फीकी पड़ रही पूर्वांचल की प्रमुख ‘धोबिया नृत्य’ लोक कला

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   31 Jan 2017 3:24 PM GMT

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फीकी पड़ रही पूर्वांचल की प्रमुख ‘धोबिया नृत्य’ लोक कला‘धोबिया’ लोक कला पूर्वांचल की प्रमुख लोक कला है। उत्तर-प्रदेश राज्य के भोजपुरी क्षेत्र के धोबी समाज में यह लोक कला ‘सामूहिक लोक कला’ के रूप में जाना जाता है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पाश्चात्य संस्कृति की बढ़ती लोकप्रियता के कारण उत्तर प्रदेश की परम्परागत (धोबिया, बिदेसिया, फरूवाही) लोककलाओं की गूंज कम होती जा रही है। जनपद गाजीपुर के अरखपुर गाँव के प्रख्यात युवा धोबिया कलाकार जीवनराम (30 वर्ष) बताते हैं, “धोबिया कला हमारे पूर्वजों की देन है। हम इसमें कसावर, मृदंग- पखावज, झांझ व रणसिंघा जैसे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करते हैं। यह ज़्यादातर शादी समारोह और बरातों में किया जाता रहा है। आज कल लोग शादियों में फिल्मी गीत, डीजे बजवाते हैं, जिससे धोबिया कम होती जा रही है|”

‘धोबिया’ लोक कला पूर्वांचल की प्रमुख लोक कला है। उत्तर-प्रदेश राज्य के भोजपुरी क्षेत्र के धोबी समाज में यह लोक कला ‘सामूहिक लोक कला’ के रूप में जाना जाता है। ‘धोबिया’ लोक कला के अंतर्गत धोबिया लोक गीत, धोबिया नाच, धोबिया नौटंकी, धोबिया वेश-भूषा, धोबिया लोक संगीत, धोबिया मिथक, धोबिया वाद्ययंत्र, धोबिया लोक संस्कृति, धोबिया साहित्य, धोबिया कहावतें और धोबिया लोकविश्वास इत्यादि लोक कलाओं का हिस्सा है। ‘धोबिया’ लोक कला भोजपुरी की प्रमुख लोक कला है।

मांगलिक समारोहों की शान समझे जाने वाले धोबिया नृत्य को प्रदेश के पूर्वांनचल समेत पूरे देश में काफी पसंद किया जाता था। आज इस कला से जुड़े कलाकार, काम ना मिल पाने के कारण परेशान हैं। जीवनराम के साथ पहले 30 से ज़्यादा लोग यह नृत्य करते थे, वहीं अब इस नृत्य के घटते चलन के कारण उनकी टोली में काम करने वाले लोगों की संख्या लगातार कम हो रही है।

धोबिया नृत्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना के बारे में उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के प्रांतीय अधिकारी डॉ. लवकुश द्विवेदी बताते हैं, “धोबिया नृत्य कला राज्य की सबसे प्राचीन नृत्य कलाओं में से एक है। धोबिया जैसी अन्य लोककलाओं को जीवित रखने के लिए प्रदेश सरकार हर वर्ष सांझी विरासत औऱ लखनऊ महोत्सव जैसे आयोजनों में धोबिया कलाकारों को बुलाकर उन्हें सम्मानित करती है।”

धोबिया नृत्य में किया जाता है लिल्ली घोड़ी का उपयोग

जीवनराम के साथ उनकी टोली में 15 सदस्य हैं। धोबिया नृत्य में लिल्ली घोड़ी का उपयोग किया जाता है। इस नृत्य में कलाकार लिल्ली घोड़ी पर सवार होकर विभिन्न मुद्राओं में मंच पर कूदते हैं जो दर्शकों को भाता है। जीवन राम आगे बताते हैं “अभी तक हम इस नृत्य को निजी तौर पर गाँवों में होने वाली शादी-बारातों में ज्यादा करते थे, जिसमें सौ-दो सौ रुपए मिल जाते थे। सरकार हमारी मदद करे तो हम लगातार अपनी धोबिया कला को आगे बढ़ाते रहेंगे।”

सिर्फ पुरुष कलाकार करते हैं यह नृत्य

धोबिया नृत्य कला में भाग लेने वाले कलाकार विशेष वेशभूषा धारण करते हैं। इसमें घाघरा, अधबहियां, पगड़ी और कसनहटी) शामिल है। इस नृत्य को सिर्फ पुरुष कलाकार ही करते हैं।

उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग आने वाले समय में प्रदेश के पूर्वांचल, बृज, पश्चिमांचल और अवध जैसे संस्कृति मंडलों को इस मुहिम से जोड़ेगा। इससे दूर दराज से आए ग्रामीण कलाकारों को एक बड़ा मंच मिलेगा।
डॉ. लवकुश द्विवेदी, प्रांतीय अधिकारी, उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग

धोबिया नृत्य से जुड़ी कहानी

पुरबिया रंग कार्यक्रम में भाग ले रहे बुज़ुर्ग धोबिया कलाकार रामजनम (70वर्ष) ढोलक बजाते हैं। इस लोककला से जुड़ी कहानी के बारे में वो बताते हैं, “यह नृत्य शैली धोबी समाज से जुड़ी है। जब पहले धोबी समुदाय के लोग अपने राजा के कपड़ों को घाट ले जाकर धुलते थे तब वो एक विशेष तरह का गीत गाते थे। यहीं से धोबिया लोककला का जन्म हुआ।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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