प्रतापगढ़ की सात विधानसभाओं पर कौन पड़ेगा भारी?

Divendra SinghDivendra Singh   18 Feb 2017 3:52 PM GMT

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प्रतापगढ़ की सात विधानसभाओं पर कौन पड़ेगा भारी?चौथे चरण को होने वाले मतदान में सात विधानसभा सीटों के 87 प्रत्याशियों के साथ ही कई बड़े मंत्रियों की साख दांव पर लगी है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

प्रतापगढ़। चौथे चरण को होने वाले मतदान में सात विधानसभा सीटों के 87 प्रत्याशियों के साथ ही कई बड़े मंत्रियों की साख दांव पर लगी है, इसलिए सभी अपने प्रत्याशी को जिताने में एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।

प्रतापगढ़ की इन सात विधान सभा की सीटों पर कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से लेकर मध्य प्रदेश के बीहड़ के कुख्यात डाकू ददुआ के भतीजे रामसिंह पटेल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसलिए प्रतापगढ़ का चुनावी मुकाबला काफ़ी दिलचस्प माना जा रहा है। इस चुनाव में आधा दर्जन मंत्री और तीन सांसदों की प्रतिष्ठा बुरी तरह से दांव पर लगी है। प्रतापगढ़ के चुनावी जंग में कैबिनेट राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल और प्रतापगढ़ के सांसद कुंवर हरिवंश सिंह और प्रमोद तिवारी का सम्मान जुड़ा है।

प्रतापगढ़ की सात विधानसभा सीटों में रामपुर खास विधानसभा सीट आराधना मिश्रा के नाम हैं। विश्वनाथगंज सीट अपना दल के राकेश वर्मा के नाम है। बाकी रानीगंज सपा सरकार के मंत्री शिवाकांत ओझा और कुंडा रघुराज प्रताप सिंह के नाम हैं। पट्टी विधानसभा में सपा के विधायक बीहड़ के कुख्यात डाकू ददुआ के भतीजे रामसिंह पटेल है। प्रतापगढ़ से नागेंद्र यादव और बाबागंज से विनोद सरोज सपा विधायक हैं।

एक बार फिर निर्दलीय लड़ रहे राजा भैया

कुंडा की पहचान रघुराज प्रताप सिंह के नाम से मानी जाती है। राजा भैया कुंडा सीट से पांच बार निर्दलीय विधायक बन चुके हैं। इस बार इनके खिलाफ भाजपा के जानकी प्रसाद पांडेय है। प्रतापगढ़ के भदरी राजघराने के राजा भैया कई दल बदल चुके हैं।

राजा भैया भाजपा की कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और राम प्रकाश गुप्ता की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इसके बाद मायावती सरकार में इनके ऊपर पोटा लगा था लेकिन मुलायम सरकार पोटा हटा कर राजा भैया को कैबिनेट मंत्री बनाया था। इसके बाद अखिलेश सरकार में मंत्री थे। लेकिन कुंडा के सीओ जियाउल हक की हत्या में फंसने के बाद राजा भैया ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन सीबीआइ जांच के बाद राजा भैया अखिलेश सरकार में वापस मंत्री बने। इस बार चुनाव में छक्का मारने के लिए निर्दलीय मैदान में है।

पिछली बार भाजपा और बसपा का नहीं खुला था खाता

इस बार कांग्रेस, सपा और अपना दल को सीट बचाने की चुनौती है। बाकी भाजपा और बसपा को नए सिरे से खाता खोलने की चुनौती है। 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और बसपा का खाता भी नहीं खुला था। पिछले चुनाव में पट्टी से राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह भाजपा के उम्मीदवार थे। लेकिन चुनाव जीतने के बाद मतगणना में हरा दिए गए थे। इस सीट पर रामसिंह सपा के विधायक हैं।

मोती सिंह जीत के बाद हार का मुकदमा लेकर हाई कोर्ट गए थे। हाई कोर्ट ने मोती सिंह को विधायक मान लिया था। लेकिन रामसिंह पटेल हाई कोर्ट के फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले गए। इससे मोती सिंह का मामला विचाराधीन है। फिलहाल मोती सिंह इस चुनाव में सदन जाने के लिए जनता की अदालत में खड़े हैं। इनके खिलाफ रामसिंह पटेल सपा के उम्मीदवार हैं। पटटी में भाजपा से राजेंद्र सिंह और सपा से रामसिंह पटेल फिर आमने-सामने हैं। राजेंद्र सिंह उर्फ मोती सिंह राजनाथ सिंह के करीबी और पूर्व भाजपा मंत्री हैं।

क्या प्रमोद तिवारी दिला पाएंगे बेटी को सीट

आराधना मिश्रा दूसरी बार जनता की अदालत में खड़ी है। प्रमोद तिवारी की तरह इनकी विधायक बेटी मोना भी लोकप्रिय हैं। इनकी विधानसभा में इनका विकास का काम बोलता है। मोना को घेरने के लिए भाजपा के नागेंद्र सिंह मैदान में है। लेकिन रामपुर खास सपा कांग्रेस के गठबंधन में है। इनके चुनाव की कमान काला कांकर राजघराने की राजकुमारी व सांसद रत्ना सिंह सांसद प्रमोद तिवारी और इनकी बहन सोना ने संभाल रखी है।

प्रतापगढ़ के इस राजा को नहीं मिला टिकट

प्रतापगढ़ रियासत के राजा अनिल प्रताप सिंह जब से अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए। तभी से उनके समर्थक और सदर विधानसभा की जनता आशा और उम्मीद की ज्योति जला कर बैठी थी। लेकिन बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। जिसके बाद राजा अनिल के उम्मीदों पर पानी फिर गया। इस बार वो किसी भी पार्टी से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

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