मुफलिसी के दौर में ज़िन्दगी गुजरने के बावजूद हौसला ऐसा कि बन गई लोगों के लिये मिसाल 

Neetu SinghNeetu Singh   12 May 2017 10:54 AM GMT

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मुफलिसी के दौर में ज़िन्दगी गुजरने के बावजूद हौसला ऐसा कि बन गई लोगों के लिये मिसाल शकुंतला कानून, शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत जैसे विषयों पर लोगों को जानकारी दे रही हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

औरैया। जिले के आसपास बीहड़ क्षेत्र होने की वजह से डाकुओं के अड्डों के नाम से चर्चा में रहे औरैया जिले की शकुंतला श्रीवास्तव (65 वर्ष) इस क्षेत्र की महिलाओं की न सिर्फ आवाज़ बनी बल्कि कानून, शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत जैसे विषयों पर लोगों को जानकारी दे रही हैं।

औरैया जिला मुख्यालय से 4 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में मल्हानपुर्वा गाँव की रहने वाली शकुंतला श्रीवास्तव का कहना है, “बचपन तो बहुत तकलीफों में बीता, तीन साल की थी तब पापा का देहांत हो गया, 18 साल में मां नहीं रही, मां मजदूरी करती थी इसलिए पेट भरने का ही इंतजाम कर पाती, कभी स्कूल का मुंह देखा नहीं।” वो आगे बताती हैं, “शादी के बाद कई साल तक रोज सुबह से भैंस के लिए घास लाते चारा काटते बस यही जिन्दगी थी, 20 साल पहले महिला समाख्या से जुड़े तबसे हमारी सोच बदली, इस क्षेत्र के लिए हमें कुछ करना है ये हमने ठान लिया था।

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बचपन तो बहुत तकलीफों में बीता, तीन साल की थी तब पापा का देहांत हो गया, 18 साल में मां नहीं रही, मां मजदूरी करती थी इसलिए पेट भरने का ही इंतजाम कर पाती, कभी स्कूल का मुंह देखा नहीं।
शकुंतला श्रीवास्तव मल्हानपुर्वा, औरैया

बीहड़ क्षेत्र होने की वजह से यहां डाकुओं का हमेशा दबदबा रहा है। यहां की डाकू फूलन देवी, सीमा परिहार, कुसुमा नाइन बहुत चर्चा में थीं, उस समय महिलाओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल था। इन डाकुओं की परवाह न करते हुए वर्ष 1996 में शकुंतला श्रीवास्तव ने घर से बाहर कदम रखा तो एक के बाद एक कई काम लोगों के करवाए।

शकुंतला श्रीवास्तव का कहना है, “सबसे पहले हमने अपने गाँव के 59 लोगों को उनके पट्टे दिलवाएं, जब एक काम पूरा हुआ तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ा, हमारे साथ महिलाओं का बड़ा समूह रहता है जिससे हम कहीं भी चले जाएं हमारा काम होने में ज्यादा परेशानी नहीं होती है।”

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महिला समाख्या की जिला समन्यवक विनीता का कहना है, “ महिला समाख्या एक ऐसा कार्यक्रम है ,जो ग्रामीण महिलाओं को न सिर्फ सशक्त करता है बल्कि उन्हें साक्षर कर उन्हें अपने हक़ और अधिकार के लिए आवाज़ उठाने की प्रेरणा भी देता है।”

वो आगे बताती हैं, “ये महिलाएं कोई भी काम पैसों के लिए नहीं करती हैं, कुछ पैसा मिल जाता है तो इनके आने-जाने का खर्च निकल जाता है, काम ये इसलिए करती हैं क्योंकि इनकी अपनी इस क्षेत्र में पहचान बन गई है, अब इन्हें कोई सता नहीं सकता है।”

कई अच्छे काम करवाए

शकुंतला ने लोगों को पट्टे दिलाने के साथ ही बेमेल विवाह, शराब ठेके बंद करवाना, घरेलू हिंसा रोकना, कन्या भ्रूण हत्या रोकना, पात्र को सरकारी योजना का लाभ दिलाना जैसे तमाम काम किए हैं। इनके इस जुझारूपन को देखते हुए औरैया जिलाधिकारी ने स्वच्छ भारत अभियान को सफल बनाने में इनकी मदद ली है।

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