राजस्थानी बागरु वस्त्र कला और धातु कला से सराबोर हुआ अवध

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राजस्थानी बागरु वस्त्र कला और धातु कला से सराबोर हुआ अवधवन अवध सेंटर में लगी हैंडीक्राफ्ट व हैंडलूम प्रदर्शनी में लोगों ने जमकर खरादें राजस्थान के बने वस्त्र और कलाकृतियां

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ।
लखनऊ के वन अवध सेंटर बजारिया में लगी हैंडीक्राफ्ट वह हैंडलूम प्रदर्शनी में राजस्थान से आए कलाकारों की बागरु वस्त्र कला और धातु कला से बनी कलाकृतियों और आर्टीफीशियल ज्वैलरी ने लोगों का मन मोह लिया।

लखनऊ के गोमतीनगर इलाके की रहने वाली गृहणी मोनिका वर्मा (27 वर्ष) को आर्टिफिशियल ज्वेलरी पहनने का बहुत शौक है। हैंडीक्राफ्ट प्रदर्शनी में आकर उनकी रुचि का सारा सामान मिल उन्हें मिल गया। राजस्थानी धातु कला से निर्मित ज्वेलरी को दिखाते हुए मोनिका बताती हैं, ''मैंने अपने लिए प्रदर्शनी से झूमके और कंगन लिए हैं । मुझे प्रदर्शनी के सभी स्टॉल काफी अच्छे लगे हैं, ऐसी प्रदर्शनी समय-समय पर लगती रहनी चाहिए।''

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राजस्थान के जयपुर में बिछून गांव में योगेंद्र पांचल का परिवार पिछली 15 पीढ़ियों से धातु कला द्वारा निर्मित मूर्तियां व शोपीस बनाने का काम कर रहा है। योगेंद्र धातु कला से निर्मित आभूषणों व कलाकृतियों को भारत के सभी राज्यों तक पहुंचा चुके हैं।

धातुकला से बनी कलाकृति को दिखाते हुए योगेंद्र बताते हैं,'' हमारा पूरा परिवार इस काम में लगा हुआ है। पीतल से बनी धातु से बनी कलाकृतियां ज्यादातर घर की सजावट में इस्तेमाल किए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से तोते का खिलौना, पीतल का हुक्का व बच्चों के खिलौने ज्यादा बिकते हैं।''

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राजस्थान के करौली देहात में 300 महिलाओं के ग्रामीण नारी उत्थान संस्थान में पिछले 20 वर्षों से हैंडलूम का काम होता आ रहा है। इस काम की बदौलत करौली देहात गाँव की 50 से अधिक महिलाओं को न केवल रोजगार मिल रहा है बल्कि महिलाओं द्वारा निर्मित किए गए खास किस्म के बागरू वस्त्रों को भारत के साथ-साथ विदेशों में भी प्रदर्शित होने का मौका मिल रहा है।

करौली गाँव कि महिलाओं को सशक्त बना रहे ग्रामीण नारी उत्थान संस्थान के अध्यक्ष भरत तिवारी बताते हैं,'' संस्थान में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल कर महिलाएं बागरू वस्त्र बनाती हैं। इस खास किस्म के वस्त्र को रंगने के लिए पेड़ की हरी पत्तियों को उबाला जाता है, जिस रंग का कपड़ा होता है उसी रंग की पत्तियों को उबालकर उस कपड़े को उसमें भिगोया जाता है। फिर कुछ दिनों तक उसे कीचड़ में रख दिया जाता है। कीचड़ से निकालने के बाद कपड़े पर चढ़ाया गया पत्तियों का रंग चटक हो जाता है, फिर कपड़ों पर प्रिंटिग की जाती है।''

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लाओनी संस्था की ओर से लगाई गई इस प्रदर्शनी के बारे में संचालिका स्वाती सिन्हा ने बताया कि देश के हर कोने से इस प्रदर्शनी में कलाकार आए हैं। अभी दो ही दिन हुएं हैं और लोगों में हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम के प्रति काफी दिलचस्पी देखने को मिली है। अभी वीकएंड ( सप्ताह के अंत) में और भी ज़्यादा लोगों के आने की संभावना है।

प्रदर्शनी में बरेली की मशहूर हैंडीक्राफ्ट व अार्टीफीशियल आभूषणों को बनाने वाली संस्था रूबीजरी फैशन ने भी हिस्सा लिया है। यह संस्था बरेली के मीरपुर, रिथौरा और बंनजरिया जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के साथ काम करती है।

लाओनी संस्था की ओर से लगाई गई इस प्रदर्शनी में खरीददारी करती महिलाएं।

संस्था की प्रमुख रूबी ने बताया, ''हम लगातार बरेली के गाँवों में रहने वाली महिलाओं के काम को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। हमारे लाख 100 से भी अधिक महिलाएं जुड़ी हैं जो धातु की डिज़ाइन वाले बैग और आभूषण बनाने का काम करती हैं। ज्वेलरी के साथ साथ हम डिज़ाइनर कपड़ों का भी काम कर रहे हैं।''

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