प्रदेश के 7 प्रतिशत नवजात शिशु तोड़ देते हैं दम

Swati ShuklaSwati Shukla   21 May 2017 11:05 PM GMT

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प्रदेश के 7 प्रतिशत नवजात शिशु तोड़ देते हैं दमप्रतीकात्मक फोटो।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। यूपी में शिशु की मृत्यु दर कम करने के तमाम प्रयासों के बीच हकीकत यह है कि अभी भी सात प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है। बच्चों में मृत्यु दर का यह आंकड़ा हैरत में डालता है। लेकिन, प्रदेश में होने वाली मौत में एक से पांच साल उम्र के 1000 बच्चों में 54 बच्चे दम तोड़ देते हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए प्रयास कर रही साथ ही उसकी एनएमआर को कम करने के लिए प्रदेश 35 जिलों में डॅाक्टर और एएनएम को प्रशिक्षण दिया गया हे। बर्थ एस्फिक्सिया से होने वाली नवजात शिशु की मृत्यु पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। लेकिन, नवजात और एक से पांच साल की उम्र के बच्चों की मौत पर लगाम नहीं लग पा रही है। भारत में हर साल 54 लाख बच्चों का जन्म होता है, जिसमें से उत्तर प्रदेश में 7 प्रतिशत नवजात बच्चों की मौत होती है। अगर हम देखे की एक से पांच साल के 1000 में 51 बच्चों मृत्यु हो जाती है वही एक साल के अंदर 1000 में 46 बच्चों की मृत्यु होती है। वही 28 दिन के अन्दर 38 बच्चों की मृत्यु होती है। ये आंकड़े एसआरएस 2009 महारजिस्ट्रार, भारत द्यारा किया गया सर्वेक्षण है।

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पिछले चार सालों से नवजात शिशुओं को बचाने की दिशा में काम करने वाली संस्था सेव द चिल्ड्रेन के जीएम, स्टेट प्रोग्राम सुरोजित चटर्जी बताते है, ''लगभग 20 प्रातिशत शिशुओं की मौत सांस लेने में होने वाली समस्या से होती है। नवजात के लिए शुरूआती 28 दिनों तक का समय बहुत मुश्किल भरा होता है। जरा सी भी चूक होने पर बच्चों की मौत हो सकती है।''

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उनके आंकड़ों के अनुसार 28 दिन में सबसे ज्यादा बच्चे की बर्थ एस्फिक्सिया, वजन कम होने और संक्रमण के कारण मौत हो जाती है। अगर हम गाँव की बात करे, तो लोगों इस बीमारी के बारे में जानकारी ही नहीं होती। बर्थ एस्फिक्सिया इसमें सबसे बड़ी समस्या है जिसमें एनएनएम, डॅाक्टर और आशा बहुओं को पूरी तरह जानकारी न होने के कारण सांस न ले पाने की वजह से नवजात दम तोड़ देते हैं। इसके लिए उनकी संस्था स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण दे रही है। प्राथमिक केन्द्रों में नवजात पुनर्जीवनकारी बैग एवं मॅास्क दिया गया है। इसके प्रयोग को भी बताया गया है।

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सेव द चिल्ड्रेन और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के डॅा. मनाजिर अली ने नवजात शिशुओं के पीछे होनी वाली मौत की जानकारी दी। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्होंने बताया कि बच्चों को सांस की समस्या तीन दिनों के अन्दर ज्यादा होती है। दिमाग में आक्सीजन की कमी होने के कारण बच्चों की मृज्यु जल्दी होती है। इसके लिए एक बैग तैयार किया गया जिसका प्रयोग करना बहुत आसान है। एक मिलियन होने वाली बच्चों की मौत को इस मशीन से कम करने का सबसे आसान तरीका है। इसके प्रयोग का प्रशिक्षण बहुत से जिलों में दिया गया।

प्रदेश में नवजात शिशुओं की जान बचाने के लिए सेव द चिल्ड्रेन के प्रयासों से कई नवजातों की जिन्दगी बचाई है। यह सबसे पहले प्रदेश के तीन जिलों में चलाया गया, जिसके अर्न्तगत 783 एसबीए शामिल किए गए। गोंडा में 299 प्रशिक्षु और अलीगढ़ से 353 प्रशिक्षु , रायबरेली में 131 प्रशिक्षु शामिल हुंए। को इसके लिए प्रदेश के 35 जिलों में एएनएम को प्रशिक्षण दिया गया है।

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