मेरठ की कुश्ती जर्जर स्टेडियम के आगे पड़ने लगी फीकी 

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मेरठ की  कुश्ती जर्जर स्टेडियम के आगे पड़ने लगी फीकी सपा सरकार द्वारा मेरठ जिले के गून गाँव में बनवाया गया स्टेडियम।

मोहित कुमार सैनी, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

मेरठ। हर सरकार का दावा होता है कि वे शिक्षा व खेल के क्षेत्रों में प्रतिभाओं को आगे ले जाने का कार्य करेंगी। बावजूद इसके खेल प्रतिभाओं की उपेक्षा जारी ही रहती है। इस बीच सरकारें आती हैं और चली भी जाती हैं। कुछ ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश में भी है। प्रदेश के मेरठ जिले के गून गाँव में वर्षों पहले एक स्टेडियम तो बना दिया गया, लेकिन सुविधाओं और रखरखाव के अभाव में अभी तक बदहाल पड़ा है। हालात ये है कि क्षेत्र के खिलाड़ियों को कुश्ती का अभ्यास मिट्टी में करना पड़ रहा है और दौड़ने के लिए उन्हें स्टेडियम की जगह सड़क का सहारा लेना पड़ता है। स्टेडियम का ये हाल तब है जबकि इस क्षेत्र ने देश को अनेकों पहलवान और खिलाड़ी दिए हैं

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ग्रामीण बताते हैं कि क्षेत्र के पहलवानी के खिलाड़ियों को सुविधा मुहैया कराने के लिए 12 वर्ष पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यहां मिनी स्टेडियम के निर्माण की घोषणा की थी। बाद में 20 लाख रुपए की लागत से एक भवन का निर्माण कराया गया, जो रखरखाव के अभाव में अब खंडहर हो चुका है। दीवारें और छत दरक रही है, दरवाजे और खिड़कियां टूटी पड़ी हैं।

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गून गाँव के रहने वाले खिलाड़ी संदीप (22 वर्ष) का कहना है, “गाँव के बच्चों में खेल को लेकर काफी उत्साह है लेकिन स्टेडियम की दयनीय हालत के कारण यहां आकर प्रैक्टिस नहीं कर पाते हैं। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। बिना सुविधाओं के खिलाड़ियों की प्रतिभा मरती जा रही है।”

मिट्टी में तैयारी कर रहे पहलवान

भारतीय पहलवानों को मिट्टी में कुश्ती लड़ना तो आता है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली कुश्ती आजकल मैट पर लड़ी जाती है। यही सोचकर पहलवानों के लिए आधुनिकतम गद्दे भिजवाए गए। जिमनास्ट, फुटबाल, वॉलीबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि खेलों का सामान भी मिला, लेकिन हॉल की टूटी छत के नीचे वर्षों से वह सब बेकार पड़ा है।

कैलाश प्रकाश स्टेडियम जाते हैं ग्रामीण बच्चे

शहर के सिविल लाइंस स्थित कैलाश प्रकाश स्टेडियम ग्राउंड का दायरा तकरीबन पांच एकड़ से अधिक है और अब मेरठ जनपद के दूर दराज से गाँव के बच्चे यहां आते हैं, लेकिन जो गाँवों से निकल कर बच्चे आते हैं उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

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इसी क्षेत्र के रहने वाले सुनील (32 वर्ष) बताते हैं, “यह स्टेडियम 2004 में बना था। कुछ वर्ष तक तो सब कुछ ठीक था, लेकिन अब स्टेडियम खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। यदि इसकी हालात ठीक हो जाए तो दूसरे गाँव के बच्चे भी यहां आने लगेंगे।”

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