सूफी की दरगाह पर उड़ा सौहार्द का रंग, 12 कुंटल गुलाल से सराबोर हुए जायरीन

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सूफी की दरगाह पर उड़ा सौहार्द का रंग, 12 कुंटल गुलाल से सराबोर हुए जायरीनदेवां हाजी वारिश अली शाह की दरगाह पर होली खोलते लोग।

अरुण मिश्रा, स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

देवां (बाराबंकी)। देश की इस दरगाह पर हमेशा की तरह प्रेम और सौहार्द के रंग उड़े। लोगों ने एक दूसरे को रंग और गुलाल तो लगाया ही गुलाब की बारिश कर होली की फिजा में एक नया रंग भर दिया। बाराबंकी में हाजी साहब की दरगाह पर होली पर शांति और सौहार्द की एक बार फिर इबारत लिख गई।

बाराबंकी मुख्यालय के उत्तर 13 किमी दूर देवां शरीफ में होली पर उड़ते गुलाल के रंगों से शांति और सौहार्द की नई इबारत लिखी जाती है। सूफी संत की दरगाह की होली को देखने और उसमे शरीक होने के लिए प्रतिवर्ष काफी दूर दूर के जायरीन क़स्बा पहुँचते हैं।

दरगाह की होली में शामिल होते हैं सभी धर्मों के लोग।

"जो रब है वही राम है "के अमर सन्देश से विश्व को आपसी प्रेम और भाईचारे की शिक्षा देने वाले महान सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर वैसे तो हर त्योहार उल्लास से मनाया जाता है परंतु इन त्योहारों में होली का अपना अलग स्थान हैं। बताते हैं कि सरकार हाजी वारिस अली शाह साहब हर वर्ष होली के दिन कस्बे में मौजूद रहकर अपने शिष्यों और क़स्बा वासियों के साथ होली खेलते थे। होली खेलने के बाद उन्हें वह अपने आशीर्वाद से नवाजते थे। दरबार में होली खेलने की यह परम्परा आज भी चली आ रही है।

कई दशकों से कस्बे में होली के आयोजन की कमान" वारसी होली कमेटी नें संभाल रखी है। यह कमेटी भी सद्भाव की अनूठी मिसाल है।इसके अध्यक्ष शहजादे आलम वारसी हैं तो सचिव डॉ.जगदीश निगम। उपसचिव के पद पर सभासद शकील अहमद सहित कई अन्य लोग भी अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन करते आ रहे हैं।

होली के दिन कौमी एकता गेट पर फूलों की वर्षा के साथ उठने वाले चाँचर जुलूस का नेतृत्त्व चेयरमैन साहबे आलम वारसी ने किया। डीजे और बैंड बाजे के साथ एक दूसरे को रंगों से सराबोर करते हुए हुरियारों का जुलूस नगर के कई मोहल्लों से गुजरा। इसके बाद दोपहर 12 बजे के करीब जब यह जुलूस मजार परिसर में पहुँचा तो काफी संख्या में मौजूद अन्य लोग भी इसमें शरीक हो गए।फिर या वारिस हक़-वारिस के जयघोष के साथ परिसर में गुलाब की पंखुड़ियों और रंगों के बादल छा गए।लोग एक दूसरे को रंगों से सराबोर कर एवं गले मिलकर त्यौहार की बधाई देने लगे। मजार पर मौजूद एहरामपोश फुकरा भी अपने पीर की दरगाह पर होली खेलने में मशगूल हो गए।

देवां के कौमी एकता द्वार पर इस तरह होली खेल रहे लोगों पर की गई गुलाबों की बरसात।

हजारों जायरीन सौहार्द के इन अदभुद और अविस्मरणीय दृश्य के साक्षी बनकर अभिभूत हो उठे। वहीँ होली पर यहां उड़ते इंद्रधनुषी रंगों से सौहार्द की वह सुगंध निकली जो लोगों को सदैव प्रेम,सद्भाव और विश्व बंधुत्त्व का सुखद अनुभव हमेशा कराती रहेगी।

12 कुंटल गुलाल से होली

वारसी होली कमेटी के अध्यक्ष शहजादे आलम वारसी बताते हैं, “वैसे तो मजार पर होली सरकार के जमाने से होती आई है लेकिन करीब 40 साल पहले होली कमेटी का गठन हुआ, इसमें सभी धर्मों के लोग हैं। होली पर करीब 12 क्विटल गुलाल और डेढ़ क्विंटल गुलाब की पंखुड़ियों से होली खेली जाती है। इनमे से 4 क्विंटल पीला गुलाल केवल मजार पर ही उड़ाया जाता है।”

सूफी की दरगाह पर होली का जश्न।

        

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