गेहूं की नई किस्म पर नहीं होगा गेरुआ रोग का असर

Divendra SinghDivendra Singh   12 Feb 2017 12:54 PM GMT

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गेहूं की नई किस्म पर नहीं होगा गेरुआ रोग का असरभारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के इंदौर स्थित केन्द्र के वैज्ञानिकों ने ईजाद की नई किस्म।

लखनऊ। गेहूं में गेरुआ लगने से कई बार किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, लेकिन अब गेहूं की नई किस्म विकसित की गई है, जिसको रोग से बचने के लिए वैज्ञानिक शोध कर सकते हैं।

मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केन्द्र के वैज्ञानिकों ने 18 वर्षों के शोध बाद गेहूं की नई किस्म ईजाद की है। यह किस्म शरबती (एनपी-4) गेहूं में विशेष जीन विकसित कर बनाई है। केन्द्र की वैज्ञानिक डॉ. कामिनी कौशल ने इस नई प्रजाति को ईजाद किया है। उनके नाम पर इसका नाम हाइब्रिड इंदौर कामिनी कौशल (एचआईकेके) रखा है।

वैज्ञानिक डॉ. कामिनी कौशल बताती हैं, “ये किस्म अभी किसानों के लिए नहीं विकसित की गई है, अभी इस पर वैज्ञानिक शोध कर सकते हैं। इससे वैज्ञानिक गेरुआ रोग से प्रतिरोधी किस्म ईजाद कर सकते हैं।” वो आगे बताती हैं, “अभी तक विदेशी किस्मों पर शोध होता था, लेकिन इस किस्म से कई रोगों से बचाव पर शोध किया जा सकता है।” अब तक विदेशी गेहूं की किस्म पर गेरुआ रोग की रोकथाम के लिए रिसर्च होती रही है।

गेहूं में गेरुआ के प्रकोप से उनकी बालियों में समस्या यह आती है कि दाने कम बनते हैं। वहीं, एचआईकेके किस्म में यह कमियां दूर हो जाएंगी। अब यह रिसर्च करने वाले कृषि वैज्ञानिकों के लिए उपलब्ध होगी। वैज्ञानिक डॉ. कामिनी कौशल क्षेत्रीय केंद्र से रिटायर होने के बाद महात्मा गांधी एग्रीकल्चर एंड रूरल वेलफेयर सोसायटी के साथ मिलकर इस किस्म के लिए काम कर रही थीं।

नई किस्म से गेरुआ रोग से निपटा जा सकता है

देशी परिस्थितियों में गेहूं में किस तरह गेरुआ रोग लगता है और इससे कैसे निपटा जा सकता है और कैसे गेहूं की नई प्रतिरोधक किस्म तैयार की जा सकती है, इन सभी पर रिसर्च हो सकेगी। गेहूं के गेरुआ रोग में पत्तियां सफेद गेरुई रंग की हो जाती हैं, जिससे बालियों में दाना नहीं बन पाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केन्द्र के निदेशक डॉ. एसवी साईं प्रसाद बताते हैं, “अभी ये किस्म वैज्ञानिकों के शोध के लिए इजाद की गई है, आगे इसे हम किसानों के लिए भी ले जाएंगे। दिल्ली मुख्यालय ने भी मंजूरी दे दी है और इसका नाम वैज्ञानिक के नाम पर ही रखा गया है।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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