आरटीआई टी स्टाल: चाय की चुस्कियों के साथ ग्रामीण समझते हैं कैसे पाना है अपना हक 

Neetu SinghNeetu Singh   12 Jan 2017 9:04 PM GMT

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आरटीआई टी स्टाल: चाय की चुस्कियों के साथ ग्रामीण समझते हैं कैसे पाना है अपना हक 2013 से लोगों को जागरुक कर रहे हैं के एम भाई।

नीतू सिंह-भारती सचान (स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क)

तातियागंज (कानपुर)। मूलचंद बाबा (52 वर्ष) की चाय की दुकान पर सुबह होते ही भीड़ लग जाती है। इनकी दुकान पर लोग सिर्फ चाय की चुस्की लेने नहीं आते बल्कि यहां उन्हें सूचना के अधिकार क़ानून की जानकारी मुफ्त में मिलती है।

कानपुर जिला मुख्यालय से उत्तर दिशा में 35 किलोमीटर दूर चौबेपुर ब्लॉक के तातियागंज ग्राम पंचायत में मुख्य मार्ग पर एक दुकान है जिसका नाम “आरटीआई टी स्टाल” है। सूचना के अधिकार कानून 2005 का कैसे इस्तेमाल किया जाए इसकी पूरी जानकारी दी जाती है। यहां आसपास कई गाँवों के लोग पांच रुपए की चाय पीने के साथ-साथ ही नि:शुल्क सूचना के अधिकार की जानकारी पाने के साथ ही कैसे इसका इस्तेमाल कैसे करें इसकी भी जानकारी मिल जाती है।इस “आरटीआई टी स्टाल” की शुरुआत वर्ष 2013 में समाजसेवी के.एम. भाई (27 वर्ष) ने की थी।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की शुरुआत तो हो गयी, लेकिन गाँव में रहने वाले अभी भी हजारों लोगों को इस क़ानून के बारे में जानकारी नहीं है। इसकी शुरुआत वर्ष 2010 से कानपुर शहर से हुई थी। कुछ वर्षों बाद गाँव में इसकी शुरुआत बच्चों की टोलियों के साथ हुई। ब्लॉक स्तर पर कैम्प, पदयात्राएं, समूह मीटिंग, गीत और पर्चे बांटकर की।
के.एम. भाई, आरटीआई कार्यकर्ता

सूचना के अधिकार क़ानून के तहत हर किसी को ये जानने का हक है कि सरकार द्वारा कौन-कौन सी योजनायें चलायी जा रही हैं। सरकार द्वारा खर्च किये गये खर्च का ब्यौरा क्या है। हमारे देश की सरकारी तंत्र व्यवस्था हम सबके द्वारा दिए जा रहे टैक्स के बल पर चलती है इसलिए हमे अपने पैसे का हिसाब मांगने का पूरा अधिकार है।

आरटीआई फाइल कर समस्या का समाधान पा चुके घाटमपुर निवासी राजबहादुर (55 वर्ष) का कहना है “मुझे एक केस के लिए जमीन के कागज़ बहुत दिनों से नहीं मिल रहे थे, आरटीआई लगाकर 30 दिन में ही हमारे कागज़ मिल गये जिससे हमारा केस और मजबूत हो गया।” राजबहादुर की तरह सैकड़ों ग्रामीण आरटीआई के द्वारा अपनी मुश्किलें आसान कर चुके हैं।

के.एम. भाई का कहना है “गाँव के लोगों को बिजली के बिल, राशन कार्ड, पेंशन, जमीन के कागजों सहित कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।” वो आगे कहते हैं “ग्रामीणों को ये जानने का अधिकार है कि उनके दरवाजे से जो सड़क गुजरी है उसके लिए कितना बजट पास हुआ और ठेकेदार ने कितनी लागत में बनवाई है ये जानकारी वो सूचना के अधिकार कानून के तहत जान सकता है।”

जबसे हमारी दुकान पर ये बोर्ड लगा है तबसे हमारे यहां ज्यादा लोग आते हैं, हम पढ़े लिखे तो हैं नहीं जब कोई भाई के बारे में पूछता है तो हम उसे के.एम. भाई का मोबाइल नम्बर और यहां रखे पीले पर्चों को पकड़ा देते हैं।
मूलचंद बाबा, चाय की दुकान के मालिक

इस आरटीआई टी स्टाल दुकान के मूलचंद बाबा खुश होकर बताते हैं “जबसे हमारी दुकान पर ये बोर्ड लगा है तबसे हमारे यहां ज्यादा लोग आते हैं, हम पढ़े लिखे तो हैं नहीं जब कोई भाई के बारे में पूछता है तो हम उसे के.एम. भाई का मोबाइल नम्बर और यहां रखे पीले पर्चों को पकड़ा देते हैं।”

के.एम. भाई का कहना है “इस टी स्टाल पर कानपुर के अलावा झांसी, जालौन, कन्नौज, बंदायू, औरैया, गाजियाबाद, नोयडा जैसे जिलों से भी लोग आते हैं।” वो आगे कहते हैं जल्द ही जौनपुर, हरदोई, कन्नौज में टी स्टाल खोलने वाले हैं। अगर हर गाँव में इस तरह के टी स्टाल युवाओं के सहयोग से बन जाएं तो ग्रामीण इस कानून का पूरी तरह से लाभ ले सकते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

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