जानिये कैसे केज कल्चर तकनीक के माध्यम से मछली पालन में होगा अच्छा मुनाफा
दिति बाजपेई 15 May 2017 4:43 PM GMT
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। जहांगीराबाद तहसील के परवेज खान (40 वर्ष) केज कल्चर तकनीक अपनाकर मछली उत्पादन कर रहे हैं। इस तकनीक से वह कम लागत में लाखों की कमाई कर रहे हैं। बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में जहांगीराबाद तहसील में परवेज़ का मछली फार्म 21 हजार वर्ग फीट में बना हुआ है।
इस फॉर्म में वह 625 वर्ग फुट के कई टैंकों में पंगेशियस मछली का उत्पादन कर रहे हैं, जिससे एक वर्ष में लाखों रुपए की कमाई हो रही है। परवेज बताते हैं, ‘’इस तकनीक से पानी का बहाव अच्छा रहता है। इस तकनीक से मछली पालन करने के छह महीने के बाद अच्छा मुनाफा मिलना शुरू हो जाता है। सरकार भी इसको बढ़ावा दे रही है।
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मेरे एक टैंक में लगभग तीन से चार हजार पंगेसियस मछलियां हैं। एक बार में लगभग 25 से 30 कुंतल मछली का उत्पादन होता है जो बाज़ार में 100 रुपए प्रति किलो की दर से बिकती हैं।” परवेज के फॉर्म में 25-25 फीट के 40 टैंक बने हुए हैं, जिसमें चार फीट पानी रहता है। देश में नेशनल मिशन फॉर प्रोटीन सप्लीमेंट के तहत झारखंड में केज कल्चर की शुरुआत की गई। झारखंड में इसे कामयाबी मिलने के बाद इसे कई राज्यों के किसानों ने अपनाया।
एक केज कल्चर से लगभग साढ़े तीन हजार किलोग्राम मछली का उत्पादन होता है। एक केज को बनाने में करीब 80 हजार रुपए की लागत आती है और 5 टन मछली उत्पादन में करीब डेढ़ लाख रुपए का खर्चा आता है। केज में मछली पालन करने से मछलियां इधर-उधर नहीं भटकती हैं और न ही बड़ी मछली का शिकार बनती हैं।
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क्या है केज कल्चर
केज कल्चर वह कल्चर है जिसमें जलाशयों में निर्धारित जगह पर फ्लोटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं। सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग रहते हैं। जालों में 100-100 ग्राम वजन की मछलियां पालने के लिए छोड़ी जाती हैं। मछलियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता है। फ्लोटिंग ब्लॉक का लगभग तीन मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है और एक मीटर ऊपर तैरते हुए दिखाई देता है। केज कल्चर में पंगेसियस प्रजाति की मछली का पालन होता है। सौ-सौ ग्राम की मछलियां दस महीनों में एक-सवा किलो की हो जाती हैं।
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