अनूठी पहल : लखनपुर के लोग अब मृतक को कफन नहीं, परिवार को आर्थिक मदद देंगे

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अनूठी पहल : लखनपुर के लोग अब मृतक को कफन नहीं, परिवार को  आर्थिक मदद देंगेशव का अग्नि संस्कार करते लोग। फोटो: साभार इंटरनेट

विनोद कुमार, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

वाराणसी। आधुनिकता के दौर में गाँव से कोई वास्ता नहीं रखना चाहता है, लेकिन ये गाँव ही हैं, जो भारतीय संस्कृति और संस्कार की नर्सरी तैयार करते हैं। इसी को एक बार फिर सच साबित किया है वाराणसी जिले के लखनपुर गाँव के लोगों ने। ग्रामीणों ने हाल ही में आर्थिक रूप् से कमजोर एक परिवार के सदस्य की मौत के बाद निर्णय लिया कि वे ऐसे परिवारों को आर्थिक सहायता पहुंचाने के लिए अब किसी को कफन नहीं, बल्कि कुछ रुपये देंगे।

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जिला मुख्यालय से करीब 16 किमी दूर स्थित इस गाँव के ग्रामीण बताते हैं कि ये निर्णय तब लिया गया, जबकि गाँव में विगत रविवार लंबे समय से बीमार चल रहे रामदुलार चौहान (70) की मौत हो गई। रामदुलार को दमा समेत कई अन्य बीमारियां थी, जिसके इलाज में काफी रुपया घरवालों के खर्च हो चुके थे। यही नहीं परिवार में इनके पीछे दो लड़के और तीन लड़कियां हैं। सभी का विवाह हो चुका है, लेकिन बेटे अभी बेरोजगार हैं। मात्र एक बीघा खेत से ही परिवार का पालन-पोषण किसी तरह हो पाता है। कर्ज में डूबे इस परिवार को इनके अंतिम क्रिया कर्म सहायता पहुंचाने के लिए कफन देने की जगह रुपये देने की शुरुआत की। सभी मृत शरीर के पास पैसे रखने शुरू किये। थोड़ी ही देर में चार हजार एकत्र हो गया, जिससे अंतिम क्रिया पूर्ण हुई।

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ग्रामीणों ने संकल्प किया कि अब से लखनपुर गाँव में कुछ जरूरी अंतिम संस्कार के सामान घर के लोग लाएंगे। बाकि कफन की जगह हम रुपए के माध्यम से सहयोग करेंगे, जिससे वह दूसरे क्रिया-कर्म में काम आये। उन्होंने तय किया कि आज से ही चाहे अमीर हो या गरीब उसकी मौत पर सभी को कफन की जगह रुपए ही देंगे।

लखनपुर गाँव के ओमप्रकाश चौहान (50) कहते हैं, “कफन देने से कोई फायदा नहीं होता है। घाट पर जाते ही पहले से ही ताक लगाए कुछ युवक कफन लेकर भाग जाते हैं या उसे जला दिया जाता है।” अमर सिंह (45) कहते हैं,“ हमेशा आगे की सोचना चाहिए। जाने वाला तो चला गया अब उसकी नहीं, बल्कि उसके परिवार के बारे में सोचना जरूरी है।”

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वहीं इसी गाँव के रहने वाले सागर (40) कहते हैं,“ रामदुलार का परिवार काफी गरीब है। हम लोगों ने पैसे से मदद करके यह संदेश दिया कि हम लोग उनके साथ हैं।” इसी गाँव के निवासी सभाजीत यादव (50) कहते हैं,“ रामदुलार के परिवार की स्थिति देखकर मैं काफी चिंतित था, लेकिन सभी ने सहयोग करके चिंता दूर कर दी।”

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