सौ वर्षों से उन्नाव के इस मंदिर में लग रहा है मेला

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सौ वर्षों से उन्नाव के इस मंदिर में लग रहा है मेला20 मार्च से यहां तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

श्रीवत्स अवस्थी, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बीघापुर(उन्नाव)। नगर पंचायत बीघापुर स्थित माता संदोही मंदिर भक्तों के बीच आस्था का केंद्र बिंदु बना हुआ है। दूर दराज से भारी संख्या में लोग इस मंदिर में माथा टेकने आते हैं। माना जाता है कि प्राचीन मंदिर क्रांतिकारियों की शरणस्थली भी हुआ करता था।

बुजुर्ग लोग मंदिर का इतिहास बहुत ही दिलचस्प तरीके से सुनाते हैं। पौराणिकता को लेकर विख्यात माता संदोही मंदिर में सौ वर्ष पूर्व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की नींव पड़ी थी। जिसे अनवरत जारी रखा गया है। जिसके तहत 20 मार्च से यहां तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

माता संदोही मंदिर की स्थापना बंजारा समाज ने कई सैकड़ों वर्ष पूर्व कराई थी। मंदिर का उल्लेख ऐतिहासिक आल्हाखण्ड में मिलता है। सर्वप्रथम प्रकाशित आल्हाखण्ड जिसे असली आल्हाखण्ड कहा जाता है में देवनागरी लिपि में मुंशी राम स्वरूप के द्वारा तत्कालीन अंग्रेज अफसर बहादुर मिस्टर सीई इलिएट जो कि फर्रुखाबाद का बन्दोबस्त कलेक्टर था, उसकी अनुमति पर प्रकाशित किया गया था। इसी अंग्रेज अफसर ने इस आल्हा खण्ड को अंग्रेजी में अनुवाद करा कर लंदन भेज दिया था। इसी अनुवाद में माता सन्दोही देवी की महत्ता का वर्णन मिलता है। अफसर द्वारा बनाए गए रिकार्ड में इस बात का जिक्र है कि बीघापुर का माता संदोही देवी का मंदिर विद्रोहियों का बड़ा केन्द्र था।

संवत् 19२1 में प्रकाशित असली आल्हा खण्ड को पं भोले नाथ जी व लखीमपुर खीरी ’अवध’ के नारायण प्रसाद सीताराम ने कुछ संशोधनों के साथ प्रकाशित किया था इसके दस्तावेजीय प्रमाण भी हैं। बुजुर्ग यह भी बताते हैं कि घने जंगलों के बीच छिपे होने के कारण अंग्रेजों के खिलाफ क्रान्तिकारी अपनी रणनीतियों को यहीं इसी माता संदोही देवी मंदिर में बैठकर अंजाम दिया करते थे। मंदिर के उत्तर दिशा में विशाल तालाब है जिसमें पक्का घाट भी बना है। कालान्तर में इसी तालाब से लोग अपनी प्यास बुझाया करते थे। वहीं पास ही बना यात्री विश्रामालय बारादरी दूरदराज से आने वाले यात्रियों के लिए आज भी सुकून देती है।

सौ साल पहले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की हुई थी शुरुआत

कस्बे के बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग 10 वर्ष पहले शिवबालक ने मंदिर के आसपास के जंगल को साफ करा कर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू कराया था। तब से लेकर आज तक उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता आ रहा है। 20 मार्च से मंदिर कमेटी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कराने जा रही है।


    

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