ़ाये जाने के मामले में न्यायालय ने जो भी आदेश दिये हैं, वह शासन को दिये हैं। शासन द्वारा इस संबंध में मुझे कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है। जब आदेश आयेगा तो इसके पालन के लिए कार्य किया जायेगा।”
नहीं निभा पाते जिम्मेदारी
प्राइवेट कॉलेज में ऐसा क्या है जो सरकारी स्कूलों में नहीं है और लोग प्राइवेट स्कूलों में ही अपने बच्चों का दाखिला करवाने के लिए प्रयासरत रहते हैं? इस सवाल पर सेंट जोसेफ इंटर कॉलेज के निदेशक, अनिल अग्रवाल कहते हैं, “किसी भी स्तर का प्राइवेट स्कूल हो वहां शिक्षक बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देते हैं क्योंकि ऐसा न करने पर उनको अपनी नौकरी जाने का डर बना रहता है।”
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