ईंट भट‍्ठों पर काम करने वालों के बच्चे कैसे करें पढ़ाई?

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ईंट भट‍्ठों पर काम करने वालों के बच्चे कैसे करें पढ़ाई?प्रदेश भर में ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले लाखों मजदूरों के बच्चे पूरे साल शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। नन्हा देवी (29 वर्ष) अपने पांच वर्ष के लड़के को पढ़ाना चाहती हैं पर भट्ठे के काम में उन्हें एक से दूसरी जगह जाना पड़ता है, जिससे बच्चे की पढ़ाई अधूरी रह जाती है।

प्रदेश भर में ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले लाखों मजदूरों के बच्चे पूरे साल शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। लखनऊ जिले से 30 किमी दूर सरोजनी नगर ब्लॉक के चिनौटी गाँव में बने भट्ठे पर नन्हा देवी काम करती हैं। नन्हा बताती हैं, “शुरू में बच्चे को स्कूल भेजा था, लेकिन काम खत्म होने पर वहां से हटना पड़ा और स्कूल भी छूट गया। जब यहां आए तो स्कूल वालों ने बीच में नाम नहीं लिखा।”

उत्तर प्रदेश में लगभग 1800 ईंट-भट्टे चलते हैं, जिसमें 80 लाख मजदूर काम करते हैं। यहां पर काम कर रहे मजदूरों के बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पाती है क्योंकि भट्टों पर नवम्बर से जून तक ही काम चलता है। बीच सत्र में इन बच्चों का किसी भी सरकारी स्कूल में प्रवेश नहीं हो पाता है, जिसकी वजह से ये बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

“हमारे दोनों बच्चे पढ़े-लिखे नहीं हैं। आज हमारे साथ ही भट्ठे पर काम कर रहे हैं। पढ़ाना चाहते थे, लेकिन पढ़ा नहीं पाए।” ऐसा बताते हैं, बलेश्वर कुमार(40 वर्ष)। बलेश्वर कुमार सरोजनी ब्लॉक के रामचौरा गाँव के ईंट-भट्ठे में काम करते हैं।सरोजनी ब्लॉक में लगभग 50 से ज्यादा ईंट-भट्ठे हैं। भट्ठा मजदूरों के बच्चों की शिक्षा पलायन के वजह से छूट जाती है।

प्रदेश के 12 जिलों में बने ‘अपना स्कूल’ में पढ़ रहे मजदूरों के बच्चे

वहीं इस दिशा में श्रम विभाग ने ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले बच्चों की शिक्षा के लिए प्रदेश के 12 जिलों (इटावा, कन्नौज, कानपुर, आजमगढ़, ललितपुर, आगरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, भदोही, बहराइच, फिरोजाबाद, मेरठ) में ‘अपना स्कूल’ नाम से 24 विद्यालय खोले हैं। इन विद्यालयों में बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल रही है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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