बढ़ रही है बीज रहित खीरे की मांग

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बढ़ रही है बीज रहित खीरे की मांगबीजरहित खीरे की मांग ज्यादा है, किसान अगर चाहे तो खुले में खेती करने के बजाय पॉलीहाउस में इसकी अच्छी खेती कर सकता है।

सुधा पाल, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। सलाद में खाए जाने के कारण खीरे की मांग हर मौसम में होटलों और अन्य शादी ब्याह के अवसरों में रहती है। खीरे की बुवाई फरवरी से मार्च के बीच होती है। इसमें बीजरहित खीरे की मांग ज्यादा है, किसान अगर चाहे तो खुले में खेती करने के बजाय पॉलीहाउस में इसकी अच्छी खेती कर सकता है।

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बीजरहित खीरे की कई किस्में हैं, जिन्हें सीडलेस कुकुम्बर के नाम से जाना जाता है। प्रदेश में कई जगह इन किस्मों की किसान खेती कर रहे हैं। सीडलेस कुकुम्बर एक संकर किस्म है जो हॉलैण्ड से देश में आई है। इसकी खेती की शुरुआत केरला से हुई थी। अभी भी देश के दक्षिण भागों में खीरे की बीजरहित खेती की जाती है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, केरला, बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती की जी रही है।

प्रदेश के किसान भी सीडलेस खीरे की खेती करके मुनाफा कमा रहें हैं। इसमें उत्पादन ज्यादा है।
बलराम सिंह, महासंघ अध्यक्ष, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग

पॉलीहाउस में इसकी खेती करके किसान सालभर में खीरे की तीन फसलें लगा सकते हैं। इन किस्मों में परागण की कोई जरूरत नहीं होती है जबकि अन्य किस्म में परागण पर ही उत्पादन निर्भर करता है।

किसान एक हजार स्क्वायर मीटर में इस बीजरहित खीरे की खेती के लिए 1500 पौधे लगा सकते हैं। एक पौधे से किसान लगभग 15 से 20 किलो तक फल उत्पादन कर सकता है। एक खीरे का वजन लगभग 100 से 150 ग्राम के बीच होता है।

इसमें फायदा ज्यादा है, जहां पहले 500 किलो खीरे की मांग थी वहां अब 800 की हो गई है। दाम भी बाकी खीरे के मुकाबले अच्छे मिलते हैं।
मनीष, किसान, निवासी हरदोई

फसल में इन रोगों से करें बचाव

डाउनी मिल्ड्यू और पाउडरी मिल्ड्यू रोग लगने का खतरा इस फसल में ज्यादा रहता है। पाउडरी मिल्ड्यू में पाउडर जैसा सफेद पदार्थ पत्तियों पर जम जाता है और पत्तियां सूख जाती है। डाउनी मिल्ड्यू में पट्टियां अचानक से झुक जाती हैं और पीली पड़ने लगती हैं। इसके बचाव के लिए डब्लूडीजी सल्फर का छिड़काव पौधों को रोग से बचा सकता है। यह छिड़काव एक हफ्ते के अंतर पर करते रहना चाहिए।

क्यों बढ़ रही मांग

इन किस्मों के खीरे की खासियत है कि इनसे होने वाले खीरे गहरे हरे रंग के होते हैं। चटख रंग होने के कारण ये देखने में आकर्षक लगते हैं। इसलिए खाने के साथ थाल की सजाव़ट में भी इसका उपयोग किया जाता है। ये खीरे खाने में कड़वे नहीं होते हैं जबकि पारंपरिक किस्मों में कड़वाहट पाई जाती है। इसके साथ ही इनमें बीज न के बराबर होते हैं इसीलिए इन्हें बीजरहित कहा जाता है जबकि बाकी किस्म में बड़े और मोटे बीज हो जाते हैं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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