दालों का आयात कर बना रहे बफर स्टॉक

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   16 Feb 2017 9:33 AM GMT

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दालों का आयात कर बना रहे बफर स्टॉकभारत में फरवरी तक विदेशों से चार लाख टन से अधिक आयातित की गईं दालें।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। देश में दालों की आपूर्ति व दलहनी किसानों को लाभ देने के लिए केंद्र सरकार ने इस वर्ष 20 लाख टन का दलहनी बफर स्टॉक तैयार करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन इस बफर स्टॉक को पूरा करने के लिए सरकार छह फरवरी 2017 तक विदेशों से चार लाख टन दालों का आयात कर चुकी है।

देश में दलहनी फसलों के बढ़ते उत्पादन के बावजूद विदेशों से दाल की खरीद जारी रखने की बात कहते हुए भारत में ग्रामीण आजीविका निर्माण पर काम रही संस्था डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी डॉ. एसएन पांडे बताते हैं,’’ भारत में पिछले 20 वर्षों से दलहनी फसलों की डिमांड और सप्लाई लगातार बढ़ रही है पर घरेलू उत्पादन में भारत के पास चुनिंदा किस्मों की ही दालें पाई जाती हैं, जो हर वर्ष दोहराई जाती हैं।’’ वो आगे बताते हैं कि अगर विदेशों की बात करें तो कनाडा, अफ्रीका और कीनिया जैसे देशों में भारत की तुलना में दलहनों की उच्च उपज वाली (सासकेचिवान मसूर, स्पलिट पी) किस्मों का एक साथ उत्पादन होता है। ऐसे में विदेशी आयात के लिए भारत की पहली पसंद कनाडा है।

खाद्य मंत्रालय द्वारा पिछले महीने जारी की गई राष्ट्रीय खाद्य रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने वर्ष 2016-17 में दलहनी फसलों का बफर स्टॉक का अनुमान दो मिलियन टन रखा है। इसमें 23 दिसंबर 2016 तक देश में घरेलू दाल उत्पादन की मदद से 6.75 लाख टन दाल खरीदी जा चुकी है। विदेशी दालों से दलहनी बफर बफर स्टॉक पूरा करने के लिए भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक डॉ. पुरुषोत्तम ने बताया, ‘’मौजूदा समय में घरेलू दलहन का स्टॉक कम है, इसलिए आने वाली फसल से पहले देश में दाल की आपूर्ति के लिए विदेशों से दालें खरीदी जा रही हैं।’’

भारत में पिछले चार दशकों में दलहन की खेती उत्तर भारत के तराई इलाकों से हट कर दक्षिण भारत की ओर ज़्यादा अधिक हो रही है। इसका मुख्य कारण बताते हुए डॉ. एसएन पांडे आगे बताते हैं,’‘भारत ठंड का प्रकोप सबसे अधिक उत्तर भारत में होता है। यहां ठंड फरवरी के अंत तक होती है, जो दाल की खेती के लिए विपरीत मौसम माना जाता है। हालांकि उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण में ठंड कम होती है। इसलिए पिछले कुछ दशकों से यहां के किसान दाल की खेती करना पसंद कर रहे हैं।’’भारत में दालों के बफर स्टॉक को पूरा करने में हो रही देरी का एक कारण देश की लंबी और असंगठित दाल खरीद प्रणाली भी है। दाल को किसान के खेत से व्यापारी तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है। इससे दाल की खरीदारी की गति धीमी रहती है, जिसका असर बफर स्टॉक पर पड़ता है।

देश में दालों की बिक्री के लिए अच्छी ढांचाकृत सुविधा बनाए जाने की बात कहते हुए कृषि विपणन, मुख्यालय उत्तर प्रदेश के सह निदेशक ओमप्रकाश बताते हैं, ‘’भारत में दाल खरीद के लिए विदेशों जैसी उचित खुली बाज़ार व्यवस्था नहीं है। पूरे देश में गुजरात व मध्य प्रदेश के अलावा दाल बिक्री के लिए कोई भी उचित खुला बाज़ार नहीं है। उत्तर प्रदेश में कई बार केंद्र सरकार ने दाल की बिक्री का खुला बाज़ार बनाने का प्रस्ताव रखा पर अभी तक इस कोई भी विचार किया गया है।’’

हालांकि देश में पिछले पांच वर्षों से दाल के व्यापार में कई बदलाव किए गए पर इससे बावजूद भारत में दलहनी किसानों के दिन नहीं बहुर पाए हैं। भारत में दलहन के बफर स्टॉक को पूरा करने के लिए सरकार लगातार विदेशों से दाल आयात कर रही है, जिससे भारतीय दाल बाज़ारों में पल्स फ्लडिंग जैसी समस्या आ रही है। इससे दाल की घरेलू खरीद पर असर पड़ रहा है।

देश में विदेशी दालों का आयात मुख्य रूप से जून से अगस्त महीने में किया जाता है। यह दाल दिसंबर तक विदेशों से भारत आती है और इसी समय देश की मंडियों खरीफ की दाल पहले से ही मौजूद रहती है। विदेश से आयात की गई दाल देशभर की प्रमुख मंडियों में भेजी जाती है। इससे एकाएक बाज़ारों में दाल की आवक बढ़ जाती है। इसे पल्स फ्लडिंग समस्या कहते हैं।

‘’भारत में पल्स फ्लडिंग की समस्या को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए देशभर में दालों के लिए नए खरीद केंद्र बनाए जाएंगे, जहां पर मुख्यरूप से विदेशी दालों का कारोबार होगा। इससे साधारण मंडियों में किसानों की लोकल आवक बढ़ सकेगी और पल्स फ्लडिंग भी कम होगी। देश में पल्स फ्लडिंग की वजह से अरहर की खेती कर रहे किसानों को अधिक नुकसान होता है।’’ डॉ. मनोज कटियार ने आगे बताया। कृषि मंत्रालय भारत सरकार के मुताबिक मौजूदा समय में भारत में कुल 971 सरकारी खरीद केंद्र हैं। इनमें से 514 खरीद केंद्रों पर अरहर की खरीद, 269 केंद्रों पर मूंग व 188 केंद्रों पर उर्द दाल की खरीद की जाती है। भारत में सालाना दालों का अौसतन आयात 30 से 35 लाख टन होता है।

देश में 20 लाख टन के दलहनी बफर स्टॉक को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), लघु कृषक कृषि प्यापार संघ (एसएफएसी) और राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नाफेड) जैसे सरकारी संस्थाओं को ज़िम्मेदारी दी है। इन संस्थाओं को देश की कुल 10 लाख टन दाल घरेलू दाल खरीदने का लक्ष्य दिया गया है। लेकिन मौजूदा समय में दालों को मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर लिए जाने से किसान दाल बेंचने में हिचकिचा रहे हैं। इससे देश के दलहनी बफर स्टॉक को पूरा करने समय लग रहा है। बाराबंकी जिले के जिला उप कृषि निदेशक एसपी सिंह बताते हैं कि इस समय मंडियों में पिछले वर्ष जुलाई-अगस्त में बोई गई अरहर बेची जा रही है। इस समय मंडी में अरहर 4,300 रुपए- 4,500 रुपए प्रति कुंतल में बिक रही है। अगर किसान यही दाल होली के आस-पास बेचेंगे तो, इससे अच्छा दाम मिल सकता है। मौजूदा समय में अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,050 है।

विदेशी दाल आने से कम हो जाता दाम

पिछले महीने दिल्ली आईसीएआर में हुई कृषि बैठक में शामिल हुए चन्द्र शेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर के कृषि वैज्ञानिक (दलहन) डॉ. मनोज कटियार ने बताया,’’पिछले दो वर्षों से देश के दलहनी बाज़ार में पल्स फ्लडिंग की समस्या बढ़ गई है। इससे देश में दालों के बाज़ार में अचानक विदेशी दालों के आ जाने से दाल बहुत अधिक हो जाती है। इसकी वजह से देश के किसानों दाल कम रेट पर ली जाती है।’’

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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