प्रदेश में जैविक खेती तो बढ़ी पर बाज़ार नहीं

Divendra SinghDivendra Singh   8 April 2017 2:32 PM GMT

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प्रदेश में जैविक खेती तो बढ़ी पर बाज़ार नहींरासायनिक उर्वरकों पर निर्भर किसानों का रुझान जैविक खेती की तरफ बढ़ रहा है।

स्वयंं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। पिछले कुछ वर्षों में रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर किसानों का रुझान जैविक खेती की तरफ बढ़ रहा है। लेकिन ऐसे किसानों को अपने उत्पादों के बेचने में परेशानी हो रही है, क्योंकि उन्हें सही बाजार ही नहीं मिल पाता है।

फैजाबाद से लगभग 37 किमी. दक्षिण में सोहआवल ब्लॉक के बहराएं गाँव के किसान राकेश दुबे ने जैविक खेती शुरू की है। चावल, गेहूं, सब्जी को जैविक तरीके से उगाते हैं, लेकिन सही बाजार न मिलने के कारण उन्हें अब परेशानी हो रही है। राकेश दुबे बताते हैं, “पहले मैं भी उर्वरकों से खेती करता था, लेकिन अब पूरी तरह से जैविक खेती करता हूं। किसान अगर जैविक खेती करते हैं और मुनाफा भी न हो, तो फायदा क्या। जैविक खेती अगर हम कर भी लें तो जैविक उत्पादों को बेचने में परेशानी होती है।”

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भले ही जैविक उत्पाद महंगे बिकते हों, लेकिन उनके उत्पादन में लागत भी ज्यादा आती है, जो छोटे किसानों के बस की बात नहीं होती। रासायनिक खेती के मुकाबले इसमें उत्पादन भी कम मिलता है। किसान गेहूं, मसूर, अरहर, मक्का, सब्जियां और गन्ना जैसी जैविक फसलें उगाते हैं। राकेश दुबे को पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था की तरफ से प्रमाणपत्र भी मिला हुआ है।

किसान राकेश दुबे आगे बताते हैं, “हमने अपने उत्पादों की शुद्धता प्रमाणित करने के लिए जून 2016 को उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था कार्यालय में आवेदन किया था। वहां की टीम ने यहां गाँव में आकर हमारी फसलों का निरीक्षण किया और हमें प्रमाण पत्र भी दिया।” कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार, प्रमाणित जैविक खेती के तहत खेती योग्य क्षेत्र पिछले एक दशक में तकरीबन 17 गुना बढ़ गया है।

यह क्षेत्र वर्ष 2003-04 में 42,000 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 7.23 लाख हेक्टेयर के स्तर पर पहुंच गया। उत्तर प्रदेश में 44670.10 हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है। फैजाबाद के प्रगतिशील किसान विवेक सिंह भी जैविक खेती करते हैं। इसी महीने से उन्होंने विकास भवन में जैविक सब्जियों की दुकान शुरू की है। विवेक बताते हैं, “अभी जैविक उत्पाद बेचने का कोई नियत स्थान नहीं है और न ही जैविक उत्पाद खरीदने वाले उपभोक्ता। इसके लिए किसानों को खुद ही बाजार बनाना पड़ता है।”

अभी पिछले वर्ष से ही इस संस्था की शुरुआत की गयी है। हमारी संस्था किसानों को प्रमाणपत्र देती है, यहां से मार्केटिंग के लिए कोई प्रावधान नहीं है।”
प्रकाश चन्द्र सिंह, निदेशक ,उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था, लखनऊ

पर मार्केटिंग का प्रावधान नहीं

उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था, जैविक खेती करने वाले किसानों को प्रमाणपत्र देती है। इसकी लंबी प्रकिया चलती है। मगर ये संस्था किसानों को मार्केटिंग में कोई मदद नहीं करती है।

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