जीवाश्रय गौशाला में आवारा पशुओं के गोबर से बन रही बिजली

Diti BajpaiDiti Bajpai   10 Feb 2017 12:51 PM GMT

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जीवाश्रय गौशाला में आवारा पशुओं के गोबर से बन रही बिजलीबॉयोगैस (मीथेन या गोबर गैस) मवेशियों के उत्सर्जन पदार्थों को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब उत्पन्न करके बनाई जाती है।

लखनऊ। सड़कों में घूमने वाले आवारा पशुओं के गोबर से बायोगैस प्लांट लगाकर जीवाश्रय गौशाला में बिजली उत्पन्न की जा रही है। इस प्लांट से गौशाला बिजली के साथ ही साथ खाना बनाने के लिए गैस मिल रही है।

लखनऊ से करीब 18 किमी दूर नादरगंज के जीवाश्रय गौशाला में 125 केवीए का प्लांट लगा है, जिससे 25 किलोवाट का जेनरेटर संचालित किया जा रहा है। जीवाश्रय गौशाला के सचिव यतिंद्र त्रिवेदी ने बताया, “गौशाला में अभी एक बायोगैस प्लांट चल रहा है। इससे गौशाला में 5 से 6 घंटे तक बिजली आती है। हम ऐसे ही दो बायोगैस बनवा रहे हैं, जिससे आस-पास के पांच गाँव में बिजली पहुंच सके।”

गौशाला में करीब 950 सांड और बैल हैं और करीब 1150 गाय हैं। इनसे रोज 30 टन गोबर मिलता है। पहले इस गोबर की कोई व्यवस्था नहीं थी लेकिन प्लांट बनने से इसे रोज उपयोग में लाया जाएगा।

पहले हर महीने चार लाख रुपए का बिजली का बिल गौशाला में आता था, जिसको भरने में भी दिक्कत आती थी। प्लांट लगने से गौशाला में बिजली का खर्च काफी कम हो गया है।
यतिंद्र त्रिवेदी, जीवाश्रय गौशाला के सचिव

सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में पशुओं से हर साल 100 मिलियन टन गोबर मिलता है जिसकी कीमत 5,000 करोड़ रुपए है। इस गोबर का ज्यादातर प्रयोग बायोगैस बनाने के अलावा कंडे और अन्य कार्यों में किया जाता है।

बॉयोगैस (मीथेन या गोबर गैस) मवेशियों के उत्सर्जन पदार्थों को कम ताप पर डाइजेस्टर में चलाकर माइक्रोब उत्पन्न करके बनाई जाती है। जैव गैस में 75 प्रतिशत मिथेन गैस होती है जो बिना धुंआ पैदा किए जलती है। लकड़ी, चारकोल और कोयले से उलट यह जलने के बाद राख जैसे कोई उपशिष्ट भी नहीं छोड़ती है।

"This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org)."

    

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