सड़कों पर दुकान लगाकर सैकड़ों बच्चे कर रहे अपना जीवनयापन
गाँव कनेक्शन 29 March 2017 1:54 PM GMT
रोहित श्रीवास्तव, स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट
बहराइच। बहराइचल जले में स्थित तमाम होटल ढाबे व छोटे-छोटे चाय के स्टाल पर काम कर रहे छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में चाय के गिलास व केतली लेकर इन होटलों और ढाबों में आने वाले लोगों को चाय पिलाते देखा जाना एक आम बात हो गया है। मगर बाल श्रम को रोक पाना अभी भी सरकार की आंखों से दूर नजर आ रहा है।
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अक्सर सड़कों पर दुकानों पर ऐसे बच्चों को काम करते देखा जा सकता है। चाहे वह कोई परचून की दुकान हो या फिर मिठाई की दुकान। सड़क किनारे फुटपाथ पर लगे ठेलों पर वे अक्सर बर्तन धोते नजर आते हैं। मगर बाल श्रम को रोक पाने में सरकार ने अभी तक कोई कड़ा कदम नहीं उठाया है।
जब कोई मासूम बच्चा अपने हम उम्र बच्चों को स्कूल जाता हुआ व छुट्टी के समय मुस्कुराता हुआ स्कूल आता देखता होगा तो क्या उस मासूम बच्चे के हदृय में पीड़ा नही होती होगी, जिस उम्र में बच्चे मां बाप की गोद में अपने मासूम बचपन को जीते हैं, लेकिन घरों में अर्थिक स्थिति कमजोर या अन्य किसी कारण की मजबूरी के चलते इन मासूम बच्चों को मजदूरी करने के लिए विवश होना पड़ता है। नाम न बताने की शर्त पर जब एक आठ वर्षीय बच्चे से बात की गई तो उसने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति बेहत कमजोर होने के चलते मजबूरीवश हमें यह काम करना पड़ता है। जो दिन में कमा लेते हैं, उसी से रोजी रोटी चलती है।
बच्चे ने बताया कि सुबह 4 से लेकर रात्रि 12 बजे तक कड़ी मेहनत के उपरान्त उसे एक वक्त का भोजन प्राप्त होता है। बावजूद इसके जरा सी गलती के सजा के एवज में मालिक द्वारा उसे निकाल देते हैं। पिछले 3 वर्ष इसी ढाबे पर कार्य कर यह मासूम बालक अपना व अपने छोटे से परिवार का जीवनोपार्जन करता है।
क्या कहते हैं श्रम विभाग के अिधकारी
इस सन्दर्भ में जब बाल श्रम विभाग के अधिकारी एके दीक्षित से बात की गई तो उन्होंने बताया कि समय-समय पर छोपमारी की जाती है, जिसके दौरान इन बाल श्रमिकों को छुड़ाया जाता है। जैसे विगत कुछ माह पूर्व फखरपुर और बहराइच के कुछ ढाबों से 12 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया गया था, लेकिन कुछ दिन व्यतीत हो जाने के बाद बच्चों के माता पिता पुनः बच्चों को ढाबों पर बाल श्रम करने को छोड़ जाते है समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है।
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