असलहा रखने में अब महिलाएं भी पीछे नहीं

Meenal TingalMeenal Tingal   1 March 2017 7:55 PM GMT

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असलहा रखने में अब महिलाएं भी पीछे नहींअसलहा रखना अब केवल पुरुषों का ही शौक और जरूरत नहीं रह गया है। अब महिलाएं भी पीछे नहीं हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। असलहा रखना अब केवल पुरुषों का ही शौक और जरूरत नहीं रह गया है। अब महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। बढ़ रहे अपराधों के मद्देनजर एक तरफ जहां महिलाएं असलहा रखने को अपनी जरूरत बताने लगी हैं, तो दूसरी तरफ कुछ के लिए यह स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है।

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शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से लगभग 5 किलोमीटर दूर बिजलीपुरा में रहने वाली कुमकुम शुक्ला (40 वर्ष) कहती हैं “मुझे हमेशा से ही असलहा रखने का शौक था, लेकिन शादी से पहले घरवालों ने नहीं दिलवाया। शादी के बाद मैंने पति से जिद की तो उन्होंने मुझे मेरे नाम से राइफल दिलवा दी। इसको रखने से मुझे अच्छा महसूस होता है। सुरक्षा की भावना तो आती ही है, साथ ही कुछ स्पेशल सा लगता है।” वहीं, शाहजहांपुर के असलहा बाबू किशोर कुमार कहते हैं “शाहजहांपुर में 49,775 लोगों के पास असलहा हैं और इनमें से लगभग 25 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं।

वैसे तो कई महिलाओं के द्वारा लाइसेंस के लिए खुद भी आवेदन किये गये हैं, लेकिन इनमें ऐसे मामले ज्यादा हैं जिनके पति के पास लाइसेंसी असलहा थे और उनकी मृत्यु हो जाने के बाद इन महिलाओं ने अपने पति के असलहों को जमा करवाने की बजाये खुद के नाम करवाया है।” ऐसे में सुरक्षा और स्टेटस सिंबल महिलाओं में दिलचस्पी बढ़ाई है। लखनऊ जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर पिठौली क्रासिंग के पास रहने वाली रजनी मिश्रा 45 वर्ष कहती हैं “पति के पास पिस्तौल थी। लिवर की बीमारी के चलते कम उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गयी। पहले सोचा कि पिस्तौल जमा कर दें। लेकिन बाद में अपनी सुरक्षा के बारे में सोचा और इसको अपने नाम करवा लिया। इसको चलाने की ट्रेनिंग भी ली। पिस्तौल रखती हूं तो खुद को आम महिलाओं से ज्यादा सुरक्षित लगता है।”

इसी तरह हरदोई जिले के अतरौली में रहने वाली 65 वर्षीय आशा अवस्थी कहती हैं “मेरे पति प्रधान थे और ईंट-भट्टे का व्यापार भी हम लोग करते थे। बहुत सारे लोग दुश्मनी रखते थे। इसलिए अपनी सुरक्षा की खातिर मेरे पति रिवॉल्वर रखते थे और मुझे भी एक रिवॉल्वर दिलवा दी थी ताकि घरवाले और मैं सुरक्षित रह सकूं। इसको रखने के बाद मेरा डर तो खत्म हो ही गया, मेरे परिवार वालों का डर भी कम हो गया।” इस बारे में लखनऊ के असलहा बाबू आरबी लाल कहते हैं “बड़ी संख्या में महिलाएं असलहा रखना चाहती हैं और इसके लाइसेंस बनवाने के लिए पूछताछ करने आती हैं।

लेकिन वर्ष 2013 से नये लाइसेंस इशू करने पर रोक लगी हुई है। केवल उन्हीं लोगों के लाइसेंस ट्रांसफर किए जाते हैं, जिनके पास पहले से लाइसेंस थे और उनकी मृत्यु हो जाने के बाद उनकी पत्नी, बेटी या बहन ने अपने नाम ट्रांसफर करवा लिया हो। चूंकि इन दिनों विधान सभा चुनाव जारी है तो यह प्रोसेस भी फिलहाल चुनाव तक बंद है।” लाल आगे बताते हैं “असलहा रखने वाले जिन पुरुषों की मृत्यु हो जाती है तो ज्यादातर मामले में महिलाएं ही इसको अपने नाम करवाने की इच्छा रखती हैं।

जिन महिलाओं को असलहा चलाना नहीं आता उनको हमारे विभाग की ओर से असलहा चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। लखनऊ के नादरगंज, अमौसी स्थित एक मैदान में प्रति महीने में एक शनिवार और दो रविवार को असलहा चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है।

महिलाओं की रिवॉल्वर निर्भीक

महिलाओं की इसी जरूरत और शौक को ध्यान में रखकर कानपुर स्थित फील्ड गन फैक्ट्री ने हल्के भार वाली रिवॉल्वर तक लांच कर दी। इस रिवॉल्वर को नाम दिया गया ‘निर्भीक’। कानपुर यूनिट ने पहले .32 बोर की इस रिवॉल्वर को करीब 750 ग्राम वजन का तैयार किया था, लेकिन बाद में वजन घटाकर 500 ग्राम कर दिया गया और इसकी कीमत 87 हजार रुपये कर दी गयी।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

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