#स्वयंफेस्टिवल : खुरपका-मुंहपका बीमारी से बचने के लिए समय पर कराएं टीकाकरण
Manish Mishra 31 Dec 2016 12:47 PM GMT

हरी नारायण शुक्ला (कम्युनिटी रिपोर्टर) 38 वर्ष
स्वयं डेस्क
स्वयं फेस्टिवल : सातवां और अंतिम दिन। स्थान : गोण्डा का लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कॉलेज
स्वयं फेस्टिवल में गोण्डा में पशुओं के टीकाकरण शिविर का आयोजन हुआ। इसमें बताया गया कि गाँवों की अर्थव्यवस्था में पशुओं का बड़ा योगदान होता है। दुग्ध व्यवसाय से लाखों लोगों की जिंदगी जुड़ी है,ऐसे में खुरपका-मुंहपका जैसी बीमारियों से अगर पशु मर जाए तो निश्चित तौर पर बड़ा नुकसान है।
यह बीमारी होती कैसे है?
यह विषाणु जनित रोग है। अगर कोई पशु बीमार मवेशी के संपर्क में आ जाए तो उसे यह बीमारी हो सकती है। यह शरीर की बाह्य त्वचा के रास्ते खून में पहुंच जाते हैं और पांच से छह दिन में बीमारी के लक्षण सामने आ जाते हैं।
रोग का लक्षण?
इसमें तेज बुखार आता है। पशु खाना-पीना और जुगाली करना बंद कर देते हैं। दूध का उत्पादन घटने लगता है। छाले पड़ जाते हैं। बाद में ये छाले फटने के बाद घाव बन जाते हैं। इससे पशुओं को काफी पीड़ा होती है। मुंह में घाव के कारण पशु धीरे-धीरे खाना-पीना बंद कर देते हैं। खुरों में दर्द से लंगड़ाने लगते हैं। गर्भवती मादा में कई बार गर्भपात भी हो जाता है। नवजात मर जाते हैं। वयस्क पशुओं में मृत्यु दर कम है।
बचाव के उपाय?
इस रोग में डाक्टर एंटीबायटिक के इंजेक्शन लगाता है। मुंह व खुरों के घाव को फिटकरी या पोटाश के पानी से धोया जाता है। इससे धीरे-धीरे बीमारी ठीक हो जाती है।
-बचाव के लिए पशुओं को पोलीवेलेंट वेक्सीन के वर्ष में दो बार टीके अवश्य लगने चाहिए। बछड़े/बच्छिए में पहला टीका एक माह की आयु में, दूसरे तीसरे माह की आयु तथा तीसरा 6 माह की उम्र में और उसके बाद नियमित सारिणी के अनुसार टीके लगाए जाने चाहिए।
-बीमारी होने पर रोग ग्रस्त मवेशी को अलग कर देना चाहिए।
-बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को भी अलग रहना चाहिए।
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