गधों और घोड़ों पर मंडरा रहा है लाइलाज बीमारी का खतरा, इस बीमारी का इलाज है सिर्फ मौत

Diti BajpaiDiti Bajpai   6 March 2017 9:59 PM GMT

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गधों और घोड़ों पर मंडरा रहा है लाइलाज बीमारी का खतरा, इस बीमारी का इलाज है सिर्फ मौतअश्व प्रजातियों में होने वाली लाइलाज बीमारी ग्लैंडर्स आने वाले समय में घातक साबित हो सकती हैं

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। अश्व प्रजातियों में होने वाली लाइलाज बीमारी ग्लैंडर्स जिस तरह से फैल रही है, अगर इन पर रोक न लगी तो ये महामारी का रूप ले सकती है। क्योंकि इस बीमारी के संक्रमण से इंसानों पर भी असर पड़ेगा।

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हाल ही में लखीमपुर खीरी जिले में दो खच्चरों में ग्लैंडर्स रोग की पुष्टि हुई है। इसके साथ ही पशुपालन विभाग ने पांच किमी के दायरे में अब तक करीब 93 अश्व प्रजाति के पशुओं के रक्त के नमूने एकत्र कराकर राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान हिसार हरियाणा को भेजा है। लखीमपुर जिले में अश्व प्रजातियों के हित में काम करने वाली संस्था ब्रुक्स इंडिया के जिला समन्यवक अजय कुमार चौबे बताते हैं, “अभी हमारे जिले में दो खच्चरों में रोग के लक्षण दिखे थे, बाद में उसमें रोग की पुष्टि हो गयी। हमने जिले भर में अश्व पालकों को जागरुक कर रहे हैं, ये रोग पशुओं से इंसानों में भी फैल जाती है, जिसका कोई इलाज नहीं है।”

19वीं जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में अश्व प्रजाति (घोड़ा, गधा, खच्चर) के दो लाख 51 हजार पशु हैं, इससे लाखों परिवारों की अजीविका जुड़ी हुई है। ग्लैंडर्स जीवाणु जनित रोग है। अगर कोई पशुपालक इस बीमारी से ग्रसित पशु के संपर्क में आता है तो यह मनुष्यों में भी फैल जाती है। पशुपालक को होने वाले नुकसान के बारे में पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. वीके सिंह बताते हैं, ‘’इस बीमारी से पशुपालक को काफी नुकसान होता था क्योंकि भूमिहीन और अल्पसंख्यक पशुपालकों की आजीविका का साधन वही होता है। इसीलिए भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार मुआवजा भी देने लगी है। इस बीमारी का न तो कोई उपचार है और न ही कोई टीका निजात किया गया है।”

उन्होंने आगे बताया, “इस बीमारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए प्रदेश भर में पशुचिकित्सकों को इस बारे से जुड़ी जानकारी और ट्रेनिंग दी जा रही है। इसकी रोकथाम के लिए प्रदेश में सर्विलांस चलाया जा रहा है। इसके तहत यूपी के हर गाँव में जाकर पशुओं की जांच की जाएगी। इस बीमारी से घोड़े के मरने पर 25,000 रुपए और गधों, खच्चर के मरने पर 16000 रुपए की धनराशि पशुपालकों को दी जाती है।”

बरतें सतर्कता

यह बीमारी कुछ दिन से लेकर महीनों तक प्रभावित करती है, अगर पशुपालक को इस बीमारी के लक्षण दिखें तो तुरंत पास के पशु चिकित्सालय में इसकी सूचना दें और खून की जांच कराए। इसके लिए विभाग द्वारा समय-समय पर जिले में खून की जांच होती है।

लक्षण

  • गले व पेट में गांठ पड़ जाना।
  • जुकाम होना (लसलसा पदार्थ निकलना)।
  • श्वास नली में छाले।
  • फेफड़े में इन्फेक्शन।

इस बात का रखें ध्यान

इस बीमारी से प्रभावित पशु को मारने के बाद गड्ढे में दबा देना चाहिए या जला देना चाहिए। गड्ढा चार फीट का होना चाहिए।

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