गाँवों में पहले बनेंगे दिव्यांगों के शौचालय

Swati ShuklaSwati Shukla   21 Jan 2017 10:55 AM GMT

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गाँवों में पहले बनेंगे दिव्यांगों के शौचालयदिव्यांगों को सहूलियत देने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब गाँवों में सबसे पहले दिव्यांगों के लिए शौचालय बनवाए जाएंगे।                                           प्रतीकात्मक फोटो

स्वयं प्रोजक्ट डेस्क

लखनऊ। दिव्यांगों को सहूलियत देने के लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब गाँवों में सबसे पहले दिव्यांगों के लिए शौचालय बनवाए जाएंगे।

दिव्यांगों के लिए अलग से शौचालय बनाये गये हैं। आंकड़ों को एकत्रित किया जा रहा है। हम लगातार प्रयास कर रहे है कि सभी गाँव खुले में शौच मुक्त हों। दिव्यांगों के लिए अलग से शौचालय बनाने का पैसा नहीं आता, लेकिन प्राथमिकता के आधार पर हम लोग दिव्यांगों के लिए पहले शौचालय बनवा रहे हैं।
विजय किरण आनन्द, निदेशक, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)

जिला मुख्यालय से 24 किमी बक्शी का तालाब ग्राम पंचायत भगौतीपुर के प्रधान माता प्रसाद गौतम (35 वर्ष) बताते हैं, “हमारे गाँव में कई दिव्यांग है जिनके लिए केवल एक ही शौचालय है, दो शौचालय बनवाने हैं। आठ माह से एक पैसा नहीं मिला।”

भगौतीपुर गाँव में रहने वाले दिव्यांग मोहित गर्ग (17 वर्ष) बताते हैं, “शौचालय बनवाने के लिए प्रधान से कई बार कहा है। प्रधान हर बार यही कहते हैं कि शौचालय बनवाने के लिए पैसा जिस दिन आ जाएगा उस दिन शौचालय बनवा देंगे। अभी गाँव में एक दिव्यांग के घर में शौचालय बना है। चलने-फिरने में बेहद दिक्कतें होती है। हमको खेत और बाग में जाना पड़ता था। इसके लिए किसी का सहारा लेना पड़ता था।”

लखनऊ के मुख्य विकास अधिकारी प्रशांत शर्मा ग्राम प्रधानों की लापरवाही के बारे में बताते हैं, “सरकार की तरफ से इतना बजट भी नहीं आता है कि हम पूरे गाँव में शौचालय बनवा सके। सरकार की तरफ से एक शौचालय का 12 हजार रुपये आता है अगर हम पूरे गाँव में शौचालय बनवाएंगे तो इतना पैसा हमारे पास नहीं है।”

पहरख ब्लॉक के बलछत के ग्राम प्रधान अन्ना सिंह (48 वर्ष) बताते हैं, “हमारी ग्राम पंचायत में चार दिव्यांगों के शौचालय बनवाये गये है। इसका पूरा पैसा मनरेगा के तहत मिला था। ये दिव्यांग खेत और बाग में शौच के लिए जाते थे। यहां पर शौचालय बनने के बाद बाराबंकी में बहुत से लोग है जो दिव्यांगों के लिए शौचालय बनवा रहे है।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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