उम्र के उस पड़ाव में दे दिया तलाक जब जीवनसाथी की सबसे ज्यादा थी ज़रुरत

Swati ShuklaSwati Shukla   2 April 2017 10:04 AM GMT

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उम्र के उस पड़ाव में दे दिया तलाक जब जीवनसाथी की सबसे ज्यादा थी ज़रुरतजब होती हैं सबसे ज्यादा जरूरत तभी अपने साथ छोड़ देते हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। “जब मैं गर्भवती थी तो दहेज के लालच में मेरे पति ने डाक द्वारा तलाकनामा भेज दिया। रोज लड़ाई कर कहते कि माँ-बाप से कहो कि अपनी जायदाद मेरे नाम कर दें।” ये कहना है अलीगढ़ में रहने वाली प्रो. शैरिन मेशूर का, “जो तीन तलाक का जो दर्द हमने सहा है वह कोई और न सहे।“

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वहीं चिनहट में रहने वाली 52 साल की मूनीर जहां को उनके पति ने इस उम्र में तलाक दे दिया। वह बताती हैं, “मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि इस उम्र में मेरा तलाक हो जाएगा। तलाक क्यों हुआ इसका कारण भी मुझे नहीं पता था। तलाक के बाद बेटे ने पता किया तो मालूम चला कि दूसरी औरत के कारण तलाक दिया गया।”

मूनीर और प्रो. शौरीन की ज़िंदगी तीन तलाक ने बर्बाद कर दी। वो भी उम्र के उस पड़ाव पर जब जीवनसाथी की सबसे अधिक जरूरत होती है। तीन तलाक पर फिर से बहस छिड़ी है। मुस्लिम महिलाएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इसे प्रथा को खत्म करने की गुहार लगा रही हैं।

पारिवारिक न्यायालय एसोशिएशन लखनऊ के सुरेश नारायण मिश्रा बताते हैं, फैमिली कोर्ट में देखा जाए तो यहाँ तलाक के 60 फीसदी मामले ऐसे होते हैं। जिनमें 45 से 60 वर्ष की आयु के पति-पत्नियों को तलाक दे रहे हैं। इसमें तलाक मांगने वाले ज्यादातर आदमी ही होते हैं, महिलाओं की संख्या कम होती है। ये वो वर्ग जो ज्यादा पैसे वाले हैं। अधिवक्ता सुरेश नारायण मिश्रा बताते हैं, हाल में एक ऐसा केस आया है, जिसमें पत्नी की उम्र 50 वर्ष है और पति की उम्र 53 वर्ष है।

पति सरकारी नौकरी करते हैं। वहां पर एक महिला काम करती है, जिसकी उम्र 30 वर्ष है। उससे शादी करने के कारण अब इस औरत को तलाक देना चाहते हैं, लेकिन महिला नहीं चाहती की उसका तलाक हो। वहीं, ऑल इंण्डिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर बताती हैं, किसी मुस्लिम महिला की जिन्दगी इसलिए नहीं बर्बाद की जा सकती है कि उसके शौहर ने उसे तीन बार तलाक कह दिया हो। तलाक के नाम पर महिलाओं के साथ बहुत हद तक शोषण हो रहा है। यहीं नहीं मुस्लिम महिला को तलाक देने के बाद उसे कोई खर्च नहीं दिया जाता है। वो महिला अपनी जिन्दगी कैसे गुजारेगी, इसके लिए कोई नियम नहीं बना है।

जब खत्म हो जाती है सहनशीलता

एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इंस्टीट्यूट की अध्यक्ष रेनू मिश्रा बताती हैं कि महिलाएं हिंदू हो या मुस्लिम, दोनों को तलाक लेने का हक है, लेकिन अगर सरकार कोई ऐसा सिस्टम लाये कि उन्हें छत मिल जाए तो वह भी तलाक और खुले के लिए अपनी अर्जी लगा सकती है। वह जिंदगी भर आवाज नहीं देती सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके पास छत नहीं है। महिलाएं तभी तलाक मांगती हैं जब उनकी सहनशीलता खत्म हो जाती है।

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