शिक्षकों-अभिभावकों की राय : प्रताड़ना गलत, पर डर जरूरी 

Meenal TingalMeenal Tingal   5 March 2017 12:04 PM GMT

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शिक्षकों-अभिभावकों की राय : प्रताड़ना गलत, पर डर जरूरी स्कूल में अनुशासन और पढ़ाई के लिए बच्चों को प्रताड़ना देना गलत है, लेकिन थोड़ा बहुत शारीरिक दंड देना अनुचित नहीं है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। स्कूल में अनुशासन और पढ़ाई के लिए बच्चों को प्रताड़ना देना गलत है, लेकिन थोड़ा बहुत शारीरिक दंड देना अनुचित नहीं है। ज्यादातर शिक्षकों और अभिभावकों का यही मानना है।

यह मुद्दा इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि कुछ दिनों पहले केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने स्कूलों से शारीरिक दंड को समाप्त करने का अनुरोध किया है। उन्होंने महिला और बाल विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जारी किये गये दिशा-निर्देशों का सख्ती से अनुपालन कराने का मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अनुरोध किया है। इस संबंध में सेंट जोसेफ इंटर कॉलेज के निदेशक व शिक्षक अनिल अग्रवाल कहते हैं, “भय बिन प्रीत नहीं होती। अगर बच्चों में डर नहीं होगा तो बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगेगा।

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बच्चे पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं होंगे। आजकल जैसा माहौल है उससे अक्सर देखने को मिलता है कि बच्चे शिक्षकों तक से गलत व्यवहार कर देते हैं। सरकार ने पहले कक्षा आठ तक के बच्चों को फेल न करने की नीति बनायी और बाद में उस पर सोचना पड़ गया। इसीलिए ऐसी कोई नीति नहीं बनायी जानी चाहिए, जिससे बच्चों में अनुशासन की कमी हो और शिक्षा के स्तर में कमी आए। अगर ऐसा होगा तो फिर स्कूल केवल अपने फीस से मतलब रखेंगे, उनको इस बात से कोई मतलब नहीं होगा कि बच्चे क्या कर रहे हैं क्या नहीं।”

सेंट क्लेअर्स कान्वेंट हाईस्कूल में पढ़ने वाली बच्ची पलक के चाचा राजेश वैश्य (42 वर्ष) कहते हैं, “मेरी भतीजी पलक कक्षा नौ में पढ़ती है, इस कक्षा में उसका यह दूसरा वर्ष है क्योंकि वह पिछले वर्ष फेल हो गयी थी। कारण यही था कि उसके अंदर डर खत्म हो गया है। बच्चों के मन में पहले से ही यह बात घर कर गयी है कि मैम अगर मारेंगी तो मीडिया आ जाएगी, उनके खिलाफ रिपोर्ट हो जाएगी। इससे बच्चों में डर खत्म होता जा रहा है। बच्चे पहले से ही घरवालों से डरते नहीं हैं उस पर स्कूल का डर भी खत्म हो जाएगा।”

ऐसा नहीं है कि शारीरिक दंड खत्म करने के संबंध में केवल प्राइवेट स्कूल के शिक्षकों के सामने ही समस्या होगी। इस बारे में सहायता प्राप्त कालीचरण इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. महेन्द्र नाथ राय कहते हैं, “पहले के समय में बच्चों के लिए दंड और प्रोत्साहन का लालच और डर था, आज के दौर में वह खत्म होता जा रहा है। एक तो पहले से ही प्राइमरी के बच्चों को शारीरिक दंड नहीं दिया जा सकता, उस पर यदि बड़े बच्चों पर भी यह लागू हो गया तो शिक्षकों और अभिभावकों की दिक्कतें बढ़ सकती हैं और बच्चों में अनुशासनहीनता बढ़ सकती है।”

भय बिन प्रीत नहीं होती। अगर बच्चों में डर नहीं होगा तो बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगेगा। बच्चे पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं होंगे।
अनिल अग्रवाल, निदेशक सेंट जोसेफ इंटर कॉलेज

अभिभावक शरद कुमार (48 वर्ष) कहते हैं, “मेरी बच्ची अनिष्का कक्षा एक में पढ़ती है और बहुत ज्यादा शरारती है। वह अपनी छोटी बहन को बहुत परेशान करती है। घरवालों से बिलकुल डरती नहीं है इसलिए मैम से शिकायत की कि उसको डांटें और कभी-कभी हल्का सा चांटा ही लगा दें, जिससे उसमें डर पैदा हो। लेकिन मैम ने यह कहकर मना कर दिया कि आप डांटने-मारने को कह तो रहे हैं लेकिन यदि ऐसा मैंने किया तो स्कूल तो मुझे निकाल ही देगा।”

मेनका गाँधी ने जावड़ेकर को लिखा था पत्र

मेनका गांधी ने मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को एक पत्र लिखकर कहा कि आरटीई एक्ट की धारा 17 के तहत शारीरिक दंड दिये जाने पर प्रतिबंध है। इसलिए सरकारी और निजी स्कूलों को निर्देश दिए जाएं कि वे दिए गए दिशा-निर्देशों का सख्ती से अनुपालन करें। इस पत्र में बच्चों को शारीरिक दंड या उत्पीड़न करने के मामलों में तुरंत कार्रवाई करने के लिए विशेष निगरानी कक्ष का गठन करने के लिए भी कहा गया है।

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