नहरों में नहीं आता पानी, कैसे हो सिंचाई

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नहरों में नहीं आता पानी, कैसे हो सिंचाईनहर, ईशननदी, रजबहा और माइनर में फसलों की सिंचाई के लिए पानी नहीं रहता है

अजय मिश्र/मोहम्मद परवेज, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

कन्नौज। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भले ही किसानों के लिए डार्क जोन क्षेत्रों के लिए नई नहर खुदवा रहे हों लेकिन नहर, ईशन नदी, रजबहा और माइनर में पानी न रहना बड़ी समस्या है, जिसकी वजह से किसान नलकूप और समर्सिबल से फसलों की सिंचाई करते हैं। नतीजन जलस्तर काफी नीचे जा रहा है।

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वीवीआईपी जिले में फसलों की सिंचाई के लिए नहर भी निकली है। डार्कजोन तालग्राम और जलालाबाद विकास खंड क्षेत्रों के लिए नई नहर का भी काम चल रहा है। इसके अलावा सरकारी और निजी नलकूप के साथ ही समर्सिबल से भी सिंचाई का सहारा किसानों को है। वास्तव में देखा जाए तो नहर, ईशननदी, रजबहा और माइनर में फसलों की सिंचाई के लिए पानी नहीं रहता है। इतना ही नहीं रजबहा और माइनर की सफाई भी नहीं कराई जाती है। यही हाल कभी-कभी नहरों का भी हो जाता है, जिससे टेल तक पानी पहुंचने में दिक्कत होती है। इन संसाधनों में पानी न रहने या जरूरत के मुताबिक पानी न मिलने की वजह से किसान नलकूप से सिंचाई करते हैं।

हर साल छह सेमी नीचे गिरता है जलस्तर

जलनिगम, कन्नौज के राजेन्द्र सिंह कहते हैं, ‘‘हर साल करीब छह सेमी वाटर लेबल नीचे पहुंच जाता है। इसका कारण अत्यधिक जलदोहन है। खेतों की सिंचाई में नलकूप और घरों में समर्सिबल का प्रयोग बढ़ा है। पहले जलसंचयन के लिए तालाबों, पोखर और नहर में पानी होता था, अब सब खत्म हो रहा है। केवल दोहन ही हो रहा है। बरसात भी कम और समय पर नहीं होती है। नदियां भी पहले जैसी नहीं हैं।”

मई 2016 में कुछ यूं था नहर का हाल

वर्ष 2016 में मई में कन्नौज जिले को केवल 87 क्यूसेक पानी नहर विभाग के जरिए मिल रहा था। चार हजार क्यूसेक वाली क्षमता वाली नहर में मुख्य शाखा में करीब 500 क्यूसेक पानी होना बताया गया था। डैम में पानी जब कम होता है तो किसानों की मुसीबत और बढ़ जाती है।

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