जैविक खेती से पीलीभीत के किसान ले रहे हैं गन्ना का ज्यादा उत्पादन

Neetu SinghNeetu Singh   4 Feb 2017 8:05 PM GMT

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जैविक खेती से पीलीभीत के किसान ले रहे हैं गन्ना का ज्यादा उत्पादनकिसानों का कहना है जैविक ढंग से किया गया गन्ना एक भी खेत में गिरा या झुका नहीं है।

लखनऊ। पीलीभीत जिले के किसानों ने जैविक ढंग से सैकड़ों एकड़ खेत में गन्ने का अच्छा उत्पादन किया है। कम लागत के साथ ही गन्ने में कीटों का प्रकोप भी नहीं हुआ और पैदावार भी पहले से बेहतर हुई है।

पीलीभीत जिले के कई किसानों ने गाँव कनेक्शन को फोन पर अपने जैविक ढंग से किए गए गन्ने की खेती का अनुभव साझा किया। किसान पलविंदर सिंह (47 वर्ष) बताते हैं, “जैविक ढंग से गन्ने की खेती करने से पूरे साल चिंता नहीं रही कि गन्ने में कोई कीट पतंग लगेगा, गन्ने की लम्बाई 15-16 फुट की हुई है, जैविक ढंग से लागत भी आधी आई।”

पलविंदर सिंह की तरह आस-पास गाँव के पचासों किसानों ने पिछले वर्ष फरवरी-मार्च में सैकड़ों एकड़ खेत में जैविक ढंग से गन्ने की बुवाई की। एक एकड़ में 450-500 कुंतल की पैदावार होने के साथ-साथ लागत आधी आई। किसानों का कहना है जैविक ढंग से किया गया गन्ना एक भी खेत में गिरा या झुका नहीं है।

पिता के देहांत के बाद 16 वर्ष से खेती कर रहा हूं अभी तक प्रति एकड़ 250-300 कुंतल से कभी ज्यादा उत्पादन नहीं हुआ, लेकिन इस बार जैविक ढंग से किए गन्ने की खेती में 400 कुंतल पैदा हुआ। यहां के किसानों ने जैविक तरीका से गन्ने की खेती से शुरू की जब गन्ने में बेहतर पैदावार हुई तो अब मटर, चना, सरसों, गेहूं में भी जैविक तरीका अपना रहे हैं।
गुरुपाल सिंह (29 वर्ष), किसान

पूरनपुर शुगर मिल गन्ना ग्रामसेवक प्रभुदयाल गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “जैविक ढंग से किए गए गन्ने के किसानों को हम प्रोत्साहित करने का प्रयास करेंगे, इस बार जिले के कई किसानों ने जैविक ढंग से गन्ना करना शुरू किया है, भाव में तो कोई बढ़ोतरी नहीं है लेकिन इन किसानों को सब्सिडी का लाभ मिलेगा।”

उन्होंने ये भी बताया कि यहां के किसान गन्ना के साथ सहफसली मसूर और सरसों भी ले रहे हैं। पलविंदर सिंह जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर पूर्व दिशा में सिंहपुर गाँव के रहने वाले हैं। पिछले साल मार्च में पलविंदर ने तीन एकड़ खेत में गन्ना की बोवाई की थी। पलविंदर बताते हैं, “एक एकड़ में जैविक ढंग से पूरी लागत लगभग तीस हजार आती है और 11 महीने में लागत निकाल कर एक लाख रुपए आराम से बचत हो जाती है।” वो आगे बताते हैं, “रासायनिक ढंग से जब खेती करते थे तो पूरे पौधे के साथ मिट्टी भी जहरीली हो रही थी, आॅर्गेनिक ढंग से मिट्टी की रक्षा के साथ ही गन्ने में कीड़ा नहीं लगा।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

    

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