फेरी वालों के धंधे पर नोटबन्दी का असर

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फेरी वालों के धंधे पर नोटबन्दी का असरफेरी वालों के धंधे पर नोटबन्दी का असर।

अरुण मिश्रा- कम्यूनिटी जर्नलिस्ट (32 वर्ष)

विशुनपुर (बाराबंकी)। बिसवां सीतापुर के मो. अहमद और मो. जमील घर में काढ़ी गयी चादरों, रजाई के खोलों और बेड सीटों को लेकर गाँव-गाँव बेचने निकले हैं, लेकिन नोट बन्दी के चलते कई दिन से उनकी एक भी बेड सीट नहीं बिका है। गाँवों में फेरी कर सामान बेचने वाले अन्य दुकानदार भी नोटबन्दी से किसानों के खाली हाथों के चलते ठप धंधे से बेहाल हैं।

नोटबन्दी का प्रभाव बाजारों के साथ ही फेरीवालों पर भी जबरदस्त रूप से पड़ा है। नोट बन्दी के साथ ही आलू और धान की गिरी कीमतों ने इनके धंधे को ग्रहण लगा दिया है। मो. अहमद बताते हैं, "रोजी रोटी की आस में वह अपना जिला छोड़ कर इधर आये थे। सुबह वाली ट्रेन से इधर आ जाते है व शाम वाली ट्रेन से बेच कर चले जाते हैं, लेकिन नोटेबन्दी के बाद से धंधा एकदम चौपट हो गया है। रोज सुबह गाँवों में बिक्री की उम्मीद लेकर निकल जाते हैं, लेकिन शाम को खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ता है। पहले की अपेक्षा बिक्री काफी कम हो गई है। किसी-किसी दिन तो एक भी सामान नहीं बिकता जिससे पेट पालना मुश्किल हो गया है।"

जमील बताते हैं, "थोक में बाजार से सामान खरीद लेते है। फिर हम लोग उन्हें बेचने बाहर निकल जाते हैं। जिससे परिवार का खर्च चला करता है, लेकिन नोटबन्दी के बाद से किसान के हाथ खाली हैं। इसलिए बिक्री न के बराबर ही रह गयी है।" कपड़े की फेरी करने वाले इरसाद भी मंदे धंधे से बेहाल हैं।

इरसाद बताते हैं, "इस समय सहालग का समय चल रहा है। जिससे गाँवों में काफी बिक्री की उम्मीद थी। नोटबन्दी के बाद से धंधा एकदम चौपट है। गाँव-गाँव घूमने के बाद भी बिक्री नहीं हो पा रही है। इसलिए इस समय फेरी पर जाना बन्द कर दिया है।" वहीँ गाँवों में गुहार लगाकर सामान बेचने वाले अन्य फेरी वाले भी नोट बन्दी के प्रभाव की जद में हैं। जिससे फेरीवालों का धंधा बुरी तरह लड़खड़ा गया है। वहीँ घर चलाने की चिंता इनकी दिक्कतें और बढ़ाये है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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