आज भी अपनों को तलाश रहे हैं ये बच्चे

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आज भी अपनों को तलाश रहे हैं ये बच्चेबाल गृह में स्टाफ के साथ मौजूद लावारिस बच्चे। 

भारती सचान, स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कानपुर देहात। ‘‘यह मैम आई हैं। आपको मम्मी-पापा के पास भिजवाने में यह आपकी मदद करेंगी।‘‘ काउंसलर की बात सुनकर बच्चे चुप हो जाते हैं और उम्मीदों भरी नजरों से देखते हुए अचानक लिपट जाते हैं। यह दृश्य है कानपुर देहात के जिला मुख्यालय माती से करीब 12 किमी दूर रनिया के शांति मेमोरियल बाल गृह शिशु का।

बाल गृह में बच्चों को नृत्य सिखाया जाता है। कहानी सुनाई जाती हैं। किसी तरह उनको व्यस्त रखा जाता है, जिससे वह परेशान न हो। हर सप्ताह काउंसलिंग होती है, जिसमें उनको घर के बारे में बताया जाता है ताकि वह अपने बारे में भूल न सकें।
सलमा बानो, काउंसलर।

बाल गृह में 13 लोगों का स्टाफ रहता है। चार पुरूष और नौ महिलाएं हैं। इनमें डॉक्टर भी शामिल हैं। बच्चों को यहां का स्टाफ गाना-बजाना भी सिखाता है। ज्यादातर बच्चे चाइल्ड लाइन की मदद से यहां लाए गए हैं।
एसके कुशवाहा, हाउस फादर, शांति मेमोरियल बाल गृह शिशु।

यहां रहने वाले लावारिस बच्चों से जब भी कोई मिलने आता है तो नौनिहाल बड़ी आस लगाए उसे देखते हैं कि शायद वह हमारे मां-बाप के पास ले जाएंगे या फिर इन बच्चों में से किसी का अभिभावक आया है जो घर ले जाएगा। इस बाल गृह में 22 बच्चे रहते हैं। इनकी भी चाहत है कि मां, बाप, भाई, बहन हों, अपना घर मिले और सभी का प्यार। लेकिन यहां ये बच्चे लावारिस की तरह रहते हैं। सिर्फ यहां का स्टाफ ही इनके लिए सबकुछ है। कोई हाउस मदर है तो कोई हाउस फादर है।

यहां रहने वाले ज्यादातर बच्चों को अपनों ने ही ठुकराकर लावारिश जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया है। इस बाल गृह में रहने वाली नौ वर्षीय पूनम बताती हैं, ‘‘वह चार साल पहले यहां आई थी। उसकी मां एक बोरी में भरकर अपने ही टेंपो में लाई थी और छोड़ गई। जाते वक्त कहा था कि अभी आ रही हूं। बाद में मैं बेहोश हो गई। पता नहीं चला कि कब यहां आई‘‘। वहीं, एक और पांच वर्ष की बच्ची तान्या बताती है, ‘‘उसका इकलौता भाई शिवा भी है। पापा का नाम मनोज कुमार है।

वह पिछले वर्ष 29 फरवरी को यहां आई थी। पापा ने उसे इटावा में कहीं पर किसी ट्रेन पर बिठाया था। बिस्किट लेने की बात कहकर वह चले गए, लेकिन वापस नहीं आए।‘‘

इसी तरह लक्ष्मी, विकास और अन्नू जो रिश्ते में भाई-बहन हैं, यहां एक साल से रहते हैं। सात वर्षीय अन्नू का कहना है कि ‘‘वह पिछले वर्ष 10 जनवरी से भाई और बहन के साथ यहां रहती है। उसके पापा ने दूसरी शादी कर ली। बाद में उसे भी ट्रेन में बिठा दिया और पानी लेने की बात कहकर चले गए।‘‘ यहां रहने वाला एक किशोर बताता है कि उसे भी लावारिस हालत में मां छोड़ गई थी। एक बार किसी तरह मिलवाया गया, लेकिन मां ने पहचानने से इंकार कर दिया।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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