विश्व रंगमंच दिवस: थिएटर देखने का मौका आज भी निकाल लेते हैं लोग
Divendra Singh 27 March 2019 7:30 AM GMT

एक दौर था जब सिनेमा की शुरुआत तक नहीं हुई थी, तब भी लोगों का मनोरंजन होता था, लेकिन तब जरिया था रंगमंच। आज जब हिन्दी सिनेमा अपने चरम पर है, हर हफ्ते दर्जनों फिल्में रिलीज होती हैं, लेकिन अभी भी एक तबका है जो थिएटर को पसंद करता है।
आज के दिन 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस के रूप में मनाया जाता है, विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी। रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है।
लखनऊ के विकास नगर की रहने वाले दिव्या शुक्ला हर हफ्ते थिएटर देखने जाती हैं। दिव्या बताती हैं, "एक समय था जब थिएटर के लोग दिवाने थे, लेकिन अबकी पीढ़ी थिएटर के बजाय सिनेमा जाना पसंद करती हैं, लखनऊ में अभी भी बेहतर नाटक होते हैं। जिन्हें देखने वाले अभी भी हैं।"
भारत में हुई थी नाट्यकला की शुरुआत
भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है। ऐसा माना जाता है कि नाट्यकला का विकास सबसे पहले भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं। इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं। अनुमान किया जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर लागों ने नाटक की रचना की और नाट्यकला का विकास हुआ।
यथासमय भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया। भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटकों के विकास की प्रक्रिया को लिखा है, "नाट्यकला की उत्पत्ति दैवी है, अर्थात दु:खरहित सत्ययुग बीत जाने पर त्रेतायुग के आरंभ में देवताओं ने स्रष्टा ब्रह्मा से मनोरंजन का कोई ऐसा साधन उत्पन्न करने की प्रार्थना की जिससे देवता लोग अपना दु:ख भूल सकें और आनंद प्राप्त कर सकें।"
रंगमंच को भी मिलना चाहिए बढ़ावा
नाटक के अपेक्षा अधिक महत्व रखने लगा सिनेमा की बढ़ती हुई लोकप्रियता और रंगमच का सिकुड़ता हुआ प्रभाव क्षेत्र को देखकर ऐसा लगता है कि कल को थिएटर न रहे। जिस तरह से सिनेमा को बढ़ावा मिल रहा है, थिएटर अभी भी इससे वंचित है। जहां फिल्में एक ही हफ्ते में करोड़ों रुपए कमा लेती है, थिएटर को दर्शक भी नहीं मिल पाते हैं। लखनऊ के रंगकर्मी मुकेश वर्मा सरकार द्वारा रंगमंच और रंगकर्मियों की उपेक्षा के बारे में कहते हैं, "सरकार जितनी भी योजनाएं बनाती है, सब सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए बनते हैं, जिस तरह से सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपए दिए जा रहे हैं, थिएटर के लिए भी कुछ करना चाहिए।" वो आगे बताते हैं, "लखनऊ में ऐसा कोई आडिटोरियम नहीं जिसमें दर्शक घंटों बैठ सके, सभी की हालत खराब है।"
कालिदास से लेकर धर्मवीर भारती ने लिखे नाटक
कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुंतलम, मोहन राकेश का आषाढ़ का एक दिन, मोलियर का माइजर, धर्मवीर भारती का 'अंधायुग', विजय तेंदुलकर का 'घासीराम कोतवाल' श्रेष्ठ नाटकों की श्रेणी में हैं। भारत में नाटकों की शुरूआत नील दर्पण, चाकर दर्पण, गायकवाड और गजानंद एंड द प्रिंस नाटकों के साथ इस विधा ने रंग पकड़ा।
रंगमंच को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण बच्चों को सिखा रहे अभिनय
यहां ग्रामीणों को नाटकों के जरिए सिखाया जाता कि कैसे जापानी इंसेफ्लाइटिस जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है। जिला कारागार में बंद कैदियों को नाटकों के जरिए सिखाया जाता है कि अपनी भावनाओं को कैसे व्यक्त कर सकते हैं। सिद्धार्थनगर की गैर सरकारी संस्था नवोन्मेष पिछले दस वर्षों से जिलेभर में नाटकों के जरिए ग्रामीणों में दहेज, बाल विवाह, इंसेफ्लाइटिस जैसे कई मुद्दों पर जागरूक कर रही है। नवोन्मेष संस्था के माध्यम से सिद्धार्थनगर में पिछले पांच वर्षों से नाट्य उत्सव का भी आयोजन किया जाता है।
इसमें देश भर के कलाकर हिस्सा लेते हैं। विजित बताते हैं, "पहले साल में तीन दिन का नाट्य उत्सव का आयोजन किया गया, दूसरे साल चार दिनों का लेकिन देश भर के कलाकर यहां आना चाहते थे इसलिए अब सात दिनों का नाट्य उत्सव का आयोजन किया जाता है।" वो आगे कहते हैं, "मेरे आने से पहले सिद्धार्थनगर में थिएटर शून्य था, लेकिन अब लोगों का रुझान थिएटर और नाटकों के प्रति बढ़ रहा है।"
रंगमंच ने दिए हैं कई अभिनेता
पथ्वीराजकपूर, सोहराब मोदी, गिरीश कर्नाड, नसीरुद्दीन शाह, परेश रावल, अनुपम खेर से लेकर मानव कौल तक कई नाम हैं, जिन्होंने रंगमंच से लेकर सिनेमा तक अपने अभिनय की छाप छोड़ा है। एक दौर था जब पृथ्वी थिएटर में सभी बड़े अभिनेता अभिनय किया करते थे।
ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।
encephalitis Theater International Theater Institute rangamaca Dharmveer Bharti #story
More Stories