छोटे किसानों ने शुरू की जैविक खेती, बढ़ी उर्वराशक्ति और मुनाफ़ा

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छोटे किसानों ने शुरू की जैविक खेती, बढ़ी उर्वराशक्ति और मुनाफ़ाप्रदेश के कृषि विभाग ने जैविक खेती को अपनाने के लिए बढ़ावा दिया।

ऋषभ मिश्र, स्वयं कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

नबाबगंज (शाहजहांपुर)। कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग भूमि को बंजर तो बना ही रहा है, इंसानों में विभिन्न बीमारियों को जन्म दे रहा है। नबाबगंज कस्बे के मोहल्ला सराय निवासी कल्लू ने जब यह जाना तो खेती का तरीका ही बदल डाला। मिट्टी की जांच कराई। इसके बाद जैविक खाद का प्रयोग करते हुए टमाटर, करेला, लौकी, खीरा की खेती की। इससे न केवल बेहतर उत्पाद मिला बल्कि मिट्टी की शक्ति भी बढ़ी।

कल्लू ने बताया “आठ वर्षों से सब्जियां उगा रहे थे लेकिन लागत अधिक और मुनाफा कम हो रहा था। कृषि विभाग के सहयोग से जांच कराई तो पता चला की मिट्टी में पोषक तत्व की कमी है। भूमि का उपचार किया फिर 23 बीघा में टमाटर, लौकी, खीरा, तोरई और करेला की खेती करना शुरू कर दी।” उन्होंने आगे बताया “यदि मौसम सही रहा तो टमाटर की बम्पर पैदावार होगी”

जैविक खेती किसे कहते हैं?

जैविक खेती प्रकृति के साथ सामंजस्य बना के चलती है ना की उसके विरुद्ध। इसके लिए सी तकनीक का प्रयोग किया जाता है जो कि अच्छी फसल देने के साथ-साथ प्रकृति और उसमें रहने वाले लोगों को कोई नुकसान न पहुंचाए। गत वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिससे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम जैविक खेती के नाम से जानते है।

किसानों को कर रहे जागरूक

कल्लू ने बताया “वह पढ़े-लिखे तो नहीं हैं लेकिन सही गलत की समझ है। टीवी पर खेती किसानी कार्यक्रम देखकर काफी कुछ सीखा है। पास-पड़ोस के किसान उनकी फसल देखने आते हैं। अच्छी पैदावार के तरीकों के बारे में पूछते हैं।” कल्लू अन्य किसानों को फसलों में कीटनाशक दवाओं का कम प्रयोग करने और जैविक खाका प्रयोग करने पर जोर देते हैं। कल्लू ने बताया “टमाटर और खीरा बरेली, पीलीभीत व दिल्ली की मंडी में सप्लाई होता है।” वहीं कुछ व्यापारी उनके खेत से ही फसल खरीद ले जाते हैं और मुनाफा भी अच्छा होता है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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