सावधान: अलनीनो फिर ला सकता है सूखा

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सावधान: अलनीनो   फिर ला सकता है सूखाभारतीय कृषि को हाशिए तक धकेलने और किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले साल 2015 के सूखे की वजह बने अल नीनो की वापसी के संकेत फिर से मिलने लगे हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। भारतीय कृषि को हाशिए तक धकेलने और किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले साल 2015 के सूखे की वजह बने अल नीनो की वापसी के संकेत फिर से मिलने लगे हैं। आस्ट्रेलिया की मौसम विज्ञान ब्यूरो की वेबसाइट में फिर अल नीनो के आने की संभावनाएं बताई जा रही है।

प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म होने को अल नीनो प्रभाव कहते हैं। मौसम के इस विसंगति का असर कई बार भारतीय मानसून पर भी पड़ता है, जैसा कि 2015 में देखा गया था। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार वर्ष 2015 में अल नीनो के कारण भारत में बारिश की 22 प्रतिशत कम रही। वहीं उत्तर प्रदेश में सूखे के कारण 42 प्रतिशत कम बारिश हुई।

30 दिसंबर 2016 को जारी एनसीआरबी के रिपोर्ट ‘एक्सिडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया 2015’ के मुताबिक साल 2015 में 12,602 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या की है। 2014 की तुलना में 2015 में किसानों और कृषि मजदूरों की कुल आत्महत्या में दो फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। साल 2014 में कुल 12360 किसानों और कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की थी।

विश्व जलवायु मॉडल के संकेत के अनुसार केंद्रीय प्रशांत महासागर शायद आने वाले महीनों में गर्म होगा। यह बात आस्ट्रेलिया के मौसम विज्ञान ब्यूरो ने अपनी वेबसाइट पर कही है। पांच मॉडल में अल नीनो पूरी तरह से मजबूत होकर मई से सर्दियों के अंत तक पहुंच सकता है। ऑस्ट्रेलिया की सर्दियों जून में शुरू होती है।

पुणे में मौसम पूर्वानुमान विकास प्रभाग के वैज्ञानिक डॉ. पीके नंदनकर बताते हैं, “अल नीनो से हालांकि इस वर्ष असर पड़ेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगा। प्रशांत महासागर में अल नीनो का तापमान कभी ऊपर और कभी नीचे होता रहता है। आस्ट्रेलिया में अभी मौसम अलग है, सर्दियों के मौसम में इसकी पूर्ण स्थिति का अनुमान लगाया जा पाएगा।” वर्ष 2015 में सूखा पड़ने के कारण भारत के 614 में से 302 जिले सूखाग्रस्त घोषित हुए थे। अकेले 75 जिलों वाले उत्तर प्रदेश के 50 जिले सूखे की चपेट में थे। सूखे की वजह से भारत में वर्ष 2015 में कृषि क्षेत्र में 205 अरब रुपये का नुकसान हुआ। उत्तर प्रदेश मौसम विभाग के निदेशक डॉ. जेपी गुप्ता बताते हैं, “उत्तर प्रदेश में अभी सूखे जैसी कोई कोई समस्या नहीं आएगी।

इस बाद मानसून भी ठीक रहा, आने वाले समय में भी मानसून समय पर रहने की संभावना है। आस्ट्रेलिया में ठंड का समय जब होता है तब भारत में बारिश का समय होता है। इसलिए अभी से अल नीनो के भारत पर पड़ने वाले असर को बताना जल्दबाजी होगी। फरवरी माह में हर वर्ष की तरह पर्याप्त ठंड पड़ रही है। अभी मौसम में कोई बदलाव नजर नहीं आ रहा है।” अल नीनो का प्रभाव सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के मौसम पर पड़ता है। भारत में पड़े सूखे के साथ ही मैक्सिको में अबतक का सबसे ताकतवर ‘प्रोटोरिया’ तूफान, दक्षिण अफ्रीका-इथोपिया में सूखा, दक्षिण कैलीफोर्निया में अचानक आई बाढ़, अमेरिका में बर्फिले तूफान जैसी आपदाएं अल नीनो के कारण आई थी।

अल नीनो पर सबसे पहले 1969 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स के प्रोफेसर जैकॉब व्येरकेंस ने पूर्ण विस्तार से प्रकाश डाला था। अल नीनो का प्रभाव इसी बात से समझा जा सकता है कि दुनिया भर के हिस्सों में बाढ़, सूखा, वनाग्नि, तूफान और वर्षा आदि का कारण भी अब इसे ही माना जाने लगा है। अल नीनो के प्रभाव के रूप में लिखित तौर पर 1525 ई. में उत्तरी पेरू के मरूस्थलीय क्षेत्र में हुई वर्षा का पहली बार उल्लेख मिलता है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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