पर्यावरण के लिए लाभदायक जैविक शौचालय

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पर्यावरण के लिए लाभदायक जैविक शौचालयकानपुर जिले के सुखनीपुर गाँव में श्रमिक संस्था और ऐड वाटर के साझे में जैविक शौचालय का निर्माण करवाया गया।

दीपांशु मिश्रा, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। कानपुर के एक कॉलेज में एक ऐसा शौचालय बनाया गया है, जिसमें मानव मल को खाद में परिवर्तित करके सीधे खेतों तक पहुंचा दिया जाता है। कानपुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर सुखनीपुर गाँव में श्रमिक संस्था और ऐड वाटर के साझे में जैविक शौचालय का निर्माण करवाया गया। इसमें कुल खर्चा पांच लाख का आया था, जिसमें निर्माण के समय एक लाख रुपए कॉलेज की तरफ से भी दिया गया था।

जैविक शौचालय का अविष्कार रेलवे और डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। इनमें शौचालय के नीचे बायो डाइजेस्टर कंटेनर में एनेरोबिक बैक्टीरिया होते हैं। इस बैक्टीरिया की खासियत यह है कि यह शौचालय के अपशिष्ट को लिक्विड खाद में बदल देता है। इन शौचालय की निकासी सीधे खेत या क्यारी में की जा सकती है, जिससे यह लिक्विड खाद पानी के साथ खेतों तक पहुंचता है।

हमने अपने स्कूल में बायो-डाइजेस्टर शौचालय डीआरडीओ की तकनीक पर बनवाया गया है। हमने इस शौचालय को मार्च 2015 में बनवाया था, तब इसकी लागत करीब पांच लाख रुपए आयी थी। इसमें एक लाख रुपए स्कूल द्वारा लगवाया गया है तथा बाकी संस्था द्वारा लगवाया गया है। इसका उपयोग करीब 650 बालक एवं बालिकाएं तथा स्कूल स्टाफ कर रहे हैं।
रमाशंकर यादव, प्रधानाचार्य, राधाकृष्ण इन्टर कॉलेज

कानपुर जिले में काम कर रही वाटर एड के परियोजना प्रबंधक विनोद दुबे बताते हैं, ''जैविक शौचालय का उपयोग बहुत ही फायदेमंद है। इसमें एनेरोबिक बैक्टीरिया अपने आप में लिक्विड खाद बनाने की एक मशीन है। एनेरोबिक बैक्टीरिया मल को बतौर भोजन ग्रहण करता है, जिससे एक जैविक परत तैयार हो जाती है और इसे लिक्विड में तब्दील कर देता है।''

विनोद दुबे आगे बताते हैं, ''शौच के बाद शौचालय में डाले जाने वाले पानी के साथ मिलकर यह लिक्विड खाद बिना किसी संक्रमण के खतरे के कच्ची नालियों से होकर खेतों और क्यारिओं तक पहुंचता है, जिससे खेतों में प्राकृतिक तौर से पोषक तत्व पहुंचते हैं। खेती के लिए उपयोग किये जाने वाले पानी से इस बैक्टीरिया द्वरा परिवर्तित लिक्विड ज्यादा उपयोगी होता है।”

ऐसे काम करेगा जैविक शौचालय

बायो डाइजेस्टर टॉयलेट टैंक के रूप में होता है। यहां पर एनेरोबिक बैक्टीरिया डाले जाते हैं। यह बैक्टीरिया मानव मल को विघटित करता है। विघटन के बाद मिथेन गैस और पानी निकलता है। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा। मिथेन का उपयोग खाना पकाने या दूसरे कार्यों के लिए किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में सॉलिड वेस्ट 100 फीसदी तक विघटित हो जाता है। इससे निकलने वाले पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सकता है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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