यहां महिला के नजरिये से समझी जाती हैं महिलाओं की समस्या 

Neetu SinghNeetu Singh   24 March 2017 7:52 PM GMT

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यहां महिला के नजरिये से समझी जाती हैं महिलाओं की समस्या बहराइच जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर शिवपुर ब्लॉक के खैरी बाजार का बगीचा महिलाओं के मिलने का एक स्थान बन गया है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

शिवपुर (बहराइच)। जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर पश्चिम दिशा में शिवपुर ब्लॉक का खैरी बाजार का बगीचा महिलाओं के मिलने का एक स्थान बन गया है। हर महीने की 21 तारीख को महिलाएं न सिर्फ आपस में हंसी-ठिठोली करती हैं, बल्कि एक दूसरे की तकलीफ में भी शामिल होती हैं।

बैठक में आयी करीमन (50 वर्ष) का कहना है, "हमे चाहें जितना जरूरी काम हो, लेकिन महीने की 21 तारीख को हम इस बगीचे में जरूर आते हैं। मेरी शादी 11 साल की उम्र में हो गयी थी। तब हम अपने अब्बा को मना नहीं कर पाए थे। छह महीने पहले जब मेरे बेटे ने मेरी 15 साल की पोती की शादी तय कर दी। जब मुझे खबर हुई तो मैंने वो शादी रुकवा दी ।" वो आगे बताती हैं, "इस बैठक में मैं दो साल से आ रही हूं। मुझे यहीं से पता चला लड़की की शादी की उम्र 18 साल होती है।"

बैठक में आयी करीमन पहली महिला नहीं हैं जिन्होंने अपनी पोती की शादी रोकी हों।कई महिलाओं ने न सिर्फ अपने घरों की शादियों को रोका, बल्कि आस-पास होने वाली बेमेल शादियों को भी रोका है।

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महिला सामाख्या द्वारा शिवपुर ब्लॉक में अप्रैल 2014 से हर महीने की 21 तारीख को बगीचे में महिला मुद्दा बैठक होती है । इस बैठक में आस-पास के कई गाँव की महिलाएं आती हैं। बैठक में आई सैलकुमारी कुमारी (30वर्ष) बताती हैं, "मेरी ननद रामवती(28 वर्ष) की शादी 10 साल की उम्र में लखीमपुर में कर दी गयी थी। उनके पति ने वर्ष 2011 में दूसरी शादी कर ली। यहां दूसरी शादी करना आम बात है।" वो आगे बताती हैं, "हम लोगों को नियम-कानून का ज्ञान नहीं है। दूसरी शादी के बाद ननदोई मेरी ननद को मारने पीटने लगा। इसके बाद उसे मायके छोड़ गए ।"

सैलकुमारी महिला मुद्दा बैठक में चार पांच महीने से आ रही थी। जब उसने यहां कई केस सुलझते देखे तो अपनी ननद की बात भी एक दिन रख दी ।समूह संघ की 11 महिलाएं लखीमपुर गयी। दोनों पक्षों का समझौता करा दिया गया है।

बैठक की इंचार्ज मंजू शुक्ला (27 वर्ष)बताती हैं, "जब भी महिला मुद्दा बैठक में कोई केस आता है, दोनों पक्षों की बात सुनी जाती है। इसके बाद सुलहनामा कराया जाता है। तीन महीने तक केस का फॉलोअप किया जाता है।"

"दूसरा पक्ष सूचना देने के बावजूद अगर उपस्थित नहीं होता है तो संघ की महिलाएं उनके घर जाती हैं, कोई भी मामला लिखा पढ़ी के बाद ही हल होता है,स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर के बाद ही समझौता पक्का माना जाता है।"

इस बैठक की सदस्य जरीना (30 वर्ष) का कहना है, "इस बैठक में हिन्दू-मुस्लिम महिलाएं एक साथ बैठती है,आपस में कोई गिला शिकवा नहीं है, इस बैठक में मसलों को तो समझाया ही जाता है साथ ही घरेलू हिंसा कानून, बाल विवाह, शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत जैसे विषयों पर भी खूब चर्चा होती है।"

दो वर्ष पहले तक जरीना को घर से निकलने की अकेले आजादी नही थी ।एक बार चुपचाप जरीना जब इस बैठक में आयी तो उसे बहुत अच्छा लगा ।इसके बाद बैठक ने आने के लिए उसे अपने पति से बहुत मिन्नत करनी पड़ी। बहुत मुश्किल से पति माने। तब कहीं आज वो इस बैठक में आती हैं। जरीना बताती है,"बैठक में जो बाते मैं सीखती हूं, उसे अपने रिश्तेदारों को भी बताती हूं। मेरी फुफ्फी की बेटी की 12 साल की उम्र में शादी तय हो गयी थी। पता चलने पर वो शादी रुकवायी।"

      

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