‘जाति प्रमाण पत्र नहीं तो वोट नहीं’

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‘जाति प्रमाण पत्र नहीं तो वोट नहीं’मेरठ के परीक्षितगढ़ के समरपुर गाँव का सपेरा समुदाय करेगा विधानसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार।

बसंत कुमार, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। मेरठ के परीक्षितगढ़ के समरपुर गाँव के रहने वाले अजय नाथ का सीआईएसएफ में चयन हुआ था, लेकिन जाति प्रमाण पत्र न होने की वजह से वह नौकरी नहीं कर पाया। अजय नाथ जाति प्रमाण पत्र नहीं होने से परेशान हैं। यह स्थिति सिर्फ अजय की ही नहीं, अजय जैसे हजारों सपेरा समुदाय के युवाओं की हैं।

एक तरफ प्रदेश में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग जमकर पसीना बहा रहा है। लेकिन दूसरी तरफ प्रदेश भर के सपेरा समुदाय वोट का बहिष्कार कर रहे हैं। जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने के कारण सपेरा समुदाय विधानसभा चुनाव में वोट नहीं करने की तैयारी में हैं। हाल ही में गौतम बुद्ध नगर के दनकौर और मेरठ में सपेरा समुदाय के लोगों ने सभा कर विधानसभा चुनाव में वोट नहीं डालने का फैसला किया है। सपेरा समुदाय ‘जाति प्रमाण पात्र कार्ड नहीं तो वोट नहीं’ का बैनर लगाकर चुनाव का बहिष्कार कर रहा है। प्रदेश के सभी जिलों में सपेरा समुदाय की 15 लाख से ज्यादा आबादी रहती है, जिसमें लगभग तीन लाख वोटर हैं। गौतम बुद्ध नगर जिला में ही सपेरों के 28 गाँव हैं।

यह एक राजनीतिक मुद्दा है इस बारे में तो हम कुछ नहीं कह सकते हैं, लेकिन सरकार से अपनी बात मनवाने के लिए वोट देना ज़रूरी होता है। चुनाव आयोग तो बस लोगों को वोट देने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
सुनीता सिंह, सहायक चुनाव अधिकारी, (यूपी, चुनाव आयोग)

सपेरा समुदाय के अध्यक्ष ओमप्रकाश नाथ बताते हैं, ‘‘सरकार की अनदेखी की वजह से हमें हमना वोट का हक छोड़ना पड़ रहा है। पिछले कई वर्षों से हमारे समुदाय के किसी भी व्यक्ति का जाति प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है। जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने से सरकार द्वारा दी जाने वाली तमाम सुविधाओं से सपेरा समुदाय वंचित रह जाता है।’’

पहले तक हमारा बैगा अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनता था, लेकिन सरकार ने बैगा जाति से यह कह हमारा कार्ड बनाने से मना कर दिया कि हम इस समुदाय से नहीं है। उसके बाद हमारा कार्ड किसी भी जाति से नहीं बन रहा है। जबकि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में सपेरा समुदाय अनुसूचित जाति के अंतर्गत आता है।
ओमप्रकाश नाथ, सपेरा समुदाय के अध्यक्ष

भीख मांगने को मजबूर

समरपुर गाँव के सपेरा बस्ती के प्रमुख तेजपाल नाथ बताते हैं, ‘‘आज सबसे ज्यादा भिखारी सपेरा समुदाय से हैं। रोजी-रोटी के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं है। सरकार हमें अनुसूचित जाति में शामिल नहीं करती है, जबकि हमारी स्थिति अनुसूचित जनजाति में शामिल होने के लायक है। हमारे पास ना जमीन है और खेत। हमारे बच्चों को पढ़ाई के दौरान मिलने वाली आर्थिक मदद नहीं मिल पाती है क्याेंकि उनके पास जाति प्रमाण पत्र होता ही नहीं है।

सीएम ने दिया था आश्वासन

ओमप्रकाश नाथ बताते हैं ‘‘सपेरा समुदाय के लोग प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी मिले थे और उन्होंने हमें भरोसा दिया था। मगर हाल में प्रदेश सरकार ने जिन 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा उसमें सपेरा समुदाय शामिल नहीं था। सरकार सपेरा समुदाय को लगातार नजरअंदाज कर रही है। ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारा कोई भी आदमी लोकसभा या विधानसभा में नहीं है।’’

प्रतिबंध के बाद जीना मुहाल

सपेरा समुदाय की ज़िन्दगी सापों से खेल दिखाकर चलती थी, लेकिन सरकार द्वारा सांपों को पकड़ने और उन्हें कैद में रखने पर प्रतिबन्ध लगने के बाद से सपेरा समाज खाने को मोहताज है। इस बारे में ओमप्रकाश नाथ बताते हैं, ‘‘लोग गाय या भैस पालते हैं। उससे दूध निकलते है तो क्या उसे मारते है। सापों की सबसे ज्यादा सुरक्षा सपेरा समुदाय ही करता है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

       

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