पहले दलहन में घाटा अब तिलहन भी रुला रहा

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   10 Jan 2017 4:41 PM GMT

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पहले दलहन में घाटा अब तिलहन भी रुला रहामौजूदा समय में तिलहनी फसलों को भी एमएसपी की तुलना में कम दाम पर लिया जा रहा है।

स्वयं डेस्क

लालगंज (रायबरेली)। किसानों को पहले दलहन फसल घाटे में बेचनी पड़ीं और अब यही हाल तिलहन की उपज का है।

प्रदेश में प्रमुख तिलहनी फसलों की खरीद के लिए जानी जाने वाली रायबरेली जिले की लालगंज मंडी में मौजूदा समय में लाही 2,800 से 3,000 रुपए प्रति कुंतल और तिल्ली 3,800 से 4,000 रुपए प्रति कुंतल बिक रही है। जबकि सरकार की तरफ से इन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमशः 4,600 और 5,000 रुपए प्रति कुंतल है। ऐसे में किसानों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है।

किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से एक हज़ार कम के दाम पर बेच रहे फसल

रायबरेली जिला मुख्यालय से 16 किमी. उत्तर दिशा में नगदिलपुर गाँव के किसान संजय चौधरी (32 वर्ष) एक एकड़ क्षेत्र में लाही (तोरिया) की खेती कर रहे हैं। अपनी खेती से उन्हें तीन से चार कुंतल उपज मिल जाती है। संजय बताते हैं, ''इस समय लाही बिलकुल तैयार है और मंडी में बेची जा सकती है। अभी मंडी में 3,000 प्रति कुंतल के हिसाब से लाही बिक रही है। अगर होली तक यही उपज बेची जाए तो आसानी से 3,500 से 3,800 रुपए के दाम मिल जाएंगे।''

संजय की तरह ही प्रदेश के लाखों किसान सरकार की तरफ से जारी किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य से अंजान हैं और न चाहते हुए भी अपनी फसल को कम दामों पर बेचने को मजबूर हैं।तिलहनी फसलों की खरीद के लिए सरकार द्वारा कोई भी ढांचाकृत व्यवस्था नहीं है, इसका सीधा असर तिलहनी फसलों की खरीद पर पड़ता है। इसका नतीजा यह हुआ है कि एक समय तेल के भंडारण व उत्पादन क्षमता को खुद से पूरा करने वाला देश भारत आज कुछ अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए हर वर्ष लगभग 80 प्रतिशत खाने का तेल आयात करता है।

रायबरेली जिले में बड़े स्तर पर तिल्ली की खेती कर रहे अलीपुर गाँव के किसान रामलखन वर्मा (50 वर्ष) के पास छह एकड़ खेत है, जिसमें वह तिल्ली की खेती कर रहे हैं। इस बार उन्हें तिल्ली की अच्छी उपज मिली है पर दाम अब भी उनके मुताबिक नहीं मिल पा रहे हैं।

पिछले वर्ष 42 रुपए प्रति किलो के हिसाब से तिल्ली बिकी थी। इस बार भी मंडी में 4,000 से 4,200 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से तिल्ली का दाम चल रहा है। मंडी में अभी तिल्ली बेचना घाटे का सौदा हो सकता है।
रामलखन वर्मा, अलीपुर गाँव के किसान

तिलहनी फसलों के लिए नहीं है सरकारी खरीद जैसी कोई व्यवस्था

सरकार हर वर्ष गेहूं व धान की खरीद करती है पर ऐसी कोई भी व्यवस्था तिलहनी फसलों के लिए अभीतक नहीं बनाई जा सकी है। ऐसे में मंडियों में सरकार की तरफ से जारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर तिलहनी फसलों की खरीद हो रही है।

मंडी में तिलहनी फसलों की आवक पर नवीन गल्ला मंडी, रायबरेली के सचिव रामयश यादव बताते हैं,''अभी मंडी में तिलहनी फसलों की खरीद कम हो रही है। पिछले साल मंडी में 4,700 के रेट पर तिल्ली बिकी थी। इस बार भी पुराने रेट से सौ-दो सौ रुपए ज़्यादा बिकने की उम्मीद है।''

किसानों को सुझाव-

अगर किसान अभी अपनी तिलहनी फसल को मंडी में बेचने जा रहे हैं तो, थोड़ा रुक जाएं। यही फसल होली तक या अप्रैल माह तक बेचेंगे तो अच्छे दाम मिल सकते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान (आईसीएआर) के निदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने पिछले वर्ष (जब आईएआरआई के निदेशक थे) गाँव कनेक्शन को दिए अपने साक्षात्कार में यह बताया था कि भारत में हर वर्ष खाने के तेल के आयात पर अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं, अगर इतना पैसा देश में इसकी खेती को बढ़ावा देने में उपयोग हो तो अगले पांच वर्षों तक तेल के आयात की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। देश में हर साल 40 से 50 लाख टन की दालें और 1.3 से 1.4 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात होता है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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