बढ़ती गर्मी बन रही मेंथा किसानों के लिए सिरदर्द
Devanshu Mani Tiwari 18 April 2017 6:06 PM GMT

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। विदेशी बाज़ारों में भारत के मेंथा ऑयल की बढ़ती मांग को देखते हुए इस वर्ष उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों के किसानों ने वर्ष जनवरी में ही मेंथा की बुआई बढ़ा दी, लेकिन बढ़ती गर्मी किसानों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। तापमान में बढ़त और पछुआ हवाओं के चलने से प्रदेश के किसानों में मेंथा की फसल के सूखने का डर सता रहा है।
बाराबंकी जिले के सूरतगंज ब्लॉक के दूंदेपुर गाँव में पांच एकड़ खेत में मेंथा की खेती की खेती कर रहे किसान रामसिंह वर्मा (55 वर्ष) को इस वर्ष भी मेंथा का कम दाम मिलने का डर सता रहा है।रामसिंह बताते हैं,'' इस बार ठंड को देखते हुए हमने जनवरी में ही मेंथा की बुआई कर दी थी पर आजकल तेज गर्मी हो रही है,इसलिए फसल ज़्यादा पानी मांग रही है।''
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एंड एरोमैटिक प्लांट्स सीमैप के अनुसार पिछले वर्ष देश में 25,000 टन मेंथा का उत्पादन हुआ था, वहीं इस साल करीब 28,000 टन मेंथा की पैदावार मिलने की उम्मीद है। वर्ष 2004-05 में मेंथा ऑयल की वैश्विक मांग चीन से हटकर भारत की तरफ हो गई, इससे किसानों में मेंथा की खेती का रुझान बढ़ा है। भारत में मेंथा की खेती व मेंथा के बाज़ार के विकास में व्यापक तौर पर काम कर रही गैरसरकारी संस्था मिंट ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रमुख टेकराम शर्मा बताते हैं,'' भारत के मेंथा के बाज़ार में पिछले कुछ वर्षों से सेंथेटिक मेंथा की खरीद के कारण प्राकृतिक मेंथा की कीमत नहीं बढ़ पा रही है।पिछले वर्ष किसानों ने 800 प्रति किलो के भाव पर मेंथा बेचा था। इस वर्ष भी 1000 रुपए प्रति किलो तक मेंथा बिकेगा।'' वो आगे बताते हैं कि अगर आने वाले समय में गर्मी कम नहीं हुई ,तो मेंथा के सूखने का खतरा बढ़ सकता है।
स्पाइस बोर्ड ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत से वर्ष 2016 में मेंथा और इससे जुड़े उत्पादों का निर्यात करीब 21,150 टन का था, जिसकी कीमत 2.5 करोड़ रुपए थी, जो देश में होने वाले कुल मसाला निर्यात का 16 फीसदी है।
फैज़ाबाद जिले के किसान मुकुट बिहारी ( 50 वर्ष) दो एकड़ खेत में मेंथा का खेती करते हैं।पिछले वर्ष की तुलना में इस बार उन्हें मेंथा की अच्छी पैदावार मिली है। मुकुट बिहारी बताते हैं,'' इस साल फसल तो बढ़िया हुई है, लेकिन इस समय पछुआ हवा चल रही है। इससे मेंथा में कीट लगने का खतरा बढ़ गया है।अगर मौसम ऐसा ही रहेगा तो तेल कम मिलेगा।'' वैश्विक बाज़ार में भारतीय मेंथा ऑयल की कीमत बढ़ने के बाद इस वर्ष मेंथा के उत्पादन में 12 प्रतिशत बढ़त रहने की उम्मीद है।प्रदेश में मेंथा की बुआई आमतौर पर जनवरी से मार्च के बीच होती है और फसल मई के बाद काटी जाती है।
मेंथा का व्यापार जून-जुलाई माह में होता है। उत्तरप्रदेश में मेंथा की खेती मुख्यरूप से बाराबंकी,जलौन,महमूदाबाद,मेरठ,मुजफ्फरनगर,फैज़ाबाद,अंबेडकरनगर, बहराइच, हरदोई, अमेठी और सीतापुर क्षेत्रों में होती है। '' प्रदेश में मेंथा की खरीद के लिए मंडियां बनाई गई हैं पर मंडियों में किसानों को मेंथा का मनमुताबिक रेट ना मिल पाने और गाँवों से मंडियों की दूरी होने के कारण किसान गाँवों में ही मेंथा बेचना ज़्यादा पसंद करते हैं। किसानों को मेंथा की सही दाम दिलवाने के लिए हम प्रदेश के छह जिलों में 1,000 से अधिक मेंथा किसानो के साथ काम कर रहे हैं।'' टेकराम शर्मा आगे बताते हैं।
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