कई राज्यों में घूम-घूमकर शहद बनाती हैं ये मधुमक्खियां
गाँव कनेक्शन 15 Feb 2017 5:40 PM GMT

रबीश कुमार, स्वयं कम्यूनिटी रिपोर्टर
फैजाबाद। मधुमक्खी पालन धीरे-धीरे बड़ा रोजगार बनता जा रहा है। यूपी समेत कई राज्यों में व्यवसायिक स्तर पर मौन पालन शुरु हो गया है। लेकिन इसी बीच कई लोग ऐसे हैं जो अलग-अलग राज्यों में घूमकर मधुमक्खियां पालकर मुनाफा कमा रहे हैं।
बिहार के रहने वाले सुरजीत कुमार 15 वर्षों से मधुमक्खी पालन का काम कर रहे हैं वह मधुमक्खियों के अनुकूल जलवायु के अनुसार विभिन्न प्रदेशों में भ्रमण करते रहते हैं। वह अपने डीसीएम गाड़ी पर मधुमक्खियों की पेटियां लादकर राजस्थान मध्य प्रदेश यूपी बिहार तक घूमते नजर आते हैं।
इटालियन मधुमक्खी पालने वाले सुरजीत कुमार बताते हैं कि नवंबर व जनवरी में राजस्थान व मध्य प्रदेश में रहते हैं, “वहां फूल वाली फसल होने के कारण मधुमक्खियों को आसानी से रस मिल जाता है। छत्तीसगढ़ में सरबुज्जा, (जटनी) के फूल बगानों व फूल वाली फसल होने के कारण मधुमक्खियों उसको आसानी से रस मिल जाता है। वहीं फरवरी से मार्च में हम उत्तर प्रदेश तथा बिहार में रहते हैं जहां सरसों, बाजरा, तिल, कोहरा, लिप्टस से को शहद मिल जाता है।” सुरजीत कुमार फूल वाली फसलें न होने पर मधुमक्खियों को चीनी खिलाते हैं।”
मधुमक्खियों के रोग और उनके बचाव
मौनगृह में पनपने वाले शत्रु मुख्य रूप से मोमी पतंगा, माइट, बीटल और मधुमक्खी जूं मुख्य हैं। इसके लिए कुछ उपाय निम्नलिखित हैं। औरैया में कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनत राम ये सुझाव देंते हैं।
- सर्दी के बाद जैसे ही गर्मी शुरू हो सभी मौनगृहों को खोलकर धूप लगाएं और तलपटों को पूरी तरह साफ़ कर दें।
- मोमी पतंगों से ग्रसित छत्तों को 60 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी में 4-5 घंटे तक रखने से सुरंगों में पल रहे इस कीड़े की झल्लियां मर जाती हैं।
- निष्क्रिय मौसम में किसी कारणवश यदि मधुमक्खियों की संख्या कम हो जाए तो छत्तों की संख्या कम कर दें ताकि प्रत्येक छत्ता मधुमक्खियों से ढका रहे।
- कीड़े लगे छत्तों को इथाइलिन डाईब्रोमाइड और कार्बन टेट्रा-क्लोराइड मिश्रण का छिड़काव करें।
- प्रभावित छत्तों को आधा घंटे तक धूप में रखें। धूप से पतंगों की इल्लियां बाहर निकल आती हैं। छत्तों को छाया में ठंडाकर पेटिका के अन्दर रख दें, इस प्रकार प्रत्येक छत्ते को इल्ली रहित कर दें।
मधुमक्खी पालन
मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उसे निचोड़ कर शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है।
This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).
More Stories