चुनावी ड्यूटी में बिगड़ती सेहत का रखें खयाल

Meenal TingalMeenal Tingal   20 Feb 2017 10:43 AM GMT

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चुनावी ड्यूटी में बिगड़ती सेहत का रखें खयालड्यूटी के साथ साथ सेहत का भी रखें ध्यान

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। लगातार तीन दिन बीएलओ की जिम्मेदारी निभाते हुए शिव किशोर द्विवेदी को जब चक्कर आये तो समय निकालकर उन्होंने डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने उनको आराम करने की सलाह दी।

चूंकि चुनाव के मद्देनजर उनके लिए छुट्टी लेना संभव नहीं था, इसलिए डॉक्टर ने उनको दवा के साथ अच्छी डाइट लेने की सलाह दी। ऐसा केवल शिव किशोर द्विवेदी के साथ नहीं हो रहा है। बहुत सारे शिक्षामित्र व शिक्षक ऐसे हैं जो बीएलओ की जिम्मेदारी निभाते हुए अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पा रहे हैं और ऐसे में उनकी तबियत बिगड़ रही है।

स्कूल में पढ़ाने के साथ बीएलओ की ड्यूटी भी करनी पड़ रही है और अब चुनाव में ड्यूटी करने जाना है। सुबह घर से नाश्ता करके निकलते हैं, दोपहर में खाना नहीं खा पाते और रात तक घर पहुंचते हैं। हाल यह है कि दिन भर काम के चलते बहुत थकान हो जाती है तो अक्सर तबियत भी बिगड़ जाती है। रविवार हो या कोई सरकारी छुट्टी, हर दिन काम करना ही पड़ता है इसलिए सेहत का ख्याल नहीं रख पाते हैं।
देवेन्द्र कुमार मिश्रा, सहायक अध्यापक,प्राथमिक विद्यालय खानपुर

काम ज्यादा होने और आराम न मिल पाने के कारण अक्सर लोगों की तबियत खराब हो जाती है। वह प्रापर डाइट भी नहीं लेते हैं। ऐसे में सेहत पर भी दुष्प्रभाव पड़ सकता है।
डॉक्टर अर्चना सिंह, डाईटीशियन, डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर संयुक्त जिला अस्पताल

चूंकि चुनावी ड्यूटी में लगातार काम हो रहा है और अधिकारियों व कर्मचारियों को छुट्टी नहीं मिलती है। ऐसे में अगर दोपहर का खाना नहीं मिले तो वह मौसमी फल खायें, ग्लूकोज, नीबू पानी या ड्राईफ्रूट का इस्तेमाल भी करते रहें। यदि यह सब उनके बजट में नहीं आ सकता है तो वह चने, मक्का, बाजरा, ज्वार, मटर और हरे चने के जरिये अपनी डाइट संभाल सकते हैं और अपनी सेहत का खयाल भी रख सकते हैं।
डॉक्टर अर्चना सिंह

मैं अध्यापक के तौर पर पढ़ाता भी हूं और साथ साथ बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) की जिम्मेदार भी निभा रहा हूं। पढ़ाने के साथ तीन से चार घंटे बीएलओ की ड्यूटी देनी पड़ती है तो किस समय अपनी सेहत का ध्यान रख सकेंगे।
विनय दिवेदी, अध्यापक ,हनुमंतपुर विधानसभा क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

      

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