शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में आई कमी, लेकिन स्थिति अभी भी है गंभीर

Neetu SinghNeetu Singh   6 April 2017 7:20 PM GMT

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शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में  आई कमी, लेकिन स्थिति अभी भी है गंभीरस्वास्थ्य विभाग को जो लक्ष्य वर्ष 2012 में पूरा करना था वो लक्ष्य 2017 में भी पूरा नहीं हुआ है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में पिछले कुछ वर्षों में सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी जो स्थिति है वो गम्भीर है। स्वास्थ्य विभाग को जो लक्ष्य वर्ष 2012 में पूरा करना था वो लक्ष्य 2017 में भी पूरा नहीं हुआ है।

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“पिछले महीने मेरे घर पर जन्म के दो घंटे बाद ही मेरे बच्चे की मौत हो गयी थी, दो बेटियां हैं सोचा था इस बार बेटा हो जाएगा। बेटा तो हुआ लेकिन रहा नहीं।” ये कहना है लखनऊ जिले में रहने वाली सोनी देवी (28 वर्ष) का। सोनी देवी लखनऊ जिले से 45 किलोमीटर दूर माल ब्लॉक के केड़ोरा गाँव की रहने वाली हैं। सोनी देवी के बच्चे की जन्म के बाद घर पर मौत होना ये प्रदेश के गाँवों की पहली घटना नहीं है, इस तरह बच्चों की मौत सरकारी आंकड़ों में कभी नहीं जुड़ती है।

राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन स्वास्थ्य वर्ष 2005 में शुरू किया गया था। आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2012 तक प्रति 1,000 जन्म पर 30 शिशु मृत्यु दर का लक्ष्य रखा गया था, जबकि हकीकत ये है कि वर्ष 2012 का लक्ष्य वर्ष 2017 में भी पूरा नहीं कर पाए हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे चार की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 57 से घटकर 41 पहुंच गया है।

लखनऊ में वात्सल्य संस्था के माल ब्लॉक के हेल्थ प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर डॉ. अमित त्रिपाठी बताते हैं, “ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को ठीक करने की अभी बहुत जरूरत हैं। कई बच्चों की मृत्यु तो जन्म के दौरान घर पर ही हो जाती है जो संख्या कभी आंकड़ों में नहीं जुड़ती है।”

ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को ठीक करने की अभी बहुत जरूरत हैं। कई बच्चों की मृत्यु तो जन्म के दौरान घर पर ही हो जाती है जो संख्या कभी आंकड़ों में नहीं जुड़ती है।
डॉ. अमित त्रिपाठी, प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर, वात्सल्य संस्था

वो आगे बताते हैं, “ग्रामीण महिलाओं के सामने उनका सही खानपान न होना, समय से अस्पताल न पहुंच पाना। सही जानकारी न होना भी एक वजह है।”

सोनी देवी की तरह रायबरेली जिले की सुनीता देवी (30 वर्ष) का बेटा सितम्बर 2016 में जन्म के दो बाद ही नहीं रहा। सुनीता देवी बताती हैं, “मेरी दो लड़कियां हैं इस बार लड़का हुआ तो हम सब बहुत खुश हुए लेकिन दो घंटे बाद ही पता चला कि उसकी मृत्यु हो गयी है। मेरे बच्चे के सिर में घाव हो गया था पहले अल्ट्रासाउंड नहीं करा पायी नहीं तो हो सकता है बच जाता। सुनीता देवी जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में हरचंद्रपुर ब्लॉक के अघौरा गाँव की रहने वाली हैं।

अगर बच्चा बीमार है तो गाँव की महिलाएं तुरंत उसकी बीमारी की पहचान नहीं कर पातीं, अगर बच्चा गम्भीर है तो दूसरे अस्पताल में रेफर प्रक्रिया बहुत जल्दी नहीं होती, बेहतर खानपान न होना भी मुख्य वजह है।
डॉ. नीलम सिंह, स्त्री रोग विशेषज्ञ

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सिंह बताती हैं, “नेशनल फैमली हेल्थ की जो रिपोर्ट इस बार आयी है, उसमें काफी अच्छा सुधार हुआ है। शिशु मृत्यु कई बार इस वजह से भी होती है कि अगर बच्चा बीमार है तो गाँव की महिलाएं तुरंत उसकी बीमारी की पहचान नहीं कर पातीं, अगर बच्चा गम्भीर है तो दूसरे अस्पताल में रेफर प्रक्रिया बहुत जल्दी नहीं होती, बेहतर खानपान न होना भी मुख्य वजह है।”

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