नोटबंदी की वजह से मुरझाए फूल, चुनावी माहौल में भी फूलों की नहीं मिल रही अच्छी कीमत

Neetu SinghNeetu Singh   11 Feb 2017 4:08 PM GMT

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नोटबंदी की वजह से मुरझाए फूल, चुनावी माहौल में भी फूलों की नहीं मिल रही अच्छी कीमतगेंदा की जाफरी किस्म की प्रजाति दिसंबर माह में बाजार में आ जाती है, इस बार नोटबंदी की वजह से लोगों ने सजावट के खर्चों में कटौती कर दी।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कानपुर देहात/मैनपुरी। गेंदा की जाफरी किस्म की प्रजाति दिसंबर माह में बाजार में आ जाती है, इस बार नोटबंदी की वजह से लोगों ने सजावट के खर्चों में कटौती कर दी जिससे किसानों को इस बार नुकसान उठाना पड़ा रहा है। चुनाव और सहालग का बिगुल बजते ही इन किसानों में उम्मीद की एक किरण जागी है।

कानपुर देहात जिले के चाहे राजू सैनी की बात हो या फिर मैनपुरी जिले के रवि पाल की बात हो। दोनों ही किसान पिछले कई वर्षों से गेंदा की खेती कर रहे हैं। अच्छा मुनाफा मिलने की वजह से हर साल ये किसान फूलों की खेती का रकबा बढ़ाते जा रहे थे, लेकिन इस बार नोटबंदी की वजह से इन किसानों को लागत निकलना मुश्किल हो रहा है।

हमारे पास अपने खेत नहीं हैं, इस बार 10 बीघे लगान पर खेती लेकर गेंदा की खेती की, पहली बार ऐसा हुआ है कि रकम निकालना मुश्किल पड़ रहा है।
राजू सैनी, किसान

मैनपुरी जिले के किसान रवि पाल (28 वर्ष) एमबीए की पढ़ाई करने के बाद नोएडा की एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे। रवि अपने गाँव पद्मपुर छिबकरिया वापस आकर गेंदे की खेती करने लगे। गेंदे की खेती की दो बीघे से शुरुअात करने वाले रवि ने 20 बीघे तक इसकी खेती की। रवि बताते हैं, “मैनपुरी जिले में इस बार 60-70 बीघा गेंदे की खेती हुई है, जिस समय किसानों को अपनी फसल का लाभ मिलना था उस समय नोटबंदी हो गयी।” वो आगे बताते है, “नोटबंदी के बाद जितने भी कार्यक्रम हुए उसमें लोगों ने पैसे के अभाव में सजावट के खर्चों में कटौती कर दी, जिससे पैदावार बेहतर होने के बाद भी किसानों को इसका लाभ नहीं मिल सका।”

मैनपुरी जिले में इस बार 60-70 बीघा गेंदे की खेती हुई है, जिस समय किसानों को अपनी फसल का लाभ मिलना था उस समय नोटबंदी हो गयी।
रवि पाल, स्थानीय किसान

गेंदे में जाफरी किस्म की प्राजाति लगाने वाले किसानों के खेत में पैदावार तो खूब हुई है लेकिन जिस समय फूल खेत से मार्केट में बिक्री के लिए आया उसी समय नोटबंदी की वजह से पैसे की किल्लत आ गयी। 10-12 रुपए किलो बिकने वाला गेंदा किसानों को दो तीन रुपए किलो बेचना पड़ा।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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