कोल्ड स्टोरेज हादसे: कहीं यूपी में न हो जाए भोपाल जैसी गैस त्रासदी

Neetu SinghNeetu Singh   3 April 2017 1:51 AM GMT

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कोल्ड स्टोरेज हादसे: कहीं यूपी में न हो जाए भोपाल जैसी गैस त्रासदीफोटो साभार: गूगल इमेज

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। कानपुर के बाद उत्तर प्रदेश के ही फतेहपुर जिले में आमोनिया गैस का रिसाव हुआ है। कानपुर आमोनिया गैस सिलेंडर फटने के बाद बिल्डिंग का बड़ा हिस्सा ढह गया था। जबकि आसपास कई किलोमीटर तक दिक्कत हुई थी, ऐसा ही फतेहपुर में हो रहा है। इन स्टोर के पास रहने वाले लोगों का कहना है सरकार ने इस पर सही से नकेल नहीं कही तो एक दिन यूपी में भोपाल जैसी कहीं गैस त्रासदी न हो जाए।

ये भी पढ़ें- फतेहपुर के कोल्ड स्टोरेज में अमोनिया गैस का रिसाव, मची अफरातफरी

15 मार्च को कानपुर के शिवराजपुर में कई मजदूरों की जान चली गई थी, जबकि आसपास के सैकड़ों लोगों की जान पर बन ई थी। कानपुर का हादसा क्षमता से ज्यादा आलू रखने से हुआ था, जिसके बाद बिना लाइसेंस चल रहे शिवराजपुर के कटियार कोल्ड स्टोरेज पर कार्रवाई भी हुई थी। अब फतेहपुर में हादसा हुआ है, पहले भी कई वाकये सामने आ चुके हैं। इन हादसों का एक बड़ा कारण यह भी है कि उत्तर प्रदेश में कोल्ड स्टोरेज की संख्या भी भंडारण के अनुसार पर्याप्त नहीं है।

कोल्ड स्टोरेज तो हैं, लेकिन उनमें आलू रखने की जगह नहीं है।

क्षमता से अधिक हो रहा है भंडारण

बता दें कि इस वर्ष आलू की बंपर पैदावार होने की वजह से किसानों का आलू माटी मोल बिक रहा है। पिछले कुछ दिनों में आलू के भाव में मामूली बढ़ोत्तरी हुई है। आलू को सही भाव मिल सके, इस वजह से किसान आलू को कोल्ड स्टोरेज में भंडारण कर रहे हैं, लेकिन यूपी में कोल्ड स्टोरेज की संख्या कम होने की वजह से कोल्ड स्टोरेज मालिक क्षमता से अधिक भंडारण कर रहे हैं, जिसकी वजह से कानपुर के कटियार कोल्ड स्टोर में भीषण आग लग गयी।

आंकड़ों पर गौर करें

यूपी में आलू का गढ़ फरुर्खाबाद है। कन्नौज, संभल, सीतापुर, बाराबंकी, उन्नाव और कानपुर में भारी मात्रा में आलू पैदा होता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो कानपुर मण्डल में 291 कोल्ड स्टोरेज हैं, जिसकी क्षमता 2660907.62 (मी.टन) है।

लखनऊ स्थित कुमार कोल्ड स्टोरेज में काकोरी से आए वकार अहमद का कहना है, “ आलू का उत्पादन इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में काफी अधिक हुआ है। लखनऊ की बात करें तो यहां आठ से दस आलू के कोल्ड स्टोरेज हैं। एक भी कोल्ड स्टोरेज में जगह नहीं हैं। सुबह से लम्बी लाइन लग जाती है। तीन चार घंटे लाइन में लगने बाद मेरा नम्बर आया है। इस उम्मीद के साथ कि आलू कोल्ड स्टोरेज में रखा है। अभी भाव नहीं मिला है, हो सकता है कि आगे चलकर भाव मिल सके।“ वकार अहमद अकेले किसान नहीं है, जो इस समस्या से परेशान हो, बल्कि यूपी के कई जिले के किसान इस समस्या से जूझ रहे हैं।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग

कानपुर हादसे के स्थानीय लोगों का कहना है कि आलू की बंपर पैदावार के चलते स्टोरेज मालिक ने क्षमता से अधिक आलू रख लिए थे, जिसके चलते ये हादसा हुआ है। बताया जा रहा आलू की पैदावार और कम रेट के चलते स्टोर मालिकों पर ज्यादा से ज्यादा आलू रखऩे के लिए किसान भी दबाव डाल रहे हैं।

पहले भी उठा है कोल्ड स्टोरेज का मुद्दा

पिछले दिनों केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने चुनाव के दौरान एक प्रेस वार्ता में आलू स्टोरेज को लेकर किसानों को हो रही समस्या को लेकर बड़ा बयान दिया था। इस बारे में जब गांव कनेक्शन ने बीजेपी प्रदेश मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में साध्वी निरंजन ज्योति से सवाल किया। साध्वी ने कहा कि, ”कोल्डचेन संबंधित तीन परियोजनाएं हम लाने की कोशिश में हैं। जिनमें से शाहजहांपुर में, दूसरी आगरा और तीसरी फतेहपुर के लिए हैं, जबकि अमेठी में फूड पार्क बनाना चाहते हैं। मगर राज्य में सरकार से सहयोग नहीं मिल रहा है। अमेठी में जमीन नहीं दी गई। जबकि इस क्षेत्र में निजी निवेशक भी आगे नहीं आ रहे हैं। हम किसानों को लेकर बहुत परेशान हैं। हमारी सरकार अगर उत्तर प्रदेश में आई तो नये कोल्ड स्टोरेज बनेंगे। केंद्रीय परियोजनाओं के जरिये निजी निवेशकों को बढ़ावा दिया जाएगा। ” अब जब भाजपा सरकार आ गयी है तो किसानो को उम्मीद है कि प्रदेश में कोल्ड स्टोरों की संख्या बढ़ाई जायेगी और इस तरह के हादसे कम होंगे।

खाली कराए गए हैं कई गाँव

बता दें कि कानपुर जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर पश्चिम दिशा में मणिपालपुर के कटियार कोल्ड स्टोरेज में इस बार आलू रखने के लिए दो नए चैंबर बनाए गए थे। कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने का काम जारी था, इसी दौरान अमोनिया गैस का रिसाव शुरू हो गया। इससे पहले मजदूर कुछ समझते और बाहर निकलते अमोनिया गैस के सिलेंडर फटने से तेज आवाज़ में धमाका हुआ और बिल्डिंग की छत भरभराकर गिर गई। कोल्ड स्टोरेज बिल्डिंग में हादसे के बाद राहत और बचाव कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। बिल्डिंग के मलबे में दबे मजदूरों और कर्मचारियों को बाहर निकालने के लिए सेना की मदद ली गई है। वहीं आमोनिया गैस के रिसाव को देखते हुए पास के कई गांव खाली कराए गए हैं।

           

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