कमीशन के लिए प्राइवेट अस्पतालों में ऑपरेशन करा रहीं आशा बहुएं

Swati ShuklaSwati Shukla   3 March 2017 10:40 AM GMT

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कमीशन के लिए प्राइवेट अस्पतालों में ऑपरेशन करा रहीं आशा बहुएंज्यादा कमीशन के लालच में आशा बहुएं प्राइवेट अस्पतालों में प्रसूताओं की डिलीवरी करा रही हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। गरीब प्रसूताओं का सुरक्षित प्रसव सरकारी अस्पतालों में हो सके, इसकी जिम्मेदारी आशा बहुओं पर होती है। लेकिन ज्यादा कमीशन के लालच में आशा बहुएं प्राइवेट अस्पतालों में प्रसूताओं की डिलीवरी करा रही हैं।

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ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों में बने सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में अधिकतर डिलीवरी के लिए आईं प्रसूताओं को संसाधनों की कमी के चलते बड़े सरकारी अस्पतालों में रिफर कर दिया जाता है। इस दौरान आशा बहुएं उनको सरकारी अस्पतालों में ले जाने के बजाय अधिक कमीशन के चक्कर में प्राइवेट अस्पताल में भर्ती करा देती हैं।

हजरतगंज स्थित झलकारी बाई अस्पताल में स्ट्रेचर पर लेटी गर्भवती महिला ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “इलाज कराने गाँव से आये हैं। वहां डॉक्टर ने कहा कि शहर के बड़े अस्पताल में दिखाओ क्योकि मेरा ऑपरेशन होगा और खून की भी कमी है। इसलिए यहां आए है।” वो आगे बताती है, “आशा बहू ने कहा कि प्राइवेट में ऑपरेशन करा लो लेकिन इतने पैसे नहीं थे कि निजी अस्पताल में इलाज करा सके। इसलिए यहां अपने पति और परिवार वालों के साथ इलाज कराने आए हैं।”

चौथे राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएच-4) के मुताबिक निजी अस्पतालों और निजी डॉक्टरों की देख-भाल में होने वाले प्रसव में सीजेरियन ऑपरेशन की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हो रही है। नौ साल पहले देश में कुल 8.5 फीसदी बच्चे ऑपरेशन से होते थे, जबकि अब यह 17 फीसदी हो गया है। इसकी वजह निजी क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहे सीजेरियन के मामले हैं। 2006 में हुए पिछले सर्वेक्षण में निजी क्षेत्र में 27.7 फीसदी बच्चे सीजेरियन होते थे, अब 41 फीसदी हो गए हैं। उधर, सरकारी क्षेत्र में अब सीजेरियन के मामले 12 फीसदी रह गए हैं जबकि नौ साल पहले यह 15 फीसदी थे।

चिनहट ब्लॉक के सामुदायिक केंद्र की स्त्री रोग विशेषज्ञ अपर्णा श्रीवास्तव बताती हैं,“गर्भवती महिलाओं का ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों में उनका ऑपरेशन कराती है, क्योंकि उनको वहां से ज्यादा कमीशन मिलता है। हर जांच में 10 से 20 प्रतिशत कमीशन मिलता है। यहां से उन्हें पैसा नहीं मिलता इसलिए प्राइवेट अस्पताल में ले जाती है।”

अगर हम लखनऊ के लोहिया या क्वीन मैरी अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को रिफर करते हैं तो आशा बहू आनाकानी करती हैं और गर्भवती महिलाओं का ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों में ऑपरेशन कराती है, क्योंकि उनको वहां से ज्यादा कमीशन मिलता है। हर जांच में 10 से 20 प्रतिशत कमीशन मिलता है।
अपर्णा श्रीवास्तव, स्त्री रोग विशेषज्ञ, स्वास्थ्य सामुदायिक केंद्र

तेलीबाग की रहने वाली आशा बहू मायादेवी बताती है, “सीएससी-पीएचसी में जब इलाज नहीं हो पाता है तब हम इन्हें प्राइवेट अस्पताल में ले जाते हैं क्योंकि इनके इलाज की जिम्मेदारियों और प्रसव करने की जिम्मेदारी हमारी होती है। सरकारी अस्पताल में अक्सर डॉक्टर नहीं होते हैं इसलिए प्राइवेट अस्पताल में दिखाते हैं।” वो आगे बताती हैं कि कभी कभी इलाज समय पर नहीं शुरू होता है। दर्द तेज हो रहा हो और प्रसूता को कुछ हो जाए तो दोषी हमको बताया जाता है, इसलिए हम इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल ले जाते हैं।

जब सरकारी अस्पताल में असुविधा होती है तब इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल ले जाते हैं। जच्चा और बच्चा का स्वास्थ्य अच्छा रहे और इनका प्रसव सही से हो जाए इसलिए हम इन्हें अच्छे अस्पताल अच्छे डॉक्टर को दिखाते हैं।
सुषमा देवी , आशा बहू

हरचन्द पुर ब्लॉक की आशा ब्लॅाक प्रोग्राम मैनेजर आरती सिंह बताती है, “आशा बहू ज्यादा पैसे के चक्कर में प्राइवेट अस्पताल ले जाती हैं। प्राइवेट अस्पतालों में लाइन नहीं लगानी पड़ती। डॉक्टर से सीधे मिलकर काम करवा लेती है। एक बार में ही सारी जांच हो जाती है। इसलिए आशा प्राइवेट अस्पताल में प्रसव कराने जाती है।”

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