विधानसभा चुनावों में बाढ़ विस्थापित नहीं बने मुद्दा

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विधानसभा चुनावों में बाढ़ विस्थापित नहीं बने मुद्दाचुनाव में बाढ़ विस्थापितों का मुद्दा किसी भी पार्टी ने नहीं उठाया है।

बसंत कुमार, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बहादुरगंज-सीतापुर। चुनाव में बाढ़ विस्थापितों का मुद्दा किसी भी पार्टी ने नहीं उठाया है। जिला मुख्यालय से पूर्व दिशा की ओर 100 किलोमीटर दूर स्थित कृष्णा नगर में 2012 में घाघरा नदी में आई बाढ़ में अपना सब कुछ खोने वालों को सरकार ने बसा तो दिया, लेकिन उन्हें कोई सुविधा नहीं दी। विस्थापितों का परिवार चार साल बाद भी अंधेरे में रहने को मजबूर है। पढ़ने के लिए स्कूल नहीं है। इस गाँव में 45 से ज्यादा परिवार बदहाल जिंगदी जीने को मजबूर हैं।

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घाघरा नदी की कटान में हमारा घर-बार सब डूब गया। सरकार ने हमें दूसरी जगह बसाया, लेकिन यहां कोई इंतजाम नहीं किया है। हम अंधेरे में रहते हैं। सड़कें नहीं हैं। कोई बीमार हो जाए तो आसपास अस्पताल नहीं है।
शीतल निषाद, गाँव कृष्णानगर

प्रधान अपनी नाकामी को छुपाने के लिए शासन को दोषी बता रहे हैं। पैसे तो प्रधान के खाते में जाते हैं, उनमें इच्छाशक्ति होती तो अब तक काम करा लिया होता। दो लाख तक का काम प्रधान स्वयं कर सकते हैं। सड़क-बिजली के लिए क्षेत्र के विधायक और सांसद को लिखना होता है।
तुलसीराम, ग्राम पंचायतीराज अधिकारी, सीतापुर

कृष्ण नगर गाँव जाने का रास्ता बेहद खराब है। वहां एम्बुलेंस या चारपहिए वाली गाड़ी ले जाना नामुमकिन लगता है। गाँव के ज्यादातर लोगों का घर घास-फूस का बना हुआ है। गाँव के रहने वाले शीतल निषाद बताते हैं, “हमारे गाँव में कुछ भी नहीं है। घाघरा नदी ने हमारा सब कुछ छीन लिया और सरकार ने हमें कुछ दिया ही नहीं। मेरी वहां 20 बीघे ज़मीन थी, लेकिन यहां सरकार ने सिर्फ तीन बिसवा (एक बिसवा में 3 बीघा) ज़मीन दी है। कुछ लोगों को तो अभी ज़मीन भी नहीं मिली है।” गाँव के रहने वाले मुनीम (22 वर्ष) बताते हैं, ‘मैं पढाई नहीं कर पाया हूं, अनपढ़ हूं।’ मुनीम बताते हैं, “हमारे गाँव के 45 घरों में सिर्फ एक लड़का दसवीं पास है। यहां से स्कूल दूर होने और गरीबी के कारण बच्चे पढ़ नहीं पाते हैं। यहां के 15 से 20 साल ले ज्यादातर बच्चे लखनऊ और दिल्ली मजदूरी करने चले जाते हैं।”

विकास के लिए जो भी काम हो सकते हैं उसका बजट बनाकर हमने प्रशासन को कई बार दिया, लेकिन प्रशासन ने कभी भी यहां कोई काम नहीं किया। पिछले एक साल से मैं यहां से प्रधान हूं। मैं खुद चाहता हूं कि इस गाँव का विकास हो, लेकिन बजट ही नहीं मिल पा रहा तो क्या कर सकता हूं।
सुधेन्द्र तिवारी, मुकुंद गाँव के प्रधान

तीन सौ परिवार नहीं कर सके मतदान

कनखी घाट से आकर यहां बसे रामचरण ( 60 वर्ष) उदास लहजे में बताते हैं, ‘‘हमें तो वोट देने का अधिकार ही नहीं मिला है। गाँव के रहने वाले 300 से ज्यादा वोटर विधानसभा चुनाव में वोट नहीं कर पाए। ऐसा इसलिए हुए क्योंकि हमारा नाम वोटर लिस्ट में शामिल ही नहीं किया गया है। हम पहले जहां रहते थे, वहां हमारा नाम वोटर लिस्ट में था, लेकिन यहां अधिकारियों (बूथ लेवल ऑफिसर) ने बहुत कहने के बावजूद भी हमारा नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किया।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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