हजारों सहकारी समितियों पर छाए संकट के बादल
Divendra Singh 31 March 2017 2:58 PM GMT

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। किसानों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए सहकारी साधन समिति की शुरुआत की गयी थी। आज इन गोदामों पर मिलने वाली नाममात्र की सरकारी सुविधाओं के कारण किसानों को इन केंद्रों से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। ऐसे में किसानों को प्रदेश के नए मुख्यमंत्री से उम्मीदें हैं कि शायद अब इन गोदामों का कुछ भला हो जाए।
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प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी. दूर शिवगढ़ ब्लॉक के देल्हूपुर बाजार में पिछले तीस वर्षों से भी अधिक समय से सहकारी साधन समिति चल रहा है, लेकिन किसानों को सुविधाएं न के बराबर मिलती हैं। देल्हूपुर सहकारी साधन समिति के सचिव रमेश गुप्ता कहते हैं, “गोदाम में कुछ साल पहले तक खाद और बीज आ जाता था, लेकिन पिछले कई साल से समय से नहीं आता है।
गोदाम की हालत भी खराब है, ऐसी हालत है कि बारिश में पानी गिरता रहता है।” साठ के दशक में बनीं इन साधन सहकारी समितियों का मुख्य उद्देश्य कृषकों को बिचौलियों के शोषण से मुक्त कराते हुए उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना एवं उनको सहकारिता के आधार पर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना था। इन केंद्रों पर फसल बीमा, सब्सिडी में बीज व खाद वितरण और किसान पंजीकरण जैसे कार्य होते हैं।
उत्तर प्रदेश सहकारी समिति कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल गौड़ समितियों के बारे में बताते हैं, “प्रदेश में ऐसी बहुत सी समितियां हैं जो पिछले कई वर्षों से बंद पड़ी हैं। ऐसे में नयी सरकार से यही उम्मीद है कि सबसे पहले इन समितियों को फिर से शुरू कर दी जाएं।” उत्तर प्रदेश सहकारी विभाग के अनुसार, प्रदेश में 8201 समितियां हैं, लेकिन अभी सिर्फ 7600 समितियां ही हैं जो चल रहीं है, इनकी भी हालत अच्छी नहीं है।
1200 समितियों को नहीं मिली राशि
मोहन लाल गौड़ आगे बताते हैं, “राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत प्रदेश की कई समितियों को पांच-पांच लाख रुपए भी मिले थे, जिनमें से 1200 समितियों को ये राशि नहीं मिली थी। सबसे बड़ी परेशानी समितियों के सचिवों को वेतन न मिलना है। सचिव को कमीशन के हिसाब से वेतन मिलता है। अगर कहीं पर छह हजार मिल रहे हैं तो कहीं पर 25 हजार भी मिल रहे हैं।”
लगातार घाटे में जा रही हैं समितियां
समितियों के पास किसानों को दिए गए लोन के रिकवरी का एक निर्धारित लक्ष्य होता है, लेकिन समितियां समय पर अपना लक्ष्य नहीं पूरा कर पाती हैं, जिससे समितियां लगातार घाटे में जा रही हैं। इसी वजह विभाग सचिव का वेतन रोक देती हैं।
तीन वर्षों से बंद पड़ा खाद का गोदाम
रायबरेली जिले के सतांव ब्लॉक के नकफुलहा गाँव के किसान रामनरेश सिंह (51 वर्ष) बताते हैं, ‘’गाँव में खाद का गोदाम पिछले तीन वर्ष से बंद पड़ा है। गोदाम न खुलने के कारण हम खाद और बीज शहर से खरीदकर लाते हैं। गोदाम खुलवाने के लिए हमने कई बार जिला कृषि अधिकारी को विभाग जाकर इसकी जानकारी दी, पर आज तक कुछ नहीं हुआ।’’
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